युवा पीढ़ी ने अपने माता-पिता एवं बुजुर्गों को अक्सर यह कहते हुए सुना होगा की ‘हमारे जमाने जैसा फल, सब्जियां और अन्न का स्वाद आज नहीं रहा’। अब सवाल यह है Young generation को यह कैसे पता चले की पहले के फल, सब्जियां और अन्न का स्वाद कैसा था? तो आईए मेरे कुछ अनुभवों की बातों से हम इस विषय को समझने की कोशिश करते है। और हा, यह लेख पढ़कर आपको एक सवाल जरूर होगा की जहरीला खान पान हम कब तक करेंगे? How long will we consume poisonous food?
गंभीर प्रकार के रोग व बीमारी के मुख्य कारण जहरीला खान पान
आजकल उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषि में कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों Fertilizer का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। देश मे चारों ओर सिर्फ उत्पादन बढ़ाने की ही बात चल रही है। बुरा भी नहीं लेकिन गुणवत्ता कैसे सुधारे यह बात बहुत ही कम लोग सोचते है। क्या हम यह नहीं जानते की कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों Fertilizer एवं ऑक्सीटोसिन गंभीर प्रकार के रोग व बीमारी के मुख्य कारण है?
दो साल पहले मुजे एक एसा अनुभव हुआ जिससे हम यह समझ सकते है कि भारतीय किसान कैसे भयानक चक्र में फंसा हुआ है। उन दिनों उत्तर गुजरात में बाढ़ की स्थिति थी और हम पाँच मित्र राहत सामग्री के साथ धानेरा क्षेत्र में पहुँचे। वहां से एक स्थानीय कार्यकर्ता को साथ लेकर हम बाढ़ पीड़ित गांवों की ओर निकल पड़े। उन दिनों श्रावण मास चल रहा था, इसलिए हमारे कुछ दोस्तों को व्रत था। इसलिए उनके खाने के बंदोबस्त मे हमने फल और फराली खाना जैसे आलू की वेफर्स कपैकेट और आलू का फराली चिवडा साथ मे रखा था। इस दौरान एक घटना हुई जिसने मुजे एक सच्चाई से रूबरू करवाया।
हुआ यूं कि हमारे साथ आए हुए स्थानीय कार्यकर्ता ने भी हमारी तरह सावन का व्रत रखा हुआ था फिर भी भूख लगने पर वो हमारे साथ आलू की वेफर्स और आलू का फराली चिवडा नहीं खा रहा था। जब भी हम उसे वेफर्स देते थे तब वो खाने से मना कर देता था। ऐसा दो तीन बार हुआ इसलिए मैंने उसे पूछा कि वेफर्स क्यों नहीं लेता? तब उस कार्यकर्ता ने कहा कि ‘इन सभी फराली चीजों मे आलू होता है और में आलू नहीं खाता’।
आलू की फसल में अधिक उत्पादन के लिए अधिक रासायनिक उर्वरक
उसका जवाब सुनकर मुझे लगा की शायद वो जैन होगा, चूंकि चुस्त जैनी आलू, प्याज, लहसुन वगैरह नहीं खाते, इसलिए मैंने उसे पूछा की क्या तुम जैन हो? उस ने कहा नहीं। तो फिर यह फराली चीजे क्यू नहीं खाते? मैंने सवाल किया। तब उसने कुछ बेहद चौंकाने वाली बात कही जीसे सुनकर में हैरान रह गया। उस बंदे ने कहा : ‘मैं अपने घर के उगाए आलू के अलावा बहार का आलू नहीं खाता’। बड़ी अजीब सी बात लगी इस लिए मैंने उसे पूछा क्यों? इसकी व्याख्या करते हुए उसने कहा कि ‘हमारे क्षेत्र में आलू की बहुत अधिक फसल है। आलू की फसल में अधिक उत्पादन के लिए हम बहुत सारे रासायनिक उर्वरक Fertilizer मिलाते हैं। लेकिन हम अपने घर में खाने के लिए पर्याप्त आलू बिना खाद के सिर्फ पानी देकर उगाते है और उसे घर के कोने में रख देते हैं। My God! अब मुझे पता चला कि आलू में कितना जहरीलापन होता है। मैं तो उस बंदे की बाते सुनकर हैरान रह गया। यह बंदा क्या कह रहा है? फिर उसने गोभी, फूलगोभी और भिंडी के बारे में भी ऐसा कुछ बताया।
रासायनिक स्प्रे से एक रात में अंगूर का कद बदल जाता है
जिस तरह मैं आलू के बारे में सुनकर अचंभित हुआ उसी तरह मेरा एक दूसरा अनुभव भी में बताता हूं : एक बार जब मैं नासिक गया था तब रास्ते मे मैंने अंगूर के बहुत सारे बगीचे देखें। एक जगह रुक कर बगीचे के बाहर अंगूर बेच रहे एक किसान से अंगूर खरीद कर मैंने पूछा; क्या अंगूर पर आप रसायनों का छिड़काव करते हैं ..? किसान ने मेरी तरफ देख कर हँस कर कहा, ‘अंगूर बिना दवा के बढ़ता है क्या?। दवाई नहीं मारेंगे तो दाना छोटा होगा और पैदावार कम होगी। रासायनिक स्प्रे से एक रात में अंगूर का कद बदल जाता है’।
हमने दिखने में बड़े कद के अंगूर को टेस्ट किया तब शराब के रंग के अंगूरों का स्वाद फीका लगा।
उत्पादन में वृद्धि के लिए फल और सब्जियों में ऑक्सीटोसिन का उपयोग किया जाता है। इस तरह से जहरीले रसायनों के उपयोग से फल का वजन तो बढ़ता है लेकिन स्वाद और सत्व कम हो जाता है। इतना ही नहीं बल्कि इसे खाने से खतरनाक रोग भी होता है।
अगर हम इसके स्वाद और सत्व की बात करे तो बिना केमिकल की Organic एक अंगूर या अन्य फल-सब्जी के बराबर आज की पाँच या उस से अधिक मात्रा होती है। जब की हम ज्यादा Quantity खा नहीं सकते इसलिए हमे पर्याप्त सत्व और स्वाद भी नहीं मिलते। पर हा, जहर जरूर पेट मे जाता है।
पहले प्राकृतिक खेती थी मगर अब जमीन को कीटनाशक व रासायनिक उर्वरकों लत लगी नतीजा जहरीला खान पान
कुछ दिनों पहले मुझे अपने गृहनगर वलभीपुर जाना हुआ। वहां मुझे अपने बचपन का दोस्त चुन्नीलाल मिला। चुन्नीलाल ने मुझे घेलो नदी के किनारे अपने खलिहान में उगी ताजी सब्जियां ले जाने का आग्रह किया। मैंने चुन्नीलाल से पूछा कि खेत मे क्या कर रहा था? उसने कहा बैंगन में दवाई छिड़क रहा था। बैंगन को भी दवाई? यह सुनकर मैं चौंक गया। मैंने कहा, एला चुन्नीलाल, क्या तुम हमेशा देशी सब्जियाँ लगाते हो? फिर यह दवा का छिड़काव कब शुरू किया? ‘ चुन्नीलाल हँसने लगा और अपने देहाती लहजे में बोला। ई के बिना नहीं चलता’। मैंने कहा, पहले के समय में दवाई कहाँ थी, तब भी बैंगन हो रहे थे…! चुन्नीलाल फिर से हँसने लगा और बोला; भाजी पाले में तब ऐसी बीमारी नहीं थी अब है।
अन्न, फल, सब्जियों मे तरह तरह के रोग एवं मनुष्य में भी कई प्रकार के रोग और उस पर दवाइओ का अरबों डॉलर का कारोबार षडयंत्र नहीं तो क्या है?
वर्तमान में, अन्न, फल एवं सब्जियों मे तरह तरह के रोग आते है जो पहले नहीं थे और उस पर कीटनाशक दवाई का बेहद उपयोग हो रहा है। इसी तरह मनुष्यों मे भी तरह तरह की बीमारियां दिखती है। इन बीमारियों के
कारण मनुष्यों को एलोपथी की दवाइयों की जरूरत पड़ती है। असल मे क्या आप को यह नहीं लगता की ज्यादा पैदावार लेने के चक्कर मे हमने रासायनिक उर्वरकों Fertilizer एवं कीटनाशकों को आयात किया उस से फ़सल की पैदावार तो अच्छी रही किन्तु मनुष्यों मे भिन्न भिन्न प्रकार के रोग भी बढ़ाने लगे और फिर उसके इलाज के लिए हमने एलोपथी सहारा लिया जिसकी साइड इफेक्ट भी होने लगी, आगे चल के उसकी भी दवाई… इस तरह हम विषचक्र मे फसते चले।
हाइब्रिड बीज स्वतंत्रता के बाद कम बुद्धिमान, अकल्पनाशील, भ्रष्ट शासकों की देन
कभी सोचता हूँ के बचपन मे हमने जो सब्जियां, अमरूद, बेर, अनार पपीता वगैरह की मिठास कहां खो गई? मुझे लगता है कि हाइब्रिड बीज स्वतंत्रता के बाद हमारे भ्रष्ट शासकों की कमजोरी के कारण एक विदेशी साजिश के हिस्से के रूप में आए। अधिक उत्पादन प्राप्त करने के चक्कर मे देशी बीजों को नष्ट कर दिया गया। विदेशी चीजों और तकनीक के हम आदी हो गए। आयातित खाद ने भूमि को नशे की लत लगा दी फिर भी हम अभी भी गहरी नींद में हैं।
बचपन में हमने कभी केले का रंग इतना पीला नहीं देखा
बचपन में हमने केले का रंग पीला नहीं देखा था, जैसा कि आज है। आज के पीले रंग का केला जो आंख को प्रसन्न करता है लेकिन क्या आप जानते है उसे केमिकल के द्रावण मे डुबोकर पकाया है। यह केला स्वाद में बिलकुल फीका लगता है। पर नई पीढ़ी के लोगों को इसका पता नहीं चलेगा क्योंकि उन्होंने असली स्वाद चखा ही नहीं। सबसे सस्ता और स्वास्थ्यवर्धक फल के भी यह हाल है।आम, पपीता जैसे फलों को पकाने के लिए Calcium Carbide जैसे खतरनाक केमिकल का उपयोग किया जाता है।
अनजाने में हम जहरीला खान पान और फलों (केले) का सेवन करते हैं
यह सच है कि दिन में एक केला खाने से आप स्वस्थ रह सकते हैं, लेकिन ऐसे पीले केले खाने से नहीं। आजकल, जो लोग जल्दी पैसा बनाना चाहते हैं, उनकी खतरनाक तकनीकों के कारण, देश के लाखों नागरिक अनजाने में विषाक्त रसायनों वाले फलों (केले) का सेवन करते हैं। बेशक, फल पकने के अलावा, स्वाभाविक रूप से उगाया जा सकता है, लेकिन हम स्वेच्छा से रासायनिक रूप से पकने वाले फल खरीदते हैं, इसलिए इन जहर को बेचने वाले लालची लोगों को प्रोत्साहन मिलता है। यह हमारे स्वास्थ्य के साथ छेड़छाड़ करने की एक विदेशी साजिश है। जिसे हमारे लालची लोग देश में फैला रहे हैं।
अधिक वजन होने से अधिक लाभ कमाने के शॉर्टकट के रूप में, कमीनों ने अच्छे मज़ेदार रसदार और मीठे टमाटर को भारी, मोटी चमड़ी और मोटा बना दिया। आज की पीढ़ी को यह भी पता नहीं है कि उनके पास रसदार, पतले-पतले, खट्टे मीठे टमाटर भी थे।
अमेरिकन कॉर्न हंसते हंसते खाने वाले युवा देशी कॉर्न, भुने हुए देशी मका के स्वाद और सुगंध की मजा कहां जानते हैं।
हर अनाज की फसल में प्रचुर मात्रा में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का छिड़काव किसानों की मजबूरी है। सवाल यह है कि जब सरकार उत्पादन में वृद्धि को ही विकास मानती है तो गुणवत्ता पर जोर देना कब शुरू होगा। यह काम हमे करना पड़ेगा ऑर्गेनिक चीजों की पहचान करना और उसे ही खरीदने का आग्रह रख कर।
कीटनाशक और रासायनिक उर्वरक धरती को बंजर बना रहे है और जहरीला खान पान
घरेलू और विदेशी कंपनियां एवं रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के विक्रेताओं ने रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और बीजों को अपने लाभ के लिए किसानों को धोखा देकर बेचने का षडयंत्र रचा हैं।
पंजाब में उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी में कैंसर जैसी बीमारियां पैदा हुई हैं। वह जमीन अब खेती योग्य नहीं है। यह हमारे देश की उपजाऊ मिट्टी को नशे की लत और फिर बेकार बनाने की साजिश है। अंततः कीटनाशक और रासायनिक उर्वरक धरती को बंजर बना रहे है।
हम खाने को लेकर पूरी तरह से लापरवाह हैं। हम लोग केवल स्वाद के लिए ही खाते हैं, यह सोचकर, की ‘क्या हम अकेले थोड़े खाते हैं? जो कुछ होगा वह हम सब के साथ होगा’। हमारी कमजोरी यह है कि हम सब कुछ स्वीकार कर लेते हैं। यही कारण है कि स्वास्थ्य को खतरे में डालने वाली गतिविधियाँ पनपती हैं। लेकिन अगर लोग जागते हैं और एक जन आंदोलन शुरू करते हैं की आज से रासायनिक रूप से पके फलों, सब्जियों और अनाज के उपयोग को कम करेंगे, साथ-साथ प्राकृतिक रूप से पकने वाले उत्पादों के उपयोग को बढ़ाएंगे तो कुछ लाभ हो सकता है।
इसके लिए जैविक खेती को बढ़ावा देना और उसका प्रचार-प्रसार करना बहुत जरूरी है, जो प्राकृतिक खाद पर आधारित है।
इस संबंध में सरकार द्वारा बहुत कुछ किया जा सकता है। जैसे सख्त कानूनों का निरंतर प्रवर्तन। गुणवत्तापूर्ण कृषि उत्पादन के लिए सरकार द्वारा प्रभावी अभियान; फल पकने में उपयोग किए जाने वाले जहरीले रसायनों पर सख्त प्रतिबंध / सख्त प्रवर्तन। अगर हम जागरूक हो जाएंगे तो भावी पीढ़ी को इसका अवश्य लाभ होगा। इस लिए अपने आप को एक सवाल करो की आखिर जहरीला खान पान हम कब तक करेंगे?