पेट दुखना, पेट फूलना, डकार आना, बेचैनी, वायु के कारण वेदना होना, जी मिचलाना और उल्टी होना, सीने में दर्द, सर दर्द, धड़कन तेज होना, कब्ज इत्यादि लक्षण अजीर्ण यानी बदहजमी (Indigestion) के होते है। आयुर्वेद के अनुसार अजीर्ण के कुछ प्रकार है, जैसे आमा- जीर्ण, विदग्धा जीर्ण, विष्टब्धाजीर्ण और रसशेषाजीर्ण लेकिन सर्व प्रकार के अजीर्ण में मंदाग्नि नाशक औषधि लाभदायक है। हम इस आर्टिकल मे अपच के कारण और Indigestion के उपाय के बारे मे बात करेंगे।
- अजीर्ण
- बदहजमी
- अपच
- अग्निमांद्य
- मंदाग्नि
ये सब एक ही प्रकार की बीमारी के नाम और स्वरूप है। अजीर्ण की बीमारी होने पर अन्न के ऊपर नफरत सी होती है, कभी भूख लगती भी है लेकिन जब खाने के लिए बैठते है तब अभाव होता है। मन में उद्वेग, निराशा उत्पन्न होते है, संक्षिप्त में कहे तो कब्ज के जैसा ही दूसरा रोग अजीर्ण यानी अग्निमांध (Indigestion) अनेक प्रकार के रोगों को जन्म देता है।
अपच (Indigestion) के कारण
आज के जमाने में खासकर शहरों में रहने वाले लोगों को अजीर्ण रोग की समस्या आम बात बन गई हैं। इतना ही नहीं बल्कि आजकल तो छोटे-छोटे गांव और नगरों में भी, होटल व दुकानों में ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में खाने पीने की चीज वस्तुओं में जहर जैसी मिलावट होती है। हल्के प्रकार का तेल एवं दूसरे खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह का बाहर का खाना खाने से लोग यकीनन बीमार पड़ते हैं।
- बाहर का खाना
- भूख ना होने पर भी मात्र स्वाद के लिए खाना
- उत्तेजक मसाले वाला खाना
- पाव, ब्रेड, पिज़्ज़ा, बर्गर, फ़ालूदा, आइसक्रीम इत्यादि बार बार खाना
- कोल्ड ड्रिंक व बहुत सारा पानी पीना
- समय से पहले या बाद में भोजन करना
- मल मूत्र को रोकना
- समय से नींद नहीं करना
- कम अथवा ज्यादा खाना
- ठंडा या बासी भोजन करना
- भोजन पर कुदृष्टि पड़ना
- एकाग्र होकर भोजन नहीं करना
व्यसन इत्यादि कारणों से मंदाग्नि की बीमारी होती है। खाया हुआ अन्न न पचने के कारण यह व्याधि उत्पन्न होती है। अब सवाल यह है की अपच (Indigestion) के उपाय क्या?
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता जी में कहा है कि,
“अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः। प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्”
अर्थात मैं ही समस्त प्राणियों के देह में स्थित वैश्वानर अग्निरूप होकर प्राण और अपान से युक्त चार प्रकार के अन्न को पचाता हूँ।
जठराग्नि शांत हो जाए तो मनुष्य की मृत्यु होती है
बहुतों को यह मालूम नहीं होता है की हम जो कुछ भी खाते है उस का पाचन कहा होता है? इस प्रश्न का उत्तर है कि, हमारे पेटमें रहने वाले जठराग्नि में खाया हुआ अन्न पचता है। आयुष्य, बल, उत्साह, स्वास्थ्य, प्रभा, ओजस और प्राणशक्ति इत्यादि जठराग्नि पर ही निर्भर है। यह अग्नि अगर शांत हो जाए तो मनुष्य की मृत्यु होती है। और अगर इसे संभालकर रखें तो निरामय (निरोग) रहकर सो साल तक जीते है। अन्न रूप ईंधन से यह अग्नि प्रज्वलित रहेता है।
संयमी स्त्री-पुरुष दीर्घायु याने लंबा आयुष्य पाते है
हम कैसा भी अन्न खाए और जो मर्जी आया वह पेट में डालकर जठराग्नि स्वरूप हवन में हड्डी डालने जैसा, राक्षस जैसा काम करते है। उसके विपरीत जितेंद्रिय (जिसने इंद्रियों को अपने वश में कर लिया हो, संयमी) स्त्री-पुरुष इस अंतराग्नि की एकाग्रता से आराधना करते है। मात्रा और कल का विचार कर के जो उसमें अन्नपानरूप समिध (यज्ञ या हवनकुंड में जलाई जाने वाली लकड़ी) से होम करते है वह दीर्घायु याने लंबा आयुष्य पाते है। हम कितना भी अच्छा खाले, कितने भी विटामिन्स ले किन्तु शरीर में सदा जलने वाली जठराग्नि ही मंद पड जाए तो सब निरर्थक है।
अपच (Indigestion) के आयुर्वेदिक उपाय
- अजीर्ण में कोई भी औषध लेने से पहले, खुली हवा में व्यायाम अथवा योगासन और एक दिन लंघन याने उपवास करना चाहिए। उपवास में कुछ भी, फल भी नहीं खाना है। सिर्फ गरम पानी ही पीना चाहिए।
- भोजन से पहले अदरक के थोड़े टुकड़ों को नींबू और सैन्धव नमक मिलाकर खाए
- हमेशा भोजन गरम अथवा ताजा होना जरूरी है
- नियत समय पर खाना चाहिए
- खाने में मधुर, अम्ल, लवण, तिक्त, कटु, कषाय यह छह रस वाला भोजन करे
- साबुत मूंग को पानी में उबालकर उसका पानी छान कर पिए
- भोजन करने के बाद थोड़ा टहलना अथवा वज्रासन करना चाहिए
- भोजन में एक साल पुराना चावल, गेहूं वगैरह एवं हरी सब्जी, सहजन की फली, कोमल मूली, बेंगन, परवल, आवला, संतरा, नींबू, अनार, शहद, मक्खन, दहीं, छाछ / दूध ले
- फलियां (Legumes) कम खाए
- रात को जागरण ना करे
- खुली हवा में टहलने जाए
बदहजमी (अपच) के घरेलू आयुर्वेदिक उपाय
हरड़ सोंठ तथा सैन्धव लवण के (तीनों समान मिलाकर) आधा चमच जितने चूर्ण (पावडर) को पानी अथवा गुड़ के साथ लेना चाहिए। अनानास को छोटे टुकड़ों में काट लें और काली मिर्च और सैन्धव पाउडर डालकर खाए। हिंगाष्टक चूर्ण को पानी/छाछ के साथ ले। भोजन से पहले आधा चमच अदरक के रस में उतना ही नींबू का रस और थोड़ी (जरा सी)दालचीनी मिलाकर पीने से अपच दूर होती है और अग्नि प्रज्वलित होती है। सोंठ, अजवायन और संचल नमक से पेट का वायु ठीक होता है। एक उपचार एसा भी ‘आर्यभीषक्’ मे बताया गया है जो की हमारे बड़े बुजुर्ग पहले अक्सर करते थे वह ये है की, एक नींबू को दो भागों में काटकर उसके दोनों हिस्से पर संचल नमक, सोंठ और थोड़ी हिंग भर के उसे अग्नि पर रख कर अच्छी तरह पक जाने पर हल्का ठंडा होने पर उसे चूसे। इस उपचार से पेट का दर्द ठीक होगा, खट्टे डकार बंध होंगे, खाने की इच्छा होगी, भूख बढ़ेगी और गेस छूटेगा। ओर एक उपचार जिसे सभी को हमेशा करना चाहिए। दस से बीस ग्राम जितने अदरक के छोटे छोटे टुकड़े करके उसके ऊपर थोड़ा सैन्धव लवण डालकर खाना बहुत ही फायदेमंद है। आयुर्वेद में लिखा है की,
“भोजनाग्रे सदा पथ्यं लवणार्द्रकभक्षणम्”
भोजन से पूर्व सर्वदा सेंधा नमक के साथ अदरख खाना पथ्य होता है।
मेडिकल स्टोर्स व आयुर्वेदिक औषधि भंडार से मिलने वाली दवाइयां
बाजार में मेडिकल स्टोर्स व आयुर्वेदिक औषधि भंडार में मिलने वाली दवाइयों मे
चित्रकादि वटी : आमाशय बिगड़ने पर अन्न ठीक से हजम नहीं होता है ऐसी स्थिति में दो गोली जल के साथ सुबह शाम इसका सेवन करने से अग्नि प्रदीप्त हो जाती है। आंव पाचन के लिए यह वटी सर्वोत्तम लाभदायक है।
शंखवटी :
- पंच लवण
- चिंचा क्षार
- शंख भस्म
- शुंठी
- पिप्पली
- मरीच
- वचा
- शुद्ध हींग
- शुद्ध वत्सनाभ
- शुद्ध गंधक
- शुद्ध पारद
- भावना : नींबू स्व-रस
इस प्रकार की औषधि मिलाकर बनी शंख वटी पाचन करने वाली सर्वोत्तम औषधि है। यह अजीर्ण, आफरा, शूल, उदरशूल में अधिक लाभकारी है। विदग्धाजीर्ण की अवस्था में गले में जलन, खट्टी डकार, पेट में जलन, भोजन के बाद पेट में भारीपन आदि लक्षणों अवस्था में शंख वटी गुणकारी है।
मंदाग्नि के ऊपर बेहतरीन आयुर्वेदिक औषध
अपच (Indigestion) के उपाय के तौर पर हम नीचे दी गई कोई भी औषधि का उपयोग कर सकते है। इसके साथ साथ लोहासव (आमनाशक रक्तवर्धक अग्निवर्धक कृमिनाशक) सुबह-शाम एक से दो चम्मच समभाग पानी के साथ मिलाकर लेने से लाभ होता है।
हिंग्वाष्टक चूर्ण
गैसांतक वटी
लवणभास्कर चूर्ण
अग्नितुंडी वटी
अजमोदादि चूर्ण
समुद्रलवणादि चूर्ण
इत्यादि मंदाग्नि के ऊपर बेहतरीन औषध है। अजीर्ण की समस्या पर ऊपर दिए गए कोई भी उपचार से मरीज जल्द स्वस्थ हो सकता है। आप आयुर्वेद को अपनाए, सदैव स्वस्थ रहें। दीर्घायु हो यही प्रार्थना।
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