क्या आपकी पत्नी माँ बनने वाली है? क्या आपको सात्विक प्रकृति का बच्चा चाहिए? ? क्या आप जानते हो वात पित्त कफ का मतलब क्या है? आयुर्वेद में वात पित्त कफ प्रकृति क्या है? आपकी प्रकृति क्या है? क्या आप अपनी प्रकृति के अनुसार खान-पान, आहार-विहार करना चाहते हो? जीवन के असली आनंद का अनुभव लेना चाहते हो? तो ये आर्टिकल आपके लिए है।
इस आर्टिकल में हम आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों के अनुसार त्रिधातु, त्रिदोष और प्रकृति क्या है? ये समझने की कोशिश करते हैं। और प्रकृति के अनुसार मनुष्य के आहार विहार कैसे होने चाहिए यह भी जानते हैं।
आयुर्वेद में वात पित्त कफ प्रकृति : प्रकृतियों का प्रभाव
महर्षि चरक ने चरक संहिता में रोगी की परीक्षा करने के कुछ उपाय बताए हैं, उनमें प्रकृति परीक्षा भी एक है। चरक कहते हैं जब कोई बच्चा अपनी माता के गर्भ में आता है, तब उस पर चार प्रकृतियों का प्रभाव पड़ता है।
सर्व प्रथम गर्भ पर रज, वीर्य की प्रकृति का असर पड़ता है। क्योंकि गर्भ की उत्पत्ति रज तथा वीर्य से ही होती है। रज तथा वीर्य माता-पिता के शरीर से उत्पन्न होते हैं, और माता-पिता का शरीर उसके आहार विहार से बनता है।
शुक्रशोणित प्रकृति
अब यदि माता-पिता का भोजन, आचार-विचार, वाणी-बर्तन यह सभी सात्विक है, तो उनके शरीर में सभी धातुओं जैसे कि रस, रक्त, मांस, चर्बी, हड्डी, मज़ा और वीर्य पर सात्विक असर होगी। और अगर रजोगुण या तमोगुण का प्रभाव ज्यादा है, तो शरीर की सब धातुओं में राजस या तामस प्रभाव होगा। इसकी सीधी असर गर्भस्थ बच्चे के शरीर पर पड़ेगी। इस प्रकार गर्भ पर पड़ने वाली सर्वप्रथम असर को शुक्रशोणित प्रकृति कहते हैं।
सत्व, रजोगुण और तमोगुण क्या है इस विषय में हम इस आर्टिकल में आगे चर्चा करेंगे।
काल और गर्भाशय की प्रकृति
अब बात करते है दूसरी प्रकृति की। गर्भस्थ शिशु के ऊपर पड़ने वाली दूसरी असर को ‘काल और गर्भाशय की प्रकृति’ कहते हैं। आयुर्वेद के अनुसार प्रत्येक ऋतु में अलग-अलग वात, पित्त, कफ दोषों का प्राधान्य रहता है। इसलिए कौन सी ऋतु में गर्भ रहता है इसके अनुसार बच्चे पर दूसरी प्रकृति की असर पड़ती है।
माता के आहार विहार की प्रकृति
गर्भस्थ बच्चे पर तीसरी असर माता के गर्भाशय में जिस दोष की प्रधानता होगी उसकी पड़ती है। इसे माता के आहार विहार की प्रकृति कहते है।
गर्भ के प्रथम दिन से लेकर प्रसव के दिन तक बच्चे के शरीर का पालन पोषण माता के शरीर से ही होता है। माता जैसा भोजन करती है वैसा ही रुधिर उसके शरीर में बनता है और उसी से गर्भस्थ शिशु का पालन पोषण होता है। माता के भोजन में जिस दोष की विशेषता रहेगी उसका बच्चे की प्रकृति पर अवश्य प्रभाव पड़ेगा।
महाप्रयुक्तविकारप्रकृति
यह चारों प्रकृतियां जिस किसी एक या अनेक दोषों से प्रभावित होगी उसकी सीधी असर से गर्भ प्रभावित होगा। इसमें जिस किसी दोष की प्रधानता होगी वह बच्चे की जन्मजात प्रकृति कहलाएगी।
इसी कारण से कोई व्यक्ति जन्म से वात प्रकृति तो कोई पित्त प्रकृति तो कोई कफ प्रकृति या फिर मिश्र प्रकृति के होते है। कोई समधातु भी होते है। इनमें सभी धातु समान होती है।
कफ प्रधान प्रकृति
श्लेष्मा अर्थात कफ में स्निग्धता आदि अनेक गुण है। कफ स्निग्ध और श्लक्ष्ण होता है। जिसका शरीर चिकना और कोमल होता है वह व्यक्ति कफ प्रधान प्रकृति की होती है। चिकनाई दो प्रकार की होती है। एक तेल और घी की चिकनाई, दूसरी रंदा फेरि हुई लकड़ी की चिकनाई। घी को स्निग्ध और रंदा फेरि हुई लकड़ी को श्लक्ष्ण कहा जाता है।
कफ प्रकृति के व्यक्ति दिखने में सुंदर कोमल और स्वच्छ शरीर वाले होते हैं। उनका शरीर बलिष्ठ और सुसंगठित होता है। उनके सब अंग सुडौल और भराउदार होते है। भोजन शांति से करते है। धीरे धीरे बोलते है। किसी भी काम में जल्दबाजी नहीं करते। उनके मनमें घबहराहट या अन्य विकार जल्दी उत्पन्न होते है। स्वरूपवान, मधुर वाणी, बलवान, धनवान, विद्यावान, तेजस्वी और आयुष्यमान होते है।
पित्त प्रधान प्रकृति
पित्त प्रधान व्यक्ति का स्वभाव गर्म होता है। शरीर में तीक्ष्ण, उग्र, कड़वी खट्टी गंध (दुर्गंध) होती है। पित्त प्रकृति के व्यक्ति को ज्यादा गर्मी सहन नहीं होती है। मुंह पर कील मुंहासे होते हैं। बालों में जल्दी सफेदी आ जाती है। भूख प्यास ज्यादा लगती है। पित्त प्रकृति के पुरुष पराक्रमी होते हैं। पेशाब और पसीना ज्यादा होता है।
वात प्रधान प्रकृति
चलत्व, लघुत्व, रुक्षत्व, बहुत्व, शीघ्रत्व, शीतत्व, पुरुषत्व और विषदत्व ये सब वायु के गुण है। इसमें रुक्षता के कारण वात प्रकृति के व्यक्ति का शरीर रूखा, छोटा और दुर्बल होता है। उनकी आवाज रूखी, धीमी फटी हुई और तुतलाती हुई होती है। इनकी नींद कम होती है। बातचीत में हल्कापन और चंचलता रहती है।
वातप्रकृति की व्यक्ति के शरीर के हाथ, पैर, कन्धे, सिर, जिह्वा इत्यादि स्थिर नहीं रहते। वातिक व्यक्ति बोलते बहुत है। मन में क्षोभ, विकार, घबराहट, प्रेम और वैराग्य इन्हे जल्दी आते है। सुनी हुई बातें झटपट याद रहती है परंतु जल्दी भूल जाते हैं। ठंड सहन नहीं कर सकते। शरीर में रूखापन रहता है इसलिए फटा करता हैं।
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इस प्रकार वात, पित्त और कफ इन तीनों प्रकृतियों के विशेष गुणदोषों का वर्णन प्राचीन ग्रंथों में लिखे हुए है।
बहुत से व्यक्तियों की प्रकृति में दो दो दोषों का मिश्रण रहता है। कोई कफ-पित्त, वात-पित्त, वात-कफ जैसी मिश्र प्रकृति के भी होते है।
आयुर्वेद में वात पित्त कफ प्रकृति का अर्थ
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आयुर्वेद शास्त्र वात पित्त कफ इस तीन धातुओं के ऊपर प्रतिष्ठित हैं। यह तीन धातु प्राकृत अवस्था में शरीर में रहती है। इसमें विकृति आने पर शरीर में विविध प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। उसका उचित प्रतिकार न करने पर शरीर का नाश होता है।
यह तीनों धातु जब तक प्राकृत अवस्था में शरीर में रहती है तब तक उसे धातु कहते हैं परंतु जब विकृत या विषम अवस्था में होती है तब यह देह को दूषित करने वाला दोष कहलाती है।
आयुर्वेद के ग्रंथों मे लिखा है,
वायुः, पितं, कफ़ो दोषा धातवश्चमला मताः
अर्थात् वात, पित्त और कफ इन्हें दोष भी कहते हैं, धातु भी कहते हैं और मल भी।
महर्षि सुश्रुत के अनुसार आयुर्वेद में वात पित्त कफ प्रकृति :
सुश्रुत नामक महर्षि कहते हैं की दोष, धातु और मल शरीर के मूल है। वृक्ष की वृद्धि अथवा क्षय मूल की अच्छी बुरी स्थिति पर जैसे निर्भर है, वैसे ही शरीर की वृद्धि और क्षय का आधार भी शरीर के मूलभूत ऐसे दोष, धातु और मल के ऊपर ही निर्भर है।
महर्षि सुश्रुत कहते हैं : जैसे चंद्र, सूर्य और वायु यह तीनों महा शक्तियां हैं, वैसे ही वात पित्त और कफ यह तीनों शरीर की उत्पत्ति के कारण रूप हैं। वेदों ने चंद्र सूर्य और वायु इन तीनों देवताओं को अनुक्रम कफ, पित्त और वात के अधिपति देवता माना है। कफ का अधिष्ठायक चंद्रमा, पित्त का अधिष्ठायक सूर्य और रुक्षता का देवता वायु है।
दिन के तीन हिस्से सुबह, दोपहर, शाम, के अनुसार कफ, पित्त, वात, का मनुष्य पर प्रभाव पड़ता है। सुबह में कफ, दोपहर में पित्त और शाम को वात की असर अधिक होती है।
रात्रि में इसके विपरीत पहले हिस्से में वायु मध्य में पित्त और अंतिम भाग में कफ का समय होता है
आयुर्वेद में वात पित्त कफ प्रकृति : प्रकृति के कई नाम
यह विश्व सत्व गुण, रजोगुण और तमोगुण की लीला मात्र है। सत्त्वगुण प्रकाश है। सत्व ही ज्ञान और सुख का कारण रूप है। रजोगुण रागात्मक और दुख का कारण है। तमोगुण बुद्धि का आच्छादन करता है और मोह का मुख्य कारण है। यह तीनों गुण यदि समान रूप से है तो वह प्रकृति रूप है, और अगर कम ज्यादा हो तो वह विकृति कहलाते हैं।
प्रकृति के कई नाम है। प्रधान, प्रकृति, शक्ति, और अविकृति जैसे नामों से प्रकृति को जाना जाता है। प्रकृति को स्वभाव, तासीर, मूलभूत स्थिति, कुदरत भी कहते है।
प्रत्येक इन्सान की एक प्रकृति होती है, जीसे हम व्यक्ति का स्वभाव कहते है। प्रकृति जन्म, पूर्वजन्म के संस्कार और माता-पिता से बनती है। अभी अभी इस विषय को हमने समझा है और इस आर्टिकल मे आगे हम सत्व, रज, तम यह तीन प्रकृति के गुणों को विस्तार से समझेंगे।
सत्व, रज, तम यह तीन प्रकृति के गुण ईस प्रकार है
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सत्त्व :
आस्तिक (धर्म-ध्यान, लोक-परलोक, मुक्ति में जो विश्वास रख कर कर्म करता है), परिवार में विभाग करके भोजन करना, अनुत्ताप (क्रोध रहित) सत्य बोलना, मेधा (निर्णायक बुद्धि), बुद्धि, द्रुति (काम, क्रोध, लोभ, भूत, प्रेत आदि आवेश से बचना), क्षमा, करुणा, ज्ञान, निर्दम्भता, निर्दोष, निष्काम, अस्पृह, कर्म, विनय और नित्य कर्ममे प्रीति ये सब लक्षण सत्वगुण युक्त मनके है, ऐसा ज्ञानी पुरुषों ने कहा है।
रजोगुण :
महा क्रोधी, दंभी, कामी, सत्यवादी, अवीर, मारपीट करना, सुख-दुख की अधिक इच्छा, अहंकारी, ऐश्वर्य पाकर अभिमान करना, अविक आनंद मानना और पृथ्वी में घूमना, यह सब रजोगुणी मन के लक्षण विख्यात है।
तमोगुण :
नास्तिकपन, महाआलस्य, चित्तमे अत्यंत खेद, नीच बुद्धि, निन्दित काम और निन्दित सुखोमे निरंतर प्रीति, दिन-रात सोने की इच्छा, सब कामों में अज्ञानपन, सदैव क्रोध का अंधकार चित्तमे छाये रहना, सर्व कार्यों में मूढ़ता ये सब लक्षण तमोगुण वाले मनका है।
ईस प्रकार अधिक सत्व गुण वाला व्यक्ति सात्विक, अधिक रजोगुण वाला राजसी और अधिक तमोगुण वाला व्यक्ति तामसी कहलाता है।
रजोगुण और तमोगुण मन के दोष है। मन की जितनी भी बीमारियां होती है इन्हीं के मूल कारण ये दोष है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मान, शोक, ईर्षा, मद, उद्वेग (घबराहट), भय, इत्यादि बीमारियां इन्हीं से होती है।
वात, पित्त और कफ शारीरिक बीमारिओ के मुख्य कारण है। ये विकृत या विषम अवस्था में देह को दूषित करने वाला दोष बनता है।
दिनचर्या और ऋतुचर्या का पालन और प्रकृति के अनुसार योग्य आहार-विहार से मनुष्य स्वस्थ रहेता है।
आयुर्वेद में वात पित्त कफ प्रकृति के अनुसार आहार
वातज प्रकृति आहार – Food for Vataja Prakriti
( वातज प्रकृति) सेवन योग्य – To be Partaken
फल Fruits | सब्जियां | धान्य | मसाले | दुग्ध पदार्थ | पेय |
मीठे फल – Sweet fruits
आम – Mango मीठे अंगूर – Sweet grapes केला – Banana नारियल – Coconut खरबूजा – Muskmelon पपीता – Papaya ताजे अंजीर – Fresh figs खजूर – Date अनानास – Pineapple संतरा – Orange भिगोए मुनक्का – Soaked Raisins मूंगफली – Groundnut |
पकाई हुई सब्जियां -Cooked vegetables
पकाया हुआ प्याज -Cooked Onion अंकुरित बीज – Sprouted Seeds गाजर – Carrot मेथी – Fenugreek Green खीरा – Cucumber मूली – Radish कद्दू – Pumpkin लहसुन – Garlic
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पकाया हुआ अनाज Cooked Cereal
गेहूं – Wheat सभी प्रकार के चावल – All kind of rice मूंग – Mung Bean |
सभी मसाले – All Spices
सौंफ – Fennel हींग – Asafoetida इलायची – Cardamom अजवायन – Ajwain तुलसी – Basil काली मिर्च – Black pepper अदरक – Ginger पुदीना – Mint पका हुआ प्याज – Cooked Onion नींबू – Lemon सभी प्रकार के अचार – All kinds of Pickles
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सभी प्रकार के दूध – All kinds of Milk
घी – Ghee मक्खन – Butter छाछ – Buttermilk दही – Curd पनीर – Cheese आइसक्रीम – Ice cream |
सभी प्रकार के फलों का – रस All kinds of fruit juice
मिल्कशेक – Milkshake |
वातज प्रकृति आहार – Food for Vataja Prakriti
(वातज प्रकृति) सेवन के अयोग्य – (Vataja Prakriti) To be Avoided
फल | सब्जियां | धान्य | मसाले | दुग्ध पदार्थ | पेय |
अधिक मात्रा में फल – High amount of fruit
अनार – Pomegranate तरबूज – Watermelon नाशपाती – Pear |
सूखी सब्जियां – Dry Vegetables
कच्ची सब्जियां – Raw Vegetables पत्ता गोभी – Cabbage टमाटर – Tomatoes फूलगोभी – Cauliflower कैप्सिकम मिर्च -Capsicum मटर – Peas कच्चा प्याज – Raw Onion |
कच्चे धान्य – Raw cereal
जौ – Barley बाजरा – Millet मक्का – Corn राजमा – Rajma Beans सोयाबीन – Soybean उड़द – Urad मसूर – Lentil वाल – Beans
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सूखा दूध पाउडर – Skim Milk powder
बकरी का दूध – Goat’s milk |
नाशपाती का रस – Pear juice
अनार का रस Pomegranate juice सोडा पेय – Soda, Cold drinks |
पित्तज प्रकृति आहार – Food for Pittja Prakriti
(पित्तज प्रकृति) सेवन योग्य – Pittja Prakriti To be Partaken
फल | सब्जियां | धान्य | मसाले | दुग्ध पदार्थ | पेय |
Sweet fruit – मीठा फल
Sweet apple – मीठा सेब Coconut – नारियल Fig – अंजीर Sweet grapes – मीठा अंगूर Sweet mango – मीठा आम Sweet melon – मीठा खरबूज Sweet orange – मीठा नारंगी Pear – नाशपाती Pomegranate – अनार Dates – खजूर Raisins – किशमिश Water melon – तरबूज
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Sweet Vegetable – मीठी सब्जी
Bitter Vegetable – कड़वी सब्जी Cabbage – पत्ता गोभी Ladies finger – भिन्डी Potato – आलू Cucumber – खीरा Germinated seeds – अंकुरित बीज Pea – मटर Capsicum – शिमला मिर्च Sweet Potato – शकरकंद |
Barley – जौ
Rice – चावल Wheat – गेहूँ Choker bran – चोकर चोकर Pulses Kidney beans – राज़में Mung beans – मूंग Soyabean – सोयाबीन Rajma – राजमा |
Coriander – धनिया
Turmeric – हल्दी Cinnamon – दालचीनी Cardamom – इलायची Fennel – सौंफ Small quantity of black pepper – छोटी मात्रा में काली मिर्च |
Milk – दूध
Butter – मक्खन Ghee – घी Nearly all Sugar-Milk containing Sweets – प्रायः दूध और चीनी युक्त सभी मिठाई |
Generally all sweet fruit juice – आम तौर पर सभी मीठे फलों का रस |
पित्तज प्रकृति आहार – Food for Pittja Prakriti
(पित्तज प्रकृति) सेवन के अयोग्य – (Pittja Prakriti) To be Avoided
फल | सब्जियां | धान्य | मसाले | दुग्ध पदार्थ | पेय |
खट्टे सेब, अंगूर, बेर, नींबू, संतरे, सूखे मेवे, इत्यादि सभी प्रकार के खट्टे फल -All types of citrus fruits like apple, grape, plum, lemon, orange, dry fruits, etc.
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खट्टी सब्जियां – Sour Vegetables
मेथी – Fenugreek Green लहसुन – Garlic शलगम – Turnip सरसों -Mustard मूली – Radish टमाटर – Tomatoes |
मक्का – Corn
बाजरा – Millet भूरे चावल – Brown rice मसूर – Black Lentil |
प्रायः सभी गर्म मसाले – Generally all hot Spices | खट्टी छाछ – Sour buttermilk
दही – Curd पनीर – Cheese
—————– गुड – Jaggery |
शराब – Alcohol
केले का शेक – Banana shake कॉफ़ी – Coffee सोडा पेय – Soda, Cold drinks
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कफ़ज प्रकृति आहार – Food for Kaphaja Prakriti
(कफ़ज प्रकृति) सेवन योग्य (Kaphaja Prakriti) To be Partaken
फल | सब्जियां | धान्य | मसाले | दुग्ध पदार्थ | पेय |
Apple – सेब
Pear – नाशपाती Raisins – किशमिश
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Raw Vegetables – कच्ची सब्जियां
Cabbage – पत्ता गोभी Carrot -गाजर Bitter Vegetables – तीखी, कड़वी, कसैली सब्जियां Salad Vegetables – सलाद सब्जियां Fenugreek – मेथी Garlic – लहसुन Ladies finger – भिन्डी Radish – मूली Onion – प्याज Germinated seeds – अंकुरित बीज Pea – मटर Spinach – पालक
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Wheat Bran – गेहूँ का भूसा
Barley – जौ Millet – बाजरा Corn – मक्का |
Almost all – प्रायः सभी | Milk in small quantity -दूध कम मात्रा में
Butter extracted fresh buttermilk – मक्खन निकाला ताजा छाछ Goat’s milk – बकरी का दूध Honey and Jaggery in small quantities – शहद और गुड़ कम मात्रा में |
Low milk tea and coffee – कम दूध वाली चाय और कॉफी
Ginger juice – अदरक का रस Soda, Cold drinks |
कफ़ज प्रकृति आहार – Food for Kaphaja Prakriti
(कफ़ज प्रकृति) सेवन के अयोग्य – (Kaphaja Prakriti) To be Avoided
फल | सब्जियां | धान्य | मसाले | दुग्ध पदार्थ | पेय |
Sweet fruits – मीठे फल
All types of citrus fruits – सभी प्रकार के खट्टे फल Coconut – नारियल Fig – अंजीर Pineapple – अनानास Orange – संतरा Banana – केला Lemon – नींबू Water melon – तरबूज
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Sweet and juicy vegetables – मीठी व रसेदार सब्जियां | Rice – चावल
Wheat – गेहूँ |
Jayafala – जायफल | All kinds of Milk – सभी प्रकार के दूध
Butter – मक्खन Ghee – घी Curd – दही Cheese – पनीर All kinds of sweets – सभी प्रकार की मिठाइयां |
Milkshake – मिल्कशेक
Coconut Water – नारियल पानी |