जब कोई व्यक्ति बीमार पड़ता है तब तुरंत उसे डॉक्टर याद आता है। ज्यादातर लोग अपने घर के आसपास एलोपैथी के डॉक्टर के पास जाकर दवाई ले लेते हैं और ठीक हो जाते हैं। पर क्या छोटी मोटी हर एक बीमारी में डॉक्टर के पास दौड़ना सही है? हो सकता है आपकी बीमारी का इलाज आसान हो और घर पर ही हो सकता हो। आजकल के पढ़े-लिखे लोगों को एलोपैथी ट्रीटमेंट की कमियां और एलोपैथिक दवाइयों की साइड इफेक्ट के बारे में पता चलने लगा है। अब देश-विदेश में भी आयुर्वेद और होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति पर लोगों का भरोसा बढ़ने लगा है। तब बहुत से लोगों के मन में एक सवाल होता है कि होम्योपैथी और आयुर्वेद में क्या अंतर है?
एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेद में क्या अंतर है
आयुर्वेदिक और होम्योपैथी इस में ज्यादा असरदार क्या? यह प्रश्न बहुतों के मन में होता है इसलिए इसका उत्तर जानने के लिए हमे आयुर्वेदिक, एलोपैथी और होम्योपैथी के संक्षिप्त इतिहास को जानना पड़ेगा। तब हम जान पाएंगे की होम्योपैथी और आयुर्वेद में क्या अंतर है।
सर्वप्रथम हम एलोपैथी की बात करें तो ग्रीक और रोमन साम्राज्य के समय से चला आ रहा एलोपैथिक विज्ञान लगभग पंद्रह सौ साल पूर्व से विदेशों में ज्यादा प्रचलित हुआ है। यह चिकित्सा पद्धति हमारे देश में अंग्रेजों के साथ आई है। जबकि होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति का आविष्कार जर्मन डॉक्टर सैम्यूल क्रिश्चियन हानेमान ने लगभग 250 वर्ष पहले किया था। अब बात करें भारतीय चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद की तो, यह विश्व की सब से प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है। आयुर्वेद का इतिहास इस सृष्टि की उत्पत्ति हुई तब से याने हजारों साल पुराना है।
Allopathy, Homeopathy, Ayurveda चिकित्सा पद्धति का अर्थ
यह तीनों चिकित्सा पद्धति का अगर अर्थ समजें तो सर्वप्रथम एलोपैथि Allopathy का अर्थ होता है Allo मतलब अन्य, दूसरा तथा pathy का अर्थ है पद्धति याने ‘अन्य पद्धति’। जबकि होम्योपैथी Homeopathy शब्द दो ग्रीक शब्दों को जोड़कर बनाया गया है। इस का एक शब्द है ‘होमोइस’ जिसका मतलब है समानता और दूसरा शब्द है ‘पेथोस’ जिसका मतलब है बीमारी। होम्योपैथी का अर्थ होता है समानता के नियमानुसार की जाने वाली दवाई। उदाहरण के तौर पर ‘जहर जहर को मारता है’, लोहे को लोहा काटता है वाला नियम। अब आयुर्वेद की बात करे तो आयुः + वेद = आयुर्वेद। इसका सरल अर्थ है जीवन का ज्ञान कराने वाला शास्त्र।
पौराणिक कथा में आयुर्वेद
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान क्षीर सागर से भगवान विष्णु के अंश भगवान धन्वंतरि अमृत कुंभ लेकर प्रगट हुए थे। उन्ही को आयुर्वेद शास्त्र के देवता माना जाता है।
आयुर्वेद के मानक ग्रंथ और उसके रचयिता
भारत के 3 महान ऋषि, एक सुश्रुत दूसरे वाग्भट और तीसरे चरक जिसे हम भारतीय चिकित्सा विज्ञान के महान वैज्ञानिक भी कह सकते हैं। उन्होंने अनुक्रम
- ‘सुश्रुत संहिता’ (छठी शताब्दी ईसा पूर्व / BC, ईसा मसीह के जन्म के पहले),
- ‘अष्टांगसंग्रह’ (500 BC ई. पू.)
- ‘चरक संहिता’ (2195 वर्ष पूर्व)
नाम के आयुर्वेद के मानक ग्रंथ लिखे। ‘सुश्रुत संहिता’ में सर्जरी का ज्ञान विस्तारपूर्वक दिया गया है। महर्षि ‘सुश्रुत’ को शल्य चिकित्सा के जनक कहा जाता है। उस जमाने में वे मानव शरीर के अंगो की सर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी एवं मोतिया बिंदु के ऑपरेशन भी करते थे।
आयुर्वेद इतिहास
चरक संहिता के अनुसार आयुर्वेद की सर्वप्रथम शिक्षा के बारे में एक कथा प्रचलित है। हजारों साल पहले हिमालय की तलहटी में प्राणी मात्र के ऊपर करुणा रखने वाले और अपने तप तेज से प्रदीप्त, ब्रह्मज्ञान के भंडार ऐसे महर्षिओ ने एकत्रित होकर विचार विमर्श किया कि धर्म अर्थ काम और मोक्ष का मूल उत्तम आरोग्य है और रोग मनुष्य के जीवन को हरनार हैं इसलिए इस समस्या को दूर करने के लिए इन्द्र के पास से कोई उपाय जानना पड़ेगा! इस काम के लिए भारद्वाज ऋषि को इन्द्र के पास भेजा गया। इंद्र ने ब्रह्माजी जीसे जानते थे वह त्रिसूत्र ‘आयुर्वेद’ का ज्ञान भारद्वाज ऋषि को दिया। भारद्वाज जी ने वापस आकर अन्य ऋषि-मुनियों को आयुर्वेद की शिक्षा दी।
पुनर्वसु नाम के एक ऋषि जो कि अत्रि ऋषि के पुत्र थे, जिन्होंने अपने पिता अत्रि ऋषि एवं भारद्वाज ऋषि से आयुर्वेद की शिक्षा प्राप्त की थी बाद में उन्होंने आयुर्वेद का ज्ञान अपने छह शिष्यों
- अग्निवेश
- भेड़
- जतूकर्ण
- पाराशर
- हारित
- क्षारपानी
को दिया इस तरह आयुर्वेद का परंपरागत ज्ञान आज हम तक स्वस्थ जीवन का वरदान बनकर उपलब्ध है।
आयुर्वेद क्या है?
आयुर्वेद में सैकड़ों प्रकार की जड़ी-बूटियों, वनौषधि और औषधि युक्त
- कवाथ-काढ़ा
- चूर्ण
- वटिका
- गुटिका
- उकाला
- हिम
- कल्क
- अवलेह
- पाक
- आसव-अरिष्ट
- घी-तेल
- रसक्रिया
- क्षार
- मलम
- अंजन
- अर्क
- लैप
- भस्म
- योग
इत्यादि को औषध के रूप में दिया जाता है। सामान्यतः सभी घरों में उपयोग किए जाने वाले मसाले एवं सब्जियों व फलों से भी बीमारी का आयुर्वेदिक उपचार किया जाते हैं। अब हम होम्योपैथी की बात करेंगे। उसे जानकर हमे होम्योपैथी और आयुर्वेद में क्या अंतर है यह समजने में आसानी होगी।
एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेद में क्या अंतर है ये जानने के लिए प्रस्तुत होम्योपैथी का इतिहास
होम्योपैथी के जन्मदाता सैम्यूल क्रिश्चियन हानेमान का जीवन
होम्योपैथी के जन्मदाता सैम्यूल क्रिश्चियन हानेमान का जन्म जर्मनी के सेकसोनी प्रांत के मेईजन गांव में दिनांक 10 अप्रेल 1755 को हुआ था। उनके पिता श्रीमान क्रिश्चियन गोटफ्रीड हानेमान चीनी मिट्टी के बर्तनों पर चित्रकारी का काम करते थे। गरीब परिवार में जन्मे सैम्यूल क्रिश्चियन हानेमान को उनके पिता अपनी तरह एक चित्रकार बनाना चाहते थे, क्योंकि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उनके पास स्कूल फीस के पैसे नहीं थे। मगर कुदरत को कुछ और मंजूर था। छात्र हानेमान के शिक्षक ने उनकी स्कूल फीस माफ कर दी। इस तरह आगे चलकर हानेमान एलोपैथि के डॉक्टर बन गए और उन्होंने एम. डी. इन मेडिसिन की डिग्री प्राप्त कर ली।
डॉ. हानेमान यूरोप की बहुत सारी भाषाओं के जानकार थे और उन्होंने स्थानीय भाषाओं में अंग्रेजी के पुस्तकों का अनुवाद करने का भी काम किया था। वे निपुण रसायनशास्त्री एवं विषविज्ञानी थे।
1 दिसंबर 1782 में डॉक्टर हानेमान की पहली शादी हुई उससे उनको 11 बच्चे हुए। उस में 9 लड़कियां और 2 लड़के थे। डॉक्टर बन जाने के बावजूद भी डॉ. हानेमान का जीवन ज्यादातर गरीबी में ही बीता। हालाकी एक चिकित्सक के तौर पर डॉ. हानेमान की गणना उनके जमाने के सफल डॉक्टरों मैं होने लगी थी।
डॉक्टर हानेमान ने अपना दवाखाना बंद कर दिया
डॉ. हानेमान के जमाने में रोगी को ठीक करने की चिकित्सा पद्धति अमानवीय थी। डॉक्टर हानेमान ऐसा मानते थे कि इस तरह की चिकित्सा के दौरान रोगी की मृत्यु होती है तो उसे डॉक्टर के हाथों हुआ खून समझा जाना चाहिए। इसलिए डॉक्टर हानेमान ने अपना दवाखाना बंद कर दिया। अब डॉ. हानेमान की आर्थिक स्थिति ज्यादा खराब हो गई। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की :
‘है भगवान मुझे चिकित्सा की सच्ची पद्धति बताओ’
तब भगवान ने डॉ. हानेमान के सच्चे मन की प्रार्थना जैसे सुन ली हो वैसी एक घटना हुई।
होम्योपैथी का जन्म
उन दिनों डॉ. हानेमान को सिर्फ पुस्तकों के अनुवाद से ही कमाई होती थी और उसमें से उनका गुजारा चलता था। एक बार वह उनके समय के प्रख्यात अंग्रेज चिकित्सक डॉक्टर कयुलेन के ‘मटेरिया मेडिका’ नामक पुस्तक के दूसरे भाग का अनुवाद कर रहे थे तब अनुवाद के दौरान उस पुस्तक में लिखी गई कुनैन नाम की एक दवाई की मलेरिया के रोगी पर होने वाली असर के बारे में जो बात लिखी गई थी उस पर डॉ. हानेमान गहरी सोच में पड़ गए। उन्होंने मलेरिया की उस दवाई का खुद पर प्रयोग करना शुरू कर दिया। कुनैन नाम की वह दवाई खाने से डॉ. हानेमान के शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। उन्होंने इसके विशेष प्रयोग अपने घर वाले और एक चिकित्सक मित्र पर भी आजमाए। अंततः डॉ. हानेमान को एक बात समज में आ गई की जो दवाई रोग उत्पन्न कर सकती है वह उस रोग को मार सकती है। याने जहर को जहर मार सकता है। ईस तरह होम्योपैथी के नियम का जन्म हुआ। चिकित्सा के इस महान और उस समय के इस अज्ञात नियम के मिल जाने पर उन्होंने भगवान का तहे दिल से शुक्रिया अदा किया।
होम्योपैथी के जनक डॉ. हानेमान ने हार नहीं मानी
डॉ. हानेमान ने अपना बंद दवाखाना फिर से खोल दिया। अब वे मरीजों के लिए कुछ दवाइयां खुद बनाने लगे। उनकी दवाइयों से मरीज ठीक होने लगे।
डॉ. हानेमान को सिद्धि तो हासिल हुई लेकिन उसके विरोधी दिन-ब-दिन बढ़ते गए। उनके ऊपर कोर्ट में मुकदमा ठोक दिया गया। इससे परेशान डॉ. हानेमान और उसका परिवार दाने दाने को मोहताज हो गए। होम्योपैथी की पद्धति से दवाई करने पर प्रतिबंध लग गया। उनको परिवार समेत शहर छोड़ना पड़ा। डॉ. हानेमान इतने गरीब हो गए की उनके घर में सभी को पाव के टुकड़ों का वजन कर के खाने दिए जाता था। इतनी कंगाल परिस्थिति में उनकी एक बेटी बीमार हो कर मर गई तब उसके पास से अपने हिस्से के बचाए हुए पाव के टुकड़े मिले।
दुनिया में जितने भी प्रसिद्ध व्यक्ति हुए उनको बहुत ही संघर्ष का सामना करना पड़ा था। ऐसा ही बहुत कुछ डॉ. हानेमान के साथ भी हुआ। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
सन 1821 में फिर से उनकी होम्योपैथी की पद्धति को चिकित्सा के लिए कोर्ट से मंजूरी मिल गई। सन 1821 से 1835 तक में उनकी होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति की कीर्ति चारों ओर फैल गई।
इस दौरान 1830 में उनकी पत्नी की मृत्यु हुई। उसके 5 साल बाद 80 साल की उम्र में डॉ. हानेमान ने 35 साल की फ्रेंच महिला के साथ दूसरी शादी रचाई। इस बात पर उनकी खूब आलोचना और मजाक हुई। आखिरकार वे अपने देश जर्मनी को छोड़कर फ्रांस में जा बसे।
फ्रांस में उनको बहुत मान सम्मान मिला और होम्योपैथी के समर्थक एवं अनुयाई मिले। 8 साल पेरिस में बिताने के बाद 2 जुलाई 1843 में 88 साल की उम्र में इस महान व्यक्ति का देहावसान हुआ। फ्रांस के माउंटमात्रे नामक पहाड़ पर डॉ. हानेमान की इच्छा अनुसार उनकी कब्र पर रखे गए पत्थर पर लिखा गया
“मैं व्यर्थ नहीं जिया था”
होम्योपैथीक् दवाइयां किस चीज़ से बनती है?
डॉ. हानेमान की होम्योपैथी की थियरी के अनुसार बीमारी पहले आत्मा को लगती है उसके बाद उसके बाद शरीर के अन्य भागों पर उसका बुरा प्रभाव पड़ता है।
होम्योपैथी विज्ञान में लगभग 2500 जितनी दवाइयों की जानकारी और उपयोग किया जाता है उसमें से करीब-करीब 500 से 600 दवाइयां ऐसी है जिसका उपयोग होम्योपैथी के डॉक्टर हमेशा करते हैं। होम्योपैथिक दवाइयां बनाने के लिए वनस्पति के पत्ते, मूल, फल इत्यादि का उपयोग किया जाता है, एवं प्राणियों के दूध, विष से भी दवाइयां बनाई जाती है। इसका तीसरा प्राप्ति स्थान है जमीन में से निकलने वाली धातु और खनिज। धातुओं के मिश्रण से भी कई दवाइयां बनाई जाती है। ईस प्रकार होम्योपैथिक दवाइयां अधिकतर प्राकृतिक वस्तुओ के द्वारा बनती है।
होम्योपैथिक दवाइयों से इलाज
होम्योपैथिक दवाइयां बनाने की पद्धति में दवाइयों को सूक्ष्म से अति सूक्ष्म किया जाता है। इस दवाई के माध्यम से शरीर में आत्मा को एवं उसके मूल स्वभाव को जागृत करने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार होम्योपैथिक दवाइयां बनाने की पद्धति को पोटेंटाइजेशन कहा जाता है।
होम्योपैथिक डॉक्टरों का ऐसा मानना है कि शरीर का संपूर्ण रहस्य ईश्वर ने हमारे सामने अभी तक खोला नहीं है और मनुष्य को होने वाले सभी रोगों का पक्का कारण भी हम नहीं जान सकते हैं उसी तरह होम्योपैथिक दवाइयों से लोगों का इलाज कैसे होता है जिसको समझना भी लगभग असंभव है।
सर्जरी होम्योपैथी में संभव नहीं है – होम्योपैथी और आयुर्वेद में क्या अंतर है
होम्योपैथी एक संपूर्ण पद्धति है और जिस में मानव शरीर के प्रायः सभी रोगों की चिकित्सा संभव है, लेकिन शल्य चिकित्सा यानी सर्जरी होम्योपैथी में संभव नहीं है। होम्योपैथिक दवाइयां सस्ती है और उसकी साइड इफेक्ट नहीं होती है।
तात्पर्य यह है की गंभीर प्रकार के एवं असाध्य रोगों को छोड़कर छोटी-मोटी बहुत सारी बीमारियों में एलोपैथी की दवाइयों की बजाएं हमें आयुर्वेदिक अथवा होम्योपैथिक उपचार करना चाहिए। इससे बीमारी जड़ से ठीक होती है और हमारे शरीर में साइड इफेक्ट का खतरा भी नहीं होता है। और हा, जरूरत पड़ने पर एलोपैथिक दवाइयां भी हमें लेनी चाहिए। आशा है इस आर्टिकल को पूरा पढ़कर आपको जरूर पता चला होगा की होम्योपैथी और आयुर्वेद में क्या अंतर है। अगर यह आर्टिकल आपको अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करे।
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