Friday, November 22, 2024
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Ayurvedic vs Allopathy Side Effects : आयुर्वेदिक बनाम एलोपैथी साइड इफेक्ट्स

प्रायः हम सभी अपने जीवनकाल में कभी ना कभी बीमार जरूर पड़ते है। कभी हमारी गलती से तो कभी प्रकृति के कारण। और कभी मौसम के बदलाव से भी हमारे शरीर में रोग पैदा होता है। लेकिन हम रोग का इलाज कैसे करते है ये बड़ी महत्व की बात है। ऐसा इसलिए कि हम कुछ रोग ठीक करने के लिए दवाई तो लेते हैं परंतु कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि  वह दवाई एक रोग को तो ठीक कर दे लेकिन उससे दूसरा रोग पैदा हो जाता है, जिसका हमें बाद में पता चलता है। इस बात को बखूबी समझाने के लिए गुजराती में एक कहावत है, “बकरूं काढ़ता ऊंट पेठुं”। अर्थात बकरी को निकाला तो उस खाली जगह में अब एक ऊंट आकर बैठ गया। उदाहरण के तौर पर कहे तो ‘कुछ दिनों के लिए सर्दी जुकाम की दवाई ली और आजीवन एसिडिटी हो गई।’ इसलिए आज हम दो चिकित्सा पद्धति की Ayurvedic vs Allopathy Side Effects विषय पर बात करेंगे। 

Ayurveda

एलोपैथिक दवाइयों की साइड इफेक्ट अक्सर देखने को मिलती है। इसलिए दुनिया में अब हमारी पारम्परिक चिकित्सा शैली आयुर्वेद को “वैकल्पिक चिकित्सा” (alternative medicine) के  रूप में अपनाया जा रहा है।

आयुर्वेदिक का आविष्कार किसने किया? Who invented ayurvedic?

आपको यह जानकर बड़ा आश्चर्य होगा की मनुष्य जाति की उत्पत्ति से पहले जब रोग और रोगी कुछ भी नहीं था तब रोगों के निदान और चिकित्सा समेत समस्त आयुर्वेद के ज्ञान का प्रादुर्भाव (आगमन) हो चुका था. ब्रह्मा जी ने अपने त्रिकाल ज्ञान (भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों काल में क्या स्थिति होगी उसका ज्ञान) से ऐसा किया था।

विक्रम से पूर्व 15000 साल पहले ब्रह्मा जी स्वयं प्रकट हुए थे और ब्रह्मा जी लगभग 6000 सालों से भी अधिक सालों तक जीवित थे।

कालांतर में मनुष्य की आयु और मेधा (Intellect) में कमी आएगी इस बात को जानने वाले ब्रह्मदेव ने आयुर्वेद को 8 अंकों में विभाजित किया था। सुश्रुत संहिता के अनुसार इस आठ तंत्रों को अनुक्रम

  1. शल्य,
  2. शालाक्य, 
  3. कायचिकित्सा, 
  4. भूत विद्या,
  5. कौमारभृत्य,
  6. अगद,
  7. रसायन
  8. वाजीकरण

कहते हैं।

आयुर्वेदिक चिकित्सा कब शुरू हुई? when did ayurvedic medicine began?

Brahmaji

‘भावप्रकाश’ के अनुसार ब्रह्मदेव ने सर्वप्रथम आयुर्वेद का ज्ञान दक्ष प्रजापति जी को दिया। दक्ष प्रजापति से अश्विनीकुमारों ने आयुर्वेद की पढ़ाई की। अश्विनीकुमार दो जुड़वा भाई थे दोनों के रंग रूप आवाज एक थी। वह विश्वकर्मा की पुत्री सरण्यू और सूर्य के पुत्र थे। शल्य-चिकित्सक थे। ऋग्वेद में अश्विनीकुमारों का वर्णन  देवताओं के चिकित्सक के रूप में मिलता है। अब अश्विनी कुमारों से इंद्र ने आयुर्वेद की पढ़ाई की। इंद्र से अत्रि ऋषि, भारद्वाज ऋषि और बहुत सारे ऋषि-मुनियों ने आयुर्वेद की पढ़ाई की। हमारे परम उपकारी पुनर्वसु ऋषि, सुश्रुत ऋषि, चरक ऋषि इत्यादि  महर्षियों ने ‘मात्रेय संहिता’ ‘सुश्रुत संहिता’ और ‘चरक संहिता’ लिखकर आयुर्वेद का ज्ञान हम तक पहुंचाया।

आयुर्वेद और एलोपैथी में अंतर

सन् 1200-1300 के आसपास शार्ङ्गधर नामक आयुर्वेदाचार्य थे जिन्होने ‘शार्ङ्गधर संहिता’ नाम के आयुर्वेदिक ग्रंथ की रचना की।  इस ग्रंथ में उन्होंने ‘सुश्रुत संहिता’ एवं ‘चरक संहिता’ और अन्य रसायन शास्त्र के ग्रंथों का सार प्रस्तुत किया है।

शार्ङ्गधर संहिता के पूर्व खंड में 25 प्रकार के ज्वर (Fever) का उल्लेख किया है जबकि एलोपैथी में बुखार के लिए मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, येलो फीवर, टाइफाइड इस प्रकार के ही कुछ नाम सुने है।  इस में और दो-पाँच नाम अधिक जोड़ सकते हैं। यही तो Ayurvedic vs Allopathy की खासियत है। 

भारतीय और पश्चिमी सभ्यता में रिश्ते नातों के लिए शब्द

इस बात को अगर हम ठीक से समझना चाहे तो उदाहरण ले सकते हैं कि हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति में रिश्ते नाते की खूबसूरत शब्दावली है। संबोधन का एक शब्द मात्र बोलने से सामने वाले को उनके रिश्ते नाते के बारे में समझ में आ जाता है। जबकि अंग्रेजी में चाचा, मामा, फूफा, ताऊ सब UNCLE है, चाची, मामी, बुआ सब AUNTY, क्यूंकी इंग्लिश भाषा में यह सब रिश्तो के लिए शब्द ही नहीं है।

हिंदी और भारतीय भाषाओं में साला-जीजा, देवर, जेठ, साढू ऐसे भिन्न रिश्ते नातों के लिए भिन्न शब्द है जबकि अंग्रेजी भाषा में इन सभी के लिए ब्रदर इन लॉ शब्द का ही प्रयोग किया जाता है। दादा-नाना के लिए अंग्रेजी में सिर्फ ग्रैंडफादर शब्द है। पोती नाती के लिए ग्रैंड डॉटर  ननंद साली भाभी देवरानी जेठानी के लिए सिस्टर इन लॉ, चचेरा  फूफेरा ममेरा मौसेरा भाई बहनों के लिए सिर्फ Cousin शब्द का उपयोग किया जाता है, जीजा भांजा के लिए सिर्फ नेफ्यू कहा जाता है।

Ayurvedic vs Allopathy

कहने का तात्पर्य है कि इसी बात को हम आयुर्वेदिक बनाम एलोपैथी के बारे में भी लागू कर सकते हैं। आयुर्वेद में एक ही रोग के भिन्न भिन्न प्रकार एवं नाम दिए गए हैं। रोग के प्रकार को समझ कर निदान और उपचार किया जाता है। इसका फायदा यह होता है कि जो भी औषधि रोगी को दी जाती है उसकी कोई साइड इफेक्ट नहीं होती।

आयुर्वेद में एक ही रोग के भिन्न भिन्न प्रकार नाम एवं उपचार

‘शार्ङ्गधर संहिता’ में सात प्रकार के अतिसार (दस्त कि बीमारी) बताए गए हैं। वातातिसार, पित्तातिसार, कफ़ातिसार, त्रिदोषातिसार, शोकातिसार, आमातिसार, और भयातिसार।

21 प्रकार के कृमि, पाँच प्रकार की खाँसी (कास), 6 प्रकार के उन्माद, 20 प्रकार के मेह इसमें 20 वे नंबर पर जो है वह मधुमेह जिसे हम डायबिटीज कहते हैं। 18 प्रकार के कुष्ठ रोग याने कोढ, और कई प्रकार के अन्य सारे रोग के अलावा 80 प्रकार के वात रोग 40 प्रकार के पित्त रोग और 20 प्रकार के कफ के रोग एवं  नाक, कान, दांत आँख के अनेक प्रकार का उपचार आयुर्वेद द्वारा किया जाता है।

संक्षिप्त में कहा जाए तो स्त्रियों और बच्चों के रोगों समेत मानव शरीर के तमाम प्रकार के रोग एवं उसके इलाज का वर्णन आयुर्वेद के ग्रंथों में भरा पड़ा है।

आयुर्वेद के पास ऋतुओं का, रत्नों का, वनस्पतियों का, जड़ी बूटियों का, मानव एवं प्राणियों के मल मूत्र का मांस, हड्डी, रक्त, खनिज धातु, पदार्थ इत्यादि के गुणधर्म और उपयोग का सुक्ष्माती सूक्ष्म ज्ञान है।

अब बात करें Ayurvedic vs Allopathy साइड इफेक्ट के बारे में। एलोपैथी के निर्दोष औषध माने जाने वाले पेरासिटामोल के बारे में 18 साल पहले मैंने एक प्रतिष्ठित अखबार में पढ़ा था की आधुनिक शहरी और ग्रामीण जीवन में जीसका भरपूर उपयोग किया जाता है  वह पेरासिटामोल की खतरनाक साइड इफेक्ट भी है। अमरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के साउथवेस्ट मेडिकल विभाग के डॉक्टर विलियम ली के अनुसार यूएस की हॉस्पिटलो में किए गए अभ्यास से यह पता चला है कि पेरासिटामोल का सतत सेवन करने वाले 100  लोगों मैं से 30 व्यक्ति को साइड इफेक्ट के रूप में इसके घातक परिणाम  देखने को मिले हैं। जिसमें लीवर के और किडनी फेलियर के कई किस्से सामने आए हैं। शराब का सेवन करने वालों को पेरासिटामोल बिना चिकित्सक की सलाह नहीं लेनी चाहिए।

भारत में सामान्य बुखार, बदन दर्द, सर दर्द और सर्दी जुखाम के ऊपर एवं शारीरिक मानसिक थकान एवं आलस्य दूर करने के लिए पेरासिटामोल का भरपूर उपयोग किया जाता है। मेडिकल एवं जनरल स्टोर में ये बिना प्रिसक्रिप्शन विविध ब्रांड नेम से आसानी से उपलब्ध है।

18 साल पहले पेरासिटामोल का 1000 टन से ज्यादा उत्पादन देश में 20 से अधिक फार्मास्यूटिकल कंपनियां करती थी आज यह आंकड़ा और अधिक होगा। भारतवासी प्रति माह 11000 टन पेरासिटामोल पाउडर उस वक्त खा रहे थे।

ब्रूफेन प्लस पेरासिटामोल हमारे यहां अत्यंत लोकप्रिय है मगर उसकी खतरनाक साइड इफेक्ट भी है

विदेशों में खासकर पश्चिमी राष्ट्रों में पिछले कुछ सालों से पेरासिटामोल आधारित किसी भी प्रोडक्ट पर उस दवाई की साइड इफेक्ट की संपूर्ण जानकारी, डोज का प्रमाण और घातकता का प्रमाण प्रिंट किया जाता है। जबकि भारत में हम पेरासिटामोल का 250 से अधिक 500 और 1000 पावर तक के हाई डोज लेने से हिचकिचाते नहीं है। पेरासिटामोल का ओवरडोज गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।

ब्रूफेन प्लस पेरासिटामोल जो कि हमारे यहां अत्यंत लोकप्रिय है उसे पेईन किलर, सर्दी जुकाम की दवाई, कफ सिरप, जीर्ण ज्वर, संधिवात, दांतो के दर्द इत्यादि दवाइयों में भी इस्तेमाल किया जाता है। हमारे यहां दर्द को तुरंत ठीक करने के लिए, टेंपरेचर डाउन करने के लिए इसे रामबाण औषध माना जाता है, लेकिन डॉक्टर ली  के मुताबिक हफ्ते में पेरा (250) की चार गोली लेने से किडनी को नुकसान होता है। यह तो हमने केवल पेरासिटामोल की ही बात की है। पढ़े-लिखे लोग बाकी सारी दवाइयों की साइड इफेक्ट का गूगल से पता लगा सकते हैं।

केवल इतना करने से हम एलोपैथिक दवाइयों की साइड इफेक्ट से बच सकते  है

इससे विपरीत हम आयुर्वेद की बात करें तो पेरासिटामोल से ठीक होने वाले ऊपर वर्णन किए गए सभी रोगों के ऊपर आयुर्वेद में अलग-अलग प्रकार की निर्दोष दवाइयों की कोई कमी नहीं है। केवल हमें इसका ज्ञान लेना है, धैर्य रखकर इलाज करना है और आयुर्वेद में संपूर्ण विश्वास रखना है इससे हम एलोपैथिक की साइड इफेक्ट वाली दवाइयों से बच सकते हैं। हम एलोपैथी के बिलकुल खिलाफ है, विरोध कर रहे हैं ऐसा नहीं है मगर जहां तक साइड इफेक्ट का सवाल है हमें जिस रोग का उपचार आयुर्वेदिक दवाइयों से आसानी से हो सकता है उसके लिए एलोपैथिक के उपयोग के उपयोग से बचना चाहिए। Ayurvedic vs Allopathy को जान लेने के बाद हमे इतना तो अवश्य करना चाहिए।  

हमारे परिवार के स्वास्थ्य की रक्षा हेतु करने लायक एक महत्व का काम हमें आज ही  करना चाहिए

Ayurvedic vs Allopathy के बारे में इतना जान लेने के बाद अब  हमे   क्या  करना चाहिए यह प्रश्न हमारे मन में जरूर उठेगा।  इसका उत्तर यह है की हमारे घर मे जहां  हम खाना खाने बैठते है उस जगह के आसपास कही या फिर डाइनिंग टेबल के ऊपर अथवा पानी पीने की जगह के आसपास कहीं पर हमें आयुर्वेदिक दवाइयों के लिए एक जगह बनानी पड़ेगी। आयुर्वेद का सामान्य ज्ञान भी हमें और हमारी आने वाली पीढ़ियों को भयंकर बीमारियों से बचा सकता है।

आयुर्वेद के अनुसार दिनचर्या, रितुचर्या, वनौषधियों और तमाम प्रकार की बाजार में मिलने वाली औषधियों के बारे में हम इस वेबसाइट के माध्यम से आगे जानकारी प्राप्त करते रहेंगे जिस से आप अपने आयुर्वेदिक दवाइयों के लिए बनाई हुई खास जगह में रखकर बीमारी में लाभ प्राप्त कर सके।

इसे भी पढ़ें: How Long Will We Consume Poisonous Food? जहरीला खान पान हम कब तक करेंगे?

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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