Thursday, July 17, 2025
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फूड वेस्ट से पैसा कैसे कमाया जाए

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Apple food wastes

खाद्यान्न का अपव्यय दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। सभी देश भोजन की बर्बादी रोकने के लिए गंभीर प्रयास कर रहे हैं। हालांकि पूर्ण रूप से इसमें सफलता मिलना मुश्किल है, लेकिन ऐसी स्थिति में हमें क्या करना चाहिए? यह बड़ा सवाल है। सर्वप्रथम तो हमें खाद्यान्न को बर्बाद होने से रोकने के उपाय करने चाहिए, और  फूड वेस्ट से पैसा कैसे कमाया जाए ये भी सीखना चाहिए।

फूड वेस्ट के विषय में यहां पर हम बात करें तो, एक तरफ हम महंगाई से त्रस्त हैं। महंगाई के कारण जीना मुश्किल होता जा रहा है। जब की दूसरी और हम अनाज, फलों और सब्जियों को बर्बाद करने से पीछे नहीं हटते। घर-होटल-रेस्तरां या भोज में भोजन उतना ही बेकार करते है जितना की भोजन।

भारत  अमरीका सहित दुनिया में 40% अन्न बर्बाद हो जाता है

चीन के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश है। क्या आप जानते है भारत में उत्पादित भोजन का लगभग 40% अन्न बर्बाद हो जाता है? पर्याप्त खाद्य उत्पादन के बावजूद, UN  के मुताबिक लगभग 19 करोड़ भारतीय कुपोषित हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में खाद्य अपव्यय का मूल्य लगभग 92,000 करोड़ प्रतिवर्ष है।

फूड सस्टेनेबिलिटी इंडेक्स 2017 के अनुसार, प्रति व्यक्ति सबसे कम खाद्य अपशिष्ट उत्पादन वाले देशों में ग्रीस और चीन (प्रति वर्ष 44 किग्रा) शामिल हैं। इसके बाद भारत (51 किग्रा) है। सर्वाधिक अपशिष्ट निर्माण वाले देश ऑस्ट्रेलिया (361 किलोग्राम) हैं, इसके बाद अमेरिका (278 किलो) हैं।

Related video : https://www.youtube.com/watch?v=660RdeA9xCQ

भारत में आवश्यकता से भोजन का अधिक उत्पादन

भारत को हर साल 235-240 मिलियन टन भोजन की आवश्यकता होती है। जिसके सामने 2018-19 में 283.37 मिलियन टन भोजन का उत्पादन किया गया था। इसका मतलब है कि देश में भोजन की कोई कमी नहीं है, लेकिन 40% भोजन बर्बाद हो जाना एक बड़ी समस्या है।

अब प्रश्न ये उठता है की खाद्य अपव्यय को रोकने के लिए हमे क्या करना चाहिए? सर्व प्रथम तो इसके लिए हमे स्वयं जागरूक बनकर, हमारे घर से ही शुरुआत करनी पड़ेगी। दूसरा होटल-रेस्तरां, शादी-ब्याह और पार्टियों में खाने के अपव्यय को रोकना होगा। तीसरा, स्वयं और सरकार को भोजन की बर्बादी रोकने का अभियान शुरू करना पड़ेगा।

बाबा रामदेव और उनके जैसे अन्य व्यक्ति तथा कंपनीया देश में कोल्ड स्टोरेज की श्रृंखला स्थापित करे 

Cold storage room-produce-chiller-fruits-

यहां हम विभिन्न देशों के विद्वानों के कुछ दिलचस्प निष्कर्ष देखेंगे। संभव है कि ये चौंकाने वाले निष्कर्ष और इसके पीछे के कारणों को जानने से, हमें इस समस्या को हल करने में मदद मिलेगी। और इस समस्या का समाधान खोज कर फूड वेस्ट से पैसा कैसे कमाया जाए इसकी अनेक तरकीब भी मिलेगी।

वर्तमान में, दुनिया के खाद्य कचरे में 47 लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होता है। विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार, दुनिया के अधिकांश देशों में लगभग 40 प्रतिशत भोजन बर्बाद हो जाता है।

एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया में फलों और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक,  भारत हर साल कुल उत्पादन का 18% सब्जियों को बर्बाद करता है। इसके पीछे मुख्य कारण कोल्ड स्टोरेज और रेफ्रिजरेटर ट्रांसपोर्ट की कमी माना जाता है। खाद्यान्न, फल ​​और सब्जियों के नुकसान से हर साल करोड़ों रुपये का नुकसान होता है।

देश में केवल 7,645 कोल्ड स्टोरेज दोगुना से ज्यादा की जरूरत 

वर्तमान में आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, देश में केवल 7,645 कोल्ड स्टोरेज हैं। इसकी क्षमता 37-39 मिलियन टन (MT) है। जो कि दोगुना होकर लगभग 75 मिलियन मीट्रिक टन होना चाहिए। इसके लिए 65,000 करोड़ रुपये के अनुमानित निवेश की आवश्यकता है।

यदि बाबा रामदेव और उनके जैसे अन्य व्यक्ति तथा कंपनीया आगे आकर देश के हर कोने में कृषि उपज के उचित रखरखाव के लिए कोल्ड स्टोरेज स्थापित करते है,  तो स्वार्थ के साथ परमार्थ किया जा सकता है।

भारत में कुल राज्यों में से केवल चार राज्यों में विनिर्माण क्षेत्र के पास कोल्ड स्टोरेज की सुविधा है। अन्य 24 राज्यों में ऐसी सुविधा नहीं है।

भारत में करोड़ों रुपये का सरकारी खाद्यान्न बर्बाद 

ओम प्रकाश शर्मा नाम के एक आरटीआई एक्टिविस्ट द्वारा 2013 में दायर एक आरटीआई के जवाब में, भारतीय खाद्य निगम (FCI) ने स्वीकार किया कि 2005 से 2013 के बीच, भारत में करोड़ों रुपये के 1,94,502 मीट्रिक टन सरकारी खाद्यान्न बर्बाद हो गया।

अगर हम अमेरिका में इस समस्या के बारे में बात करते हैं, तो अमेरिका में उत्पादित सभी प्रकार के भोजन में से 40% भोजन बर्बाद या खराब हो जाता है। दूसरी ओर, 50 मिलियन अमेरिकी भोजन प्राप्त करने के बारे में असुरक्षित हैं। कई मामलों में, भोजन की बर्बादी के कारण लोगों और प्रणाली पर कीमतों का बोझ पड़ता है।

अमेरिकी हर साल 5 165 बिलियन मूल्य के भोजन को फेंक देते हैं। संयुक्त राज्य में, प्रत्येक वर्ष चार परिवार 1,600 मूल्य के भोजन को बर्बाद कर देते हैं। अमेरिका में हर छह में से एक अमेरिकी भूखा मर रहा है।

सिंगापुर भोजन की बर्बादी के बारे में बहुत सचेत

सिंगापुर में हुए एक हालिया सर्वेक्षण में पता चला है कि वहां पर 10 में से 9 लोग भोजन की बर्बादी के बारे में बहुत सचेत हैं। वहां के ज्यादातर लोगों का मानना ​​है कि खाद्य और पेय कंपनियों को अपने अनसोल्ड और निकट-समाप्ति की तारीख वाले उत्पादों को सस्ते दाम पर वितरित करना या बेचना चाहिए , जो कि जरूरतमंदों के लिए खाद्य हैं।

फिर भी राष्ट्रीय पर्यावरण एजेंसी के अनुसार, सिंगापुर में पिछले 10 वर्षों में खाद्य अपशिष्ट की मात्रा में लगभग 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

यह संख्या सिंगापुर की बढ़ती आबादी और आर्थिक गतिविधि के साथ बढ़ने की उम्मीद है।

सर्वेक्षण में पाया गया कि सिंगापुर के प्रमुख होटलों, रेस्तरां और आउटलेट्स में से  फेयर प्राइस FairPrice, ब्रेडटॉक BreadTalk, मैकडॉनल्ड्स McDonald’s और कोल्ड स्टोरेज Cold Storage अपने भोजन की बर्बादी को कम करने में सक्षम हैं।

सिंगापुर के प्रमुख होटलों, रेस्तरां और आउटलेट्स में अनसोल्ड और निकट-समाप्ति की तारीख वाले उत्पादों के सस्ते दाम तथा फ्री 

सिंगापुर की यह कंपनियां भोजन की बर्बादी कम करती हैं। इसे पूरा समर्थन दिया जाता है। इस ऑपरेशन में, 10 में से 8 कंपनियां उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता फैलाकर खाद्य अपशिष्ट की मात्रा को कम करने में सक्षम हुई हैं। और 10 में से 7 कंपनियां लगातार अपने आउटलेट पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।

FairPrice आउटलेट्स पर किसी भी कारण से खाने की चीजे और सब्जियां अप्रयुक्त (Unused ) रहती हैं, तब इसे सुपरमार्केट श्रृंखला द्वारा छोटे टुकड़ों में तोड़ दिया जाता है, और नई पैकेजिंग में कम कीमतों पर बेचा जाता है। बाद में इसका उपयोग खाद्य कचरे को खाद बनाने के लिए किया जाता है।

सुपरमार्केट श्रृंखला के सेंगक्सियॉन्ग ShengSiong के प्रवक्ता के अनुसार, कंपनी ने food waste रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं। समाप्ति तिथि के पास खाद्य पदार्थों में कर्मचारियों को छूट प्रदान करते हैं, और ड्राइवरों को वस्तुएं देते हैं ताकि वे अपने परिवार और दोस्तों को भोजन की बर्बादी से निपटने के लिए वितरित कर सकें।

प्रमुख होटलों, रेस्तरां, आउटलेट्स और सुपरमार्केट श्रृंखला द्वारा इस प्रकार की चीजे दान भी की जाती है।

फूड रीसाइक्लिंग मशीन बनाकर फूड वेस्ट से पैसा कैसे कमाया जाए

food waste recycling machine

अब बात करते है फूड वेस्ट से पैसा कैसे कमाया जाए। आजकल अधिकतर घरों में आटा चक्की, फ्रिज, वाशिंग मशीन इत्यादि होना आम बात हो गई है। अब तो डिशवॉशर मशीन और खाद्य तेल बनाने का मशीन भी लोग खरीद रहे हैं। ऐसे में हमे घर में इस्तेमाल हो सके वैसा अच्छा फूड रीसाइक्लिंग मशीन बनाना चाहिए।

आप शायद जानते है, एक चीज जो आम तौर पर खाद्य अपशिष्ट से निकलती है वह है खाद। आजकल किचन गार्डेन और होम गार्डेन मे ऑर्गेनिक खाद का अधिक इस्तेमाल होता है। जो की आप घरेलु फूड वेस्ट से उत्पन्न कर सकते है।

सब्जी मंडी, होटल, रेस्तरां, शादी-ब्याह, बर्थडे और कई सारी पार्टियों में जो फूड वेस्ट निकलता है, उसके रीसाइक्लिंग से खाद बनाने के लिए, बड़े खाद्य अपशिष्ट रीसाइक्लिंग मशीनों का निर्माण और बिक्री भी किया जा सकता है।

मोबाइल ऐप और वेबसाइट बनाकर फूड वेस्ट से पैसा कैसे कमाया जाए

Business ideas

 फूड वेस्ट एकत्रित करना और उसका रीसाइक्लिंग करना भी एक व्यवसाय है। छोटी बड़ी पार्टियों में होने वाली दावत और भोज से एवं होटल, रेस्टोरेंट, स्कूल, कॉलेज, धार्मिक स्थल वगैरह जगहों पर, बचा हुआ खाना तथा फूड वेस्ट एकत्रित करने के लिए मोबाइल एप्लीकेशन और वेबसाइट बनाना चाहिए।

फूड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए मोबाइल ऐप और वेबसाइट बनाकर, खाना इकट्ठा करने और वितरित करने के लिए स्वयंसेवकों का नेटवर्क भी खड़ा करना चाहिए। इससे अच्छा खाना जरूरतमंद लोगों में बांटने का, और फूड वेस्ट के जरिए पैसा कमाने का काम किया जा सकता है।

जैविक उर्वरक कंपनी शुरू करके फूड वेस्ट से पैसा कैसे कमाया जाए

Vegetables Wastes

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रासायनिक उर्वरकों Fertilizer के व्यापक उपयोग से खान पान जहरीला और धरती बंजर बन रही है।  इसलिए अब खेतों, बागानों में जैविक उर्वरक का उपयोग दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। आप इसका फायदा उठाकर ऐसी कंपनी शुरू कर सकते हैं, जो खाद्य कचरे को वाणिज्यिक उर्वरक में बदल देती है। इस प्रकार आप एक जैविक उर्वरक कंपनी शुरू कर सकते है।

दुनिया में लाखों लोग भूखे सोते हैं, उनको खाना नहीं मिलता है, और हम अन्नदेव का अनादर करते हुए खाना बर्बाद कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में अपना सुधार ही समाज की सबसे बड़ी सेवा है। हमें खाना बर्बाद नहीं करने की शुरुआत हमारे घर से ही करनी चाहिए, और जाहिर समारंभ में कम से कम खाना बर्बाद हो इसके लिए जागरूकता फैलानी चाहिए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

आयुर्वेद में वात पित्त कफ प्रकृति

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वात-पित्त-कफ प्रकृति

क्या आपकी पत्नी माँ बनने वाली है? क्या आपको सात्विक प्रकृति का बच्चा चाहिए? ? क्या आप जानते हो वात पित्त कफ का मतलब क्या है? आयुर्वेद में वात पित्त कफ प्रकृति क्या है? आपकी प्रकृति क्या है? क्या आप अपनी प्रकृति के अनुसार खान-पान, आहार-विहार करना चाहते हो? जीवन के असली आनंद का अनुभव लेना चाहते हो? तो ये आर्टिकल आपके लिए है।  

इस आर्टिकल में हम आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों के अनुसार त्रिधातु, त्रिदोष और प्रकृति क्या है? ये  समझने की कोशिश करते हैं। और प्रकृति के अनुसार मनुष्य के आहार विहार कैसे होने चाहिए यह भी जानते हैं।

आयुर्वेद में वात पित्त कफ प्रकृति : प्रकृतियों का प्रभाव   

महर्षि चरक ने चरक संहिता में रोगी की परीक्षा करने के कुछ उपाय बताए हैं, उनमें प्रकृति परीक्षा भी एक है। चरक कहते हैं जब कोई बच्चा अपनी माता के गर्भ में आता है, तब उस पर चार प्रकृतियों का प्रभाव पड़ता है।

सर्व प्रथम गर्भ पर रज, वीर्य की प्रकृति का असर पड़ता है। क्योंकि गर्भ की उत्पत्ति रज तथा वीर्य से ही होती है। रज तथा वीर्य माता-पिता के शरीर से उत्पन्न होते हैं, और माता-पिता का शरीर उसके आहार विहार से बनता है।

शुक्रशोणित प्रकृति

Pregnant

अब यदि माता-पिता का भोजन, आचार-विचार, वाणी-बर्तन यह सभी सात्विक है, तो उनके शरीर में सभी धातुओं जैसे कि रस, रक्त, मांस, चर्बी, हड्डी, मज़ा और वीर्य पर सात्विक असर होगी। और अगर रजोगुण या तमोगुण का प्रभाव ज्यादा है, तो शरीर की सब धातुओं में राजस या तामस प्रभाव होगा। इसकी सीधी असर गर्भस्थ बच्चे के शरीर पर पड़ेगी। इस प्रकार गर्भ पर पड़ने वाली सर्वप्रथम असर को शुक्रशोणित प्रकृति कहते हैं।

सत्व, रजोगुण और तमोगुण क्या है इस विषय में हम इस आर्टिकल में आगे चर्चा करेंगे।

काल और गर्भाशय की प्रकृति

Ritu-आयुर्वेद में वात पित्त कफ प्रकृति

अब बात करते है दूसरी प्रकृति की। गर्भस्थ शिशु के ऊपर पड़ने वाली दूसरी असर को ‘काल और गर्भाशय की प्रकृति’ कहते हैं। आयुर्वेद के अनुसार प्रत्येक ऋतु में अलग-अलग वात, पित्त, कफ दोषों का प्राधान्य रहता है। इसलिए कौन सी ऋतु में गर्भ रहता है इसके अनुसार बच्चे पर दूसरी प्रकृति की असर पड़ती है।

माता के आहार विहार की प्रकृति

pregnant women आयुर्वेद में वात पित्त कफ प्रकृति

गर्भस्थ बच्चे पर तीसरी असर माता के गर्भाशय में जिस दोष की प्रधानता होगी उसकी पड़ती है। इसे माता के आहार विहार की प्रकृति कहते है।

गर्भ के प्रथम दिन से लेकर प्रसव के दिन तक बच्चे के शरीर का पालन पोषण माता के शरीर से ही होता है। माता जैसा भोजन करती है वैसा ही रुधिर उसके शरीर में बनता है और उसी से गर्भस्थ शिशु का पालन पोषण होता है। माता के भोजन में जिस दोष की विशेषता रहेगी उसका बच्चे की प्रकृति पर अवश्य प्रभाव पड़ेगा।

महाप्रयुक्तविकारप्रकृति

चौथी प्रकृति का नाम है ‘महाप्रयुक्तविकारप्रकृति’। गर्भस्थ बच्चे के प्रारब्ध कर्मों के अनुसार उत्तम, मध्यम या निकृष्ट विकारों तथा पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु यानी पंचमहाभूतों का प्रभाव भी बच्चे की प्रकृति पर पड़ेगा।

यह चारों प्रकृतियां जिस किसी एक या अनेक दोषों से प्रभावित होगी उसकी सीधी असर से गर्भ प्रभावित होगा। इसमें जिस किसी दोष की प्रधानता होगी वह बच्चे की जन्मजात प्रकृति कहलाएगी।

इसी कारण से कोई व्यक्ति जन्म से वात प्रकृति तो कोई पित्त प्रकृति तो कोई कफ प्रकृति या फिर मिश्र प्रकृति के होते है। कोई समधातु भी होते है। इनमें सभी धातु समान होती है।

कफ प्रधान प्रकृति

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श्लेष्मा अर्थात कफ में स्निग्धता आदि अनेक गुण है। कफ स्निग्ध और श्लक्ष्ण होता है। जिसका शरीर चिकना और कोमल होता है वह व्यक्ति कफ प्रधान प्रकृति की होती है। चिकनाई दो प्रकार की होती है। एक तेल और घी की चिकनाई, दूसरी रंदा फेरि हुई लकड़ी की चिकनाई। घी को स्निग्ध और रंदा फेरि हुई लकड़ी को श्लक्ष्ण कहा जाता है।

कफ प्रकृति के व्यक्ति दिखने में सुंदर कोमल और स्वच्छ शरीर वाले होते हैं।  उनका शरीर बलिष्ठ और सुसंगठित होता है। उनके सब अंग सुडौल और भराउदार होते है। भोजन शांति से करते है। धीरे धीरे बोलते है। किसी भी काम में जल्दबाजी नहीं करते। उनके मनमें घबहराहट या अन्य विकार जल्दी उत्पन्न होते है। स्वरूपवान, मधुर वाणी, बलवान, धनवान, विद्यावान, तेजस्वी और आयुष्यमान होते है।

पित्त प्रधान प्रकृति

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पित्त प्रधान व्यक्ति का स्वभाव गर्म होता है। शरीर में तीक्ष्ण, उग्र, कड़वी खट्टी गंध (दुर्गंध) होती है। पित्त प्रकृति के व्यक्ति को ज्यादा गर्मी सहन नहीं होती है। मुंह पर कील मुंहासे होते हैं। बालों में जल्दी सफेदी आ जाती है। भूख प्यास ज्यादा लगती है। पित्त प्रकृति के पुरुष पराक्रमी होते हैं। पेशाब और पसीना ज्यादा होता है।

वात प्रधान प्रकृति

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चलत्व, लघुत्व, रुक्षत्व, बहुत्व, शीघ्रत्व, शीतत्व, पुरुषत्व और विषदत्व ये सब वायु के गुण है। इसमें  रुक्षता के कारण वात प्रकृति के व्यक्ति का शरीर रूखा, छोटा और दुर्बल होता है। उनकी आवाज रूखी, धीमी फटी हुई और तुतलाती हुई होती है। इनकी नींद कम होती है। बातचीत में हल्कापन और चंचलता रहती है।

वातप्रकृति की व्यक्ति के शरीर के हाथ, पैर, कन्धे, सिर, जिह्वा इत्यादि स्थिर नहीं रहते। वातिक व्यक्ति बोलते बहुत है। मन में क्षोभ, विकार, घबराहट, प्रेम और वैराग्य इन्हे जल्दी आते है। सुनी हुई बातें झटपट याद रहती है परंतु जल्दी भूल जाते हैं। ठंड सहन नहीं कर सकते। शरीर में रूखापन रहता है इसलिए फटा करता हैं।

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इस प्रकार वात, पित्त और कफ इन तीनों प्रकृतियों के विशेष गुणदोषों का वर्णन प्राचीन ग्रंथों में लिखे हुए है।

बहुत से व्यक्तियों की प्रकृति में दो दो दोषों का मिश्रण रहता है। कोई कफ-पित्त, वात-पित्त, वात-कफ जैसी मिश्र प्रकृति के भी होते है। 

आयुर्वेद में वात पित्त कफ प्रकृति का अर्थ

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आयुर्वेद शास्त्र वात पित्त कफ इस तीन धातुओं के ऊपर प्रतिष्ठित हैं। यह तीन धातु प्राकृत अवस्था में शरीर में रहती है। इसमें विकृति आने पर शरीर में विविध प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। उसका उचित प्रतिकार न करने पर शरीर का नाश होता है।

यह तीनों धातु जब तक प्राकृत अवस्था में शरीर में रहती है तब तक उसे धातु कहते हैं परंतु जब विकृत या विषम अवस्था में होती है तब यह देह को दूषित करने वाला दोष कहलाती है।

आयुर्वेद के ग्रंथों मे लिखा है,

वायुः, पितं, कफ़ो दोषा धातवश्चमला मताः  

अर्थात् वात, पित्त और कफ इन्हें दोष भी कहते हैं, धातु भी कहते हैं और मल भी।

महर्षि सुश्रुत के अनुसार आयुर्वेद में वात पित्त कफ प्रकृति :

आयुर्वेद में वात पित्त कफ प्रकृति

सुश्रुत नामक महर्षि कहते हैं की दोष, धातु और मल शरीर के मूल है। वृक्ष की वृद्धि अथवा क्षय मूल की अच्छी बुरी स्थिति पर जैसे निर्भर है, वैसे ही शरीर की वृद्धि और क्षय का आधार भी शरीर के मूलभूत ऐसे दोष, धातु और मल के ऊपर ही निर्भर है।

महर्षि सुश्रुत कहते हैं : जैसे चंद्र, सूर्य और वायु यह तीनों महा शक्तियां हैं, वैसे ही वात पित्त और कफ यह तीनों शरीर की उत्पत्ति के कारण रूप हैं। वेदों ने चंद्र सूर्य और वायु इन तीनों देवताओं को अनुक्रम कफ, पित्त और वात के अधिपति देवता माना है। कफ का अधिष्ठायक चंद्रमा, पित्त का अधिष्ठायक सूर्य और रुक्षता का देवता वायु है। 

दिन के तीन हिस्से सुबह, दोपहर, शाम, के अनुसार कफ, पित्त, वात, का मनुष्य पर प्रभाव पड़ता है। सुबह में कफ, दोपहर में पित्त और शाम को वात की असर अधिक होती है। 

रात्रि में इसके विपरीत पहले हिस्से में वायु मध्य में पित्त और अंतिम भाग में कफ का समय होता है 

आयुर्वेद में वात पित्त कफ प्रकृति : प्रकृति के कई नाम

यह विश्व सत्व गुण, रजोगुण और तमोगुण की लीला मात्र है। सत्त्वगुण प्रकाश है। सत्व ही ज्ञान और सुख का कारण रूप है। रजोगुण रागात्मक और दुख का कारण है। तमोगुण बुद्धि का आच्छादन करता है और मोह का मुख्य कारण है। यह तीनों गुण यदि समान रूप से है तो वह प्रकृति रूप है, और अगर कम ज्यादा हो तो वह विकृति कहलाते हैं।

प्रकृति के कई नाम है। प्रधान, प्रकृति, शक्ति, और अविकृति जैसे नामों से प्रकृति को जाना जाता है। प्रकृति को स्वभाव, तासीर, मूलभूत स्थिति, कुदरत भी कहते है।

प्रत्येक इन्सान की एक प्रकृति होती है, जीसे हम व्यक्ति का स्वभाव कहते है। प्रकृति जन्म, पूर्वजन्म के संस्कार और माता-पिता से बनती है। अभी अभी इस विषय को हमने समझा है और इस आर्टिकल मे आगे हम सत्व, रज, तम यह तीन प्रकृति के गुणों को विस्तार से समझेंगे।

सत्व, रज, तम यह तीन प्रकृति के गुण ईस प्रकार है

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सत्त्व :

Family

आस्तिक (धर्म-ध्यान, लोक-परलोक, मुक्ति में जो विश्वास रख कर कर्म करता है), परिवार में विभाग करके भोजन करना, अनुत्ताप (क्रोध रहित) सत्य बोलना, मेधा (निर्णायक बुद्धि), बुद्धि, द्रुति (काम, क्रोध, लोभ, भूत, प्रेत आदि आवेश से बचना), क्षमा, करुणा, ज्ञान, निर्दम्भता, निर्दोष, निष्काम, अस्पृह, कर्म, विनय और नित्य कर्ममे प्रीति ये सब लक्षण सत्वगुण युक्त मनके है, ऐसा ज्ञानी पुरुषों ने कहा है।

रजोगुण :

Angry

महा क्रोधी, दंभी, कामी, सत्यवादी, अवीर, मारपीट करना, सुख-दुख की अधिक इच्छा, अहंकारी, ऐश्वर्य पाकर अभिमान करना, अविक आनंद मानना और पृथ्वी में घूमना, यह सब रजोगुणी मन के लक्षण विख्यात है। 

तमोगुण : 

Sleeping

नास्तिकपन, महाआलस्य,  चित्तमे अत्यंत खेद, नीच बुद्धि, निन्दित काम और निन्दित सुखोमे निरंतर प्रीति, दिन-रात सोने की इच्छा, सब कामों में अज्ञानपन, सदैव क्रोध का अंधकार चित्तमे छाये रहना, सर्व कार्यों में मूढ़ता ये सब लक्षण तमोगुण वाले मनका है।

ईस प्रकार अधिक सत्व गुण वाला व्यक्ति सात्विक, अधिक रजोगुण वाला राजसी और अधिक तमोगुण वाला व्यक्ति तामसी कहलाता है।

रजोगुण और तमोगुण मन के दोष है। मन की जितनी भी बीमारियां होती है इन्हीं के मूल कारण ये दोष है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मान, शोक, ईर्षा, मद, उद्वेग (घबराहट), भय, इत्यादि बीमारियां इन्हीं से होती है। 

वात, पित्त और कफ शारीरिक बीमारिओ के मुख्य कारण है। ये विकृत या विषम अवस्था में देह को दूषित करने वाला दोष बनता है।

दिनचर्या और ऋतुचर्या का पालन और प्रकृति के अनुसार योग्य आहार-विहार से मनुष्य स्वस्थ रहेता है।

आयुर्वेद में वात पित्त कफ प्रकृति के अनुसार आहार

 वातज प्रकृति आहार – Food for Vataja Prakriti

( वातज प्रकृति) सेवन योग्य – To be Partaken

फल Fruits सब्जियां  धान्य मसाले दुग्ध पदार्थ पेय 
मीठे फल – Sweet fruits

आम – Mango

मीठे अंगूर – Sweet grapes

केला – Banana

नारियल – Coconut

खरबूजा – Muskmelon

पपीता – Papaya

ताजे अंजीर – Fresh figs

खजूर – Date

अनानास – Pineapple

संतरा – Orange

भिगोए मुनक्का – Soaked Raisins

मूंगफली – Groundnut

पकाई हुई सब्जियां -Cooked vegetables

पकाया हुआ प्याज -Cooked Onion

अंकुरित बीज – Sprouted Seeds

गाजर – Carrot

मेथी – Fenugreek Green

खीरा – Cucumber

मूली – Radish

कद्दू  – Pumpkin

लहसुन – Garlic

 

पकाया हुआ अनाज Cooked Cereal

गेहूं  – Wheat

सभी प्रकार के चावल  – All kind of rice

मूंग – Mung Bean

सभी मसाले – All Spices

सौंफ – Fennel

हींग – Asafoetida

इलायची – Cardamom

अजवायन – Ajwain

तुलसी – Basil

काली मिर्च –            Black pepper

अदरक – Ginger

पुदीना – Mint

पका हुआ प्याज – Cooked Onion

नींबू – Lemon

सभी प्रकार के अचार – All kinds of Pickles

 

सभी प्रकार के दूध – All kinds of Milk

घी – Ghee

मक्खन – Butter

छाछ – Buttermilk

दही – Curd

पनीर – Cheese

आइसक्रीम – Ice cream

सभी प्रकार के फलों का – रस All kinds of fruit juice

मिल्कशेक – Milkshake

वातज प्रकृति आहार – Food for Vataja Prakriti

(वातज प्रकृति) सेवन के अयोग्य – (Vataja Prakriti) To be Avoided

फल सब्जियां  धान्य मसाले दुग्ध पदार्थ पेय 
अधिक मात्रा में फल – High amount of fruit

अनार – Pomegranate

तरबूज – Watermelon

नाशपाती – Pear

सूखी सब्जियां – Dry Vegetables

कच्ची सब्जियां – Raw Vegetables

पत्ता गोभी – Cabbage

टमाटर – Tomatoes

फूलगोभी – Cauliflower

कैप्सिकम मिर्च  -Capsicum

मटर – Peas

कच्चा प्याज – Raw Onion

कच्चे धान्य – Raw cereal

जौ – Barley

बाजरा – Millet

मक्का – Corn

राजमा – Rajma Beans

सोयाबीन – Soybean

उड़द – Urad

मसूर – Lentil

वाल  – Beans

 

सूखा दूध पाउडर – Skim Milk powder

बकरी का दूध – Goat’s milk

नाशपाती का रस – Pear juice

अनार का रस Pomegranate juice

सोडा पेय – Soda, Cold drinks

पित्तज प्रकृति आहार – Food for Pittja Prakriti

(पित्तज प्रकृति) सेवन  योग्य – Pittja Prakriti To be Partaken

फल सब्जियां  धान्य मसाले दुग्ध पदार्थ पेय 
Sweet fruit – मीठा फल

Sweet apple – मीठा सेब

Coconut – नारियल

Fig – अंजीर

Sweet grapes – मीठा अंगूर

Sweet mango – मीठा आम

Sweet melon – मीठा खरबूज

Sweet orange – मीठा नारंगी

Pear – नाशपाती

Pomegranate – अनार

Dates – खजूर

Raisins – किशमिश

Water melon – तरबूज

 

Sweet Vegetable – मीठी सब्जी

Bitter Vegetable – कड़वी सब्जी

Cabbage – पत्ता गोभी

Ladies finger – भिन्डी

Potato – आलू

Cucumber – खीरा

Germinated seeds – अंकुरित बीज

Pea – मटर

Capsicum – शिमला मिर्च

Sweet Potato – शकरकंद

Barley – जौ

Rice – चावल

Wheat – गेहूँ

Choker bran – चोकर चोकर

Pulses

Kidney beans – राज़में

Mung beans – मूंग

Soyabean – सोयाबीन

Rajma – राजमा

Coriander – धनिया

Turmeric – हल्दी

Cinnamon – दालचीनी

Cardamom – इलायची

Fennel – सौंफ

Small quantity of black pepper – छोटी मात्रा में काली मिर्च

Milk – दूध

Butter – मक्खन

Ghee – घी

Nearly all Sugar-Milk  containing Sweets  – प्रायः दूध और चीनी युक्त सभी मिठाई

Generally all sweet fruit juice – आम तौर पर सभी मीठे फलों का रस

पित्तज प्रकृति आहार – Food for Pittja Prakriti

(पित्तज प्रकृति) सेवन के अयोग्य – (Pittja Prakriti) To be Avoided

फल   सब्जियां  धान्य मसाले दुग्ध पदार्थ  पेय 
खट्टे सेब, अंगूर, बेर, नींबू, संतरे, सूखे मेवे,  इत्यादि सभी प्रकार के खट्टे फल -All types of citrus fruits like apple, grape, plum, lemon, orange, dry fruits, etc.

 

खट्टी सब्जियां – Sour Vegetables

मेथी – Fenugreek Green

लहसुन – Garlic

शलगम – Turnip

सरसों -Mustard

मूली – Radish

टमाटर – Tomatoes

मक्का – Corn

बाजरा – Millet

भूरे चावल – Brown rice

मसूर – Black Lentil

प्रायः सभी गर्म मसाले – Generally all hot Spices खट्टी छाछ – Sour buttermilk

दही – Curd

पनीर – Cheese

 

—————–

गुड – Jaggery

शराब – Alcohol

केले का शेक – Banana shake

कॉफ़ी – Coffee

सोडा पेय – Soda, Cold drinks

 

कफ़ज प्रकृति आहार – Food for Kaphaja Prakriti

(कफ़ज प्रकृति) सेवन  योग्य (Kaphaja Prakriti) To be Partaken

फल   सब्जियां  धान्य मसाले दुग्ध पदार्थ  पेय 
Apple – सेब

Pear – नाशपाती

Raisins – किशमिश

 

Raw Vegetables – कच्ची सब्जियां

Cabbage – पत्ता गोभी

Carrot -गाजर

Bitter Vegetables – तीखी, कड़वी, कसैली सब्जियां

Salad Vegetables – सलाद सब्जियां

Fenugreek – मेथी

Garlic – लहसुन

Ladies finger – भिन्डी

Radish – मूली

Onion – प्याज

Germinated seeds – अंकुरित बीज

Pea – मटर

Spinach – पालक

 

 

 

 

 

 

Wheat Bran – गेहूँ का भूसा

Barley – जौ

Millet – बाजरा

Corn – मक्का

Almost all – प्रायः सभी Milk in small quantity -दूध कम मात्रा में

Butter extracted fresh buttermilk – मक्खन निकाला ताजा छाछ

Goat’s milk – बकरी का दूध


Honey and Jaggery in small quantities – शहद और गुड़ कम मात्रा में

Low milk tea and coffee – कम दूध वाली चाय और कॉफी

Ginger juice – अदरक का रस

Soda, Cold drinks

कफ़ज प्रकृति आहार – Food for Kaphaja Prakriti

(कफ़ज प्रकृति)  सेवन के अयोग्य – (Kaphaja Prakriti) To be Avoided

फल   सब्जियां  धान्य मसाले दुग्ध पदार्थ  पेय 
Sweet fruits – मीठे फल

All types of citrus fruits – सभी प्रकार के खट्टे फल

Coconut – नारियल

Fig – अंजीर

Pineapple – अनानास

Orange – संतरा

Banana – केला

Lemon – नींबू

Water melon – तरबूज

 

 

 

 

Sweet and juicy vegetables – मीठी व रसेदार सब्जियां Rice – चावल

Wheat – गेहूँ

Jayafala – जायफल  All kinds of Milk – सभी प्रकार के दूध

Butter – मक्खन

Ghee – घी

Curd – दही

Cheese – पनीर


All kinds of sweets – सभी प्रकार की मिठाइयां

Milkshake – मिल्कशेक

Coconut Water – नारियल पानी

दिनचर्या व ऋतुचर्या : Dinacharya va Ritucharya

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Dincharya-Rutucharya

मनुष्य मात्र को दीर्घ याने लंबा और स्वस्थ जीवन चाहिए। उसके लिए शॉर्टकट भी चाहिए। क्या ऐसा संभव है? जी हां, यह संभव है लेकिन एक शर्त है, इसके लिए हमें अपनी आदतों को थोड़ा बदलना होगा। आयुर्वेद के अनुसार दिनचर्या व ऋतुचर्या को समजना होगा। अपनी प्रकृति के अनुसार अपनाना होगा। तब जीवन के असली आनंद का अनुभव होगा। इतना ही नहीं तंदुरुस्ती और दीर्घायु भी प्राप्त होगा।

दिनचर्या एवं ऋतुचर्या को समझाइये

मुझे एक मित्र ने कहा की दिनचर्या एवं ऋतुचर्या को समझाइये। ये कैसी होनी चाहिए? तो दोस्तों, हमारे ऋषि मुनीयों ने बहुत ही सरलता से हमे दिनचर्या ओर ऋतुचर्या के बारे में समजाया हैं। हमारे प्रत्येक पर्व एवं त्योहार मनुष्य के आरोग्य को ध्यान मे रखकर बनाए गए हैं।

तोआइए समजते है की दिनचर्या क्या है?

दिनचर्या व ऋतुचर्या क्या है?

स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी के विकारों की शांति करना आयुर्वेद का मुख्य प्रयोजन है। आयुर्वेद एक चिकित्सा शास्त्र ही नहीं अपितु जीवन विज्ञान है। आयुर्वेद के अनुसार आहार-विहार दिनचर्या, रात्रिचर्या एवं ऋतुचर्या और सदाचार के आचरण से मनुष्य सर्वदा स्वस्थ रहता है।

आयुर्वेद के अनुसार स्वस्थ व्यक्ति को नित्य सो कर उठने के बाद जो कर्म करने चाहिए वह इस प्रकार है।

आयुर्वेद के अनुसार सुबह जल्दी उठने की महिमा : निद्रा त्याग

Morning

स्वस्थ व्यक्ति को सूर्योदय से डेढ़ घंटा पहले ब्रह्म मुहूर्त में जागना चाहिए। इस समय वातावरण प्रदूषण रहित होता है। इस समय वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा भी सर्वाधिक होती है। प्रकृति अपनी सारी शक्ति प्रत्येक पेड़, पौधे, वनस्पति एवं प्राणी मात्र को ऊर्जा देने हेतु ताज़गी के रूप में बरसाती है। इससे हमारे शरीर में नई शक्ति उत्साह, उमंग का संचार होता है।

ईश्वर का स्मरण ध्यान

मन को एकाग्र चित्त बनाने के लिए, मानसिक तनाव दूर करने के लिए और ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए हमें प्रातः काल इष्ट देव का स्मरण एवं ध्यान करना चाहिए।

उषः पान 

हो सके तो एक तांबे के बर्तन में स्वच्छ पीने का पानी रात को ढक कर रख दे। सुबह निद्रा त्याग के पश्चात उसे अथवा मटके का ताजा एक से चार गिलास पानी पीना चाहिए। इसे उषः पान कहते हैं। इसे पीने से शरीर में से जहरी तत्व बाहर निकलते हैं। मलाशय से मल के निष्कासन में सुगमता रहती है।

मल मूत्र विसर्जन  

मलमूत्रादि के प्राकृत वेग उपस्थित होने पर सर्वप्रथम इन्हें बाहर प्रवृत्त करना चाहिए। शरीर में उपापचय के कारण उत्पन्न बाक़ी कचरे का त्याग करने से शरीर में हल्केपन का अनुभव होता है। कहावत है कि पेट साफ तो रोग माफ। यह सच है की अधिकतर रोग पेट की खराबी से ही पैदा होते हैं। पर हां, मल की प्रवृत्ति सहज होनी चाहिए। उसे बाहर की ओर प्रवृत्त करने के लिए बल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यदि कभी कब्ज की शिकायत हो तो सुबह खाली पेट आधा चम्मच हरितकी (हरड़) चूर्ण अथवा गोली लेने से पेट साफ होता है। सर्दी की मौसम में ताजा दो आंवला या उसका रस पीने से भी कब्ज की शिकायत दूर होती है।

दांत की सफाई और मुख प्रक्षालन

मल मूत्र त्याग के पश्चात हाथ पैर मुंह को शुद्ध करने के बाद मुख शुद्धि करना चाहिए। पहले के जमाने में खदिर  करंज  बबूल  नीम तथा  बिल्व  इत्यादि की टहनी से निर्मित दातुन किया जाता था। आज भी बहुत से लोग दातुन का उपयोग करते हैं। यदि हो सके तो आप भी दातुन करें। अन्यथा नरम ब्रश से दांत की सफाई करें तत्पश्चात जिह्वा (जीभ) और मुख प्रक्षालन करें।

गंडूष (कुल्ला करना)

रोज रोज दातुन करने के बाद तिल के तेल का गंंडूष करना चाहिए। इस प्रयोग से स्वर को बल मिलता है। ओष्ठ नहीं फटते, दांतो की जड़ें मजबूत होती है। जो भी व्यक्ति कंठ्य संगीत से जुड़ा हो, गायक हो उसके लिए यह प्रयोग बहुत ही फ़ायदेमंद है।

गंंडूष करने की पद्धति इस प्रकार है। सुबह में कुछ समय तक धूप में खड़ा रहना चाहिए। तत्पश्चात मुख पूरा भर जाए उतना तिल का तेल मुंह में भर लेना चाहिए। स्मरण रहे इस प्रक्रिया में गले से आवाज़ नहीं निकालनी है। अब आकाश की तरफ मुंह रखकर 5 मिनट तक खड़ा रहना चाहिए। इस दौरान नाक और आँख से पानी निकल सकते हैं। इस प्रक्रिया के बाद मुंह से बाहर निकाला हुआ तिल का तेल किसी पौधे या पेड़ के मूल की तरफ थूक देने से उसे पोषण मिलता है।

इस प्रक्रिया में प्रतिदिन अंदाज से 100 ml तेल का उपयोग होता है। जो भी ऐसा करने में आर्थिक सक्षम ना हो उसे एक मुट्ठी भर तिल लेकर मुंह में तब तक चबाना चाहिए की उसका तेल ना निकल आए। फिर उसे पेट में उतार देना है।

मुंह में छाले पड़े हो या फिर जल गया हो ऐसी स्थिति में गाय के घी अथवा दूध का गंंडूष करने से लाभ होता है। मुख में चिकनापन दूर करने के लिए शहद से गंंडूष करना चाहिए।

नस्य

रोज सुबह नियमित रूप से नासिका (नाक) में दो से तीन बूंद जितना तिल का तेल, देसी गाय का घी अथवा मेडिकल स्टोर में उपलब्ध अणु तेल डालना चाहिए। ऐसा करने से नाक, मस्तक और आँख के रोग नहीं होते हैं। बाल काले और घने होते हैं। सफेद बाल काले होते हैं। चेहरा निर्मल होता है।

अभ्यंग (तेल मालिश)

स्नान करने से पहले संपूर्ण शरीर को तेल मालिश करनी चाहिए। इससे त्वचा कोमल, चमकीली और रोग रहित बनती है। त्वचा में रक्त संचार बढ़ने से विषाक्त तत्व बाहर निकलते हैं तथा त्वचा में झुर्रियाँ नहीं पड़ती।

शरीर के साथ-साथ बालों में भी तेल मालिश करनी चाहिए।

व्यायाम

Yogaस्वस्थ रहने के लिए प्रतिदिन व्यायाम करना चाहिए। सूर्य नमस्कार, एरोबिक, योग तथा अन्य व्यायाम से शरीर में शक्ति तथा रोगप्रतिकारक क्षमता में वृद्धि होती है।

क्षौर कर्म

बाल, दाढ़ी, मुछ, नाखून को नियमित रूप से काटना चाहिए।

उद्वर्तन (उबटन)

सुगंधित द्रव्य और जड़ी बूटियों के चूर्ण से बनाया गया उबटन शरीर पर मालिश करने से मन में प्रसन्नता तथा स्फूर्ति उत्पन्न होती है। उबटन के मालिश से मोटापा भी कम होता है और त्वचा मुलायम तथा चमकदार बनती है। इस तरह का उबटन आयुर्वेदिक दवाइयों के स्टोर में तैयार मिल सकता है। अथवा फार्मूला देखकर सभी द्रव्य को मिलाकर घर पर भी बनाया जा सकता है।

स्नान

दैनिक स्वास्थ्य के लिए स्नान करना अत्यंत आवश्यक है। स्नान करने से शरीर की सभी प्रकार की अशुद्धियां दूर होती है। शरीर के सभी इंद्रियां सक्रिय होती है। रक्त का शुद्धिकरण होता है। शरीर की गर्मी, दुर्गंध, पसीना इत्यादि का नाश होता है। स्नान करते समय गरम पानी सर पर नहीं डालना चाहिए, इससे नुकसान होने की संभावना है।

स्वच्छ वस्त्र धारण

स्वच्छ, सुंदर, आरामदायक, सूती, ऊनी वस्त्र धारण करने से सुंदरता प्रसन्नता एवं आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।

आहार – भोजन

भोजन के बारे में आयुर्वेद के महान ग्रंथ ‘चरक संहिता’ के इस श्लोक का अर्थ हमे समजना चाहिए।

तच्च नित्यं प्रयुञ्जीत स्वास्थ्यं येनानुवर्तते।

अजातानां विकाराणामनुत्पत्तिकरं च यत्।।

अर्थात् : येन आहारेण शरीरम् अनुकलं भवेत् तस्य भक्षणम (सेवनम्)

करणीयम्

यत् च अजातानां विकाराणाम् उत्त्पतिकरं न भवेत्, तत् च नित्यम् प्रयुज्जीत.

मतलब, हमे ऐसे आहार-भोजन का उपयोग करना चाहिए, जो शरीर को अनुकूल हो। जो भोजन रोग को उत्पन न करे हमेशा ऐसे आहार का सेवन करना चाहिए। अब सवाल होगा की, तो फिर हमे कैसा भोजन करना चाहिए?

Meals

शास्त्र के अनुसार स्थल, काल, ऋतु और आदत के अनुसार आहार ग्रहण करना चाहिए। हमे आहार में

  1. मधुर (Sweet)
  2. तिक्त (Bitter)
  3. अम्ल (Sour)
  4. लवण (Salt)
  5. कटु (Pungent)
  6. कषाय (Astringent)

इस प्रकार के छह रस युक्त भोजन लेना चाहिए। हमारा खुराक अत्यंत गरम और अति ठंडा नहीं होना चाहिए। खाना चबा चबा कर खाना चाहिए। भोजन करते समय बातचीत, हँसी-मज़ाक़ करना और टेलीविजन देखना नहीं चाहिए। भोजन के तुरंत बाद शारीरिक, मानसिक श्रम और स्नान नहीं करना चाहिए।

निद्रा

Sleep

रात्रि में औसत 6 से 7 घंटे नींद लेनी चाहिए। शयन कक्ष अत्यंत स्वच्छ, हवादार और उपद्रवों से मुक्त होना चाहिए। रात में देर से सोने से स्वास्थ्य खराब होता है। खासकर वसंत ऋतु (अप्रैल-मई) में दिन में और रात को देरी से सोना नहीं चाहिए। गर्मी के दिनों में बारिश के दिनों में और शरद ऋतु के दरमियान दिन में कुछ समय तक सोने से नुकसान नहीं होता, बल्कि ठंडी की मौसम में दिन में सोने से श्वास और पाचन तंत्र की बीमारी हो सकती है।

दिनचर्या व ऋतुचर्या का अर्थ

Rutucharya, Indian season cycle
Indian season cycle

ऋतु हिंदू महीनों के नाम अंग्रेजी महिना 
उत्तरायण

आदान काल

शरीर में बल कम होता हैं

शिशिर पौष-माघ दिसंबर मध्य से मध्य फरवरी तक
बसन्त फाल्गुन-चैत्र फरवरी मध्य से अप्रैल मध्य तक
ग्रीष्म वैशाख-ज्येष्ठ मध्य अप्रैल से मध्य जून तक
दक्षिणायन

विसर्ग काल

शरीर में रस कस की वृद्धि होती हैं

वर्षा आषाढ़-श्रावण मध्य जून से मध्य अगस्त तक
शरद भाद्रपक्ष-आश्विन मध्य अगस्त से मध्य अक्टूबर तक
हेमन्त कार्तिक-मार्गशीष मध्य अक्टूबर से मध्य दिसंबर तक

हमारे देश में मुख्य तीन ऋतु हैं। सर्दी, गर्मी और बरसात। आयुर्वेद में इस काल को इन छः ऋतुओं में बाँटा गया है। इसके दो विभाग हैं। आदान काल और विसर्ग काल। आदान मतलब ले लेना और विसर्ग अर्थात् देना।

  • शिशिर
  • वसंत
  • ग्रीष्म

यह तीनों ऋतुओ उत्तरायण कहते हैं। जो की आदान काल है। आदान काल में बल कम होता हैं।

  • वर्षा
  • शरद
  • हेमंत

यह तीन ऋतुओ को दक्षिणायन याने विसर्ग काल कहा गया हैं। यह काल में सर्दी बढ़ती जाती हैं इस लिए शरीर में रस कस की वृद्धि होती हैं।

ऋतु का संधि काल

Indian Seasons
Indian Seasons

प्रत्येक ऋतु का अपना स्वतंत्र स्वभाव और गुण दोष है। पृथ्वी के पट पर जब यह ऋतुए आती है तब जन साधारण पर अपना प्रभाव दिखाती है। जब रितु समाप्त हो जाती है तब उसकी असर भी चली जाती है। फिर आने वाली नई रितु की असर शुरू हो जाती है।

एक ऋतु के जाने और दूसरी ऋतु के आने के बीच के समय को रितु का संधि काल कहा जाता है। संधि काल के दौरान हमारे शरीर पर उसकी क्या असर होती है यह जान लेना अति आवश्यक है। इस विषय में हम एक दूसरे आर्टिकल में विस्तार से चर्चा करेंगे।

दिनचर्या व ऋतुचर्या : शिशिर ऋतु – पौष-माघ – दिसंबर मध्य से मध्य फरवरी तक

शिशिर ऋतु में शरीर में कफ एकत्रित होता है

winter season India

क्या करें  क्या ना करें 
  • खट्टा, नमकीन एवं मधुर आहार
  • दूध, घी और उससे उत्पादित वस्तुएं 
  • भारी पौष्टिक आहार
  • मेथी पाक, गुजराती अड़दिया (उड़द) पाक,
  • सालम पाक, गोंद पाक, तिल, मूंगफली की चिक्की
  • अंजीर, खजूर ड्राई फ्रूट
  • शहद एवं गुनगुने पानी का प्रयोग
  • तेल मालिश
  • सर्दी से रक्षा
  • बाष्प स्नान
  • शारीरिक व्यायाम
  • कटु, कब्ज पैदा करने वाला एवं तीक्ष्ण भोजन 
  • उपवास
  • शीतल जल का प्रयोग
  • शीतल वातावरण मे न रहे

दिनचर्या व ऋतुचर्या : बसंत ऋतु – फाल्गुन-चैत्र – फरवरी मध्य से अप्रैल मध्य तक

 वसंत ऋतु में कफ का प्रकोप होता है और पित्त शांत होता है। 

Fagun India

क्या करें क्या ना करें
  • गुनगुना पानी पिए
  • पुराने गेहूं, जव शहद का उपयोग करें
  • आसव अरिष्ट का उचित प्रयोग करें
  •  सोंठ डालकर उबाला हुआ पानी पिए
  • व्यायाम करें
  • तले हुए और खट्टे पदार्थ ना खाए
  • भारी आहार
  • दिन में ना सोए

दिनचर्या व ऋतुचर्या : ग्रीष्म ऋतु – वैशाख-ज्येष्ठ – मध्य अप्रैल से मध्य जून तक 

ग्रीष्म ऋतु में वात एकत्रित होता है। 

Summer

क्या करें क्या ना करें
  • सुबह की सैर  
  • शीतल मधुर प्रवाही आहार
  • अधिक पानी अनार अंगूर का  रस 
  • नारियल पानी
  • घर पर बनाया हुआ श्रीखंड लस्सी
  • अति व्यायाम
  • गरम मसाले एवं नमकीन भोजन
  •  अत्यधिक मैथुन

दिनचर्या व ऋतुचर्या : वर्षा ऋतु – आषाढ़-श्रावण – मध्य जून से मध्य अगस्त तक

वर्षा ऋतु में वायु का प्रकोप होता है और कफ शांत होता है। 

Rain

क्या करें  क्या ना करें 
  • 1 साल पुराना अनाज खाएं
  • नींबू, सौंठ उपयोग करें 
  • उबला हुआ पानी पिए 
  • तेल मालिश करें 
  • आसव अरिष्ट ले
  •  दाल सूप का प्रयोग करें 
  • शीतल जल 
  • भारी  व्यायाम
  • दिन में ना सोए
  • ठहरा हुआ पानी ना पिए
  • अधिक यौन क्रीडा 

दिनचर्या व ऋतुचर्या : शरद ऋतु – भाद्रपक्ष-आश्विन – मध्य अगस्त से मध्य अक्टूबर तक

शरद ऋतु में पित्त एकत्रित होता है। 

Full moon

क्या करें  क्या ना करें 
  • मधुर (Sweet), तिक्त (Bitter) एवं कषाय (Astringent) रस युक्त भोजन 
  • आंवला अंगूर (मुनक्का) 
  • चावल गेहूं एवं मूंग का प्रयोग करें 
  • विरेचन शुद्धिकरण
  • तैलीय भोजन 
  • दही का प्रयोग 
  • दिन में सोना 
  • अधिक धूप में निकलना
  • रात को 10:00 बजे के बाद खुले आसमान के नीचे नहीं बैठना चाहिए क्योंकि इस समय वातावरण में ओस पड़ती है 
  • पूरब से आने वाला पवन 

दिनचर्या व ऋतुचर्या : हेमन्त ऋतु – कार्तिक-मार्गशीष – मध्य अक्टूबर से मध्य दिसंबर तक

हेमंत ऋतु में पित्त का प्रकोप होता है और वायु शांत होता है

Winter Children

क्या करें  क्या ना करें 
  • खट्टा, नमकीन एवं मधुर आहार
  • दूध, घी और उससे उत्पादित वस्तुएं 
  • भारी पौष्टिक आहार
  • शहद एवं गुनगुने पानी का प्रयोग
  • तेल मालिश
  • सर्दी से रक्षा
  • बाष्प स्नान
  • शारीरिक व्यायाम
  • कटु, कब्ज पैदा करने वाला एवं तीक्ष्ण भोजन 
  • उपवास
  • शीतल जल का प्रयोग
  • शीतल वातावरण मे न रहे

त्रिभुवनकीर्ति रस : Tribhuvan Kirti Ras

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Cold and cough

आजकल किसी को कोरोना से मिलती जुलती बीमारी के लक्षण मालूम पड़ने पर घबराहट सी होती है, ऐसी स्थिति में धैर्य रखकर त्रिभुवनकीर्ति रस नामक आयुर्वेदिक एक से दो गोली सुबह शाम 2 से 3 दिन तक ही शहद (Honey) के साथ भोजन के कुछ समय बाद सेवन करने से

  • नाक से छींके आना या एलर्जी की समस्या
  • सर्दी जुकाम
  • फ्लू
  • निमोनिया एवं तेज बुखार
  • सिर दर्द

वगैरह पर अच्छे परिणाम मिलते है। मेरे घर में हमेशा यह औषधि रहती है। इसके अच्छे परिणाम भी हमने देखे है। बाजार में यह बैद्यनाथ, झंडू, डाबर, पतंजली एवं ऊंजा आदि कंपनियों की दवा आसानी से उपलब्ध हो जाती है| यह औषधि पित्त प्रकृति के व्यक्ति को नहीं दी जाती है। फिर भी सर्दी जुकाम, फ्लू, निमोनिया एवं तेज बुखार के दौरान चिकित्सक से परामर्श कर के ले सकते है।

Tribhuvan Kirti Ras

त्रिभुवनकीर्ति रस के अच्छे परिणाम

कोरोना से मिलते-जुलते लक्षणों में भी त्रिभुवनकीर्ति रस के अच्छे परिणाम मिल सकते है। इस दवाई का सेवन चिकित्सक के निर्देशानुसार ही करना चाहिए अगर किसी को इस तरह के लक्षण दिखाई देते है तो बिलकुल घबराना नहीं चाहिए। कोरोना संक्रमित करीब 80 फीसद लोग बिना किसी विशेष इलाज के ठीक हो जाते हैं। संक्रमित छह लोगों में से सिर्फ एक व्यक्ति ही गंभीर रूप से बीमार पड़ता है।

सर्दी जुकाम, फ्लू,  Influenza में दिन में एकबार थोड़ी सोंठ डाल कर उबाला हुआ चाय के जैसा गरम पानी आधा ग्लास या उससे ज्यादा पीना चाहिए और रात को सोने से पहले गरम पानी या दूध में आधी से एक चमच हल्दी मिलाकर पीना चाहिए। साथ में सुबह  शाम एक, एक गोली त्रिभुवन कीर्ति रस डेढ़ – दो चमच शहद के साथ लेने से अच्छे परिणाम मिलते है। इस औषधि का नाम त्रिभुवनकीर्ति रस है मतलब त्रिभुवन (सृष्टि) में इस औषधि की यश, ख्याति, प्रतिष्ठा, शोहरत, प्रसिद्धि है। इसे बनाने में

  • शुद्ध हिंगुल,
  • शुद्ध वत्सनाभ,
  • कालीमिर्च,
  • सोंठ,
  • पिप्पलामुल,
  • शुद्ध टंकण

इत्यादि को तुलसी, अदरक एवं धतूरा रस की भावना दी गई है।

 

कोरोना के साथ जीना सिख लिया

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कोविड-19
कोरोना से कैसे बचे

पिछले कुछ महीनों से दुनिया भर में COVID-19 वायरस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है। शुरू शुरू मे तो लोग बेहद भयभीत हुए मगर अब सबने कोरोना के साथ जीना सिख लिया है। आजकल तो दुनिया कई देश कोरोना की वेकसीन भी बना चुके है। लेकिन यह कोरोना आखिर है क्या? ये जानने के लिए मैंने आयुर्वेद के पुस्तकों में खोजबीन की।

1918 में और उसके बाद 1957 में इस महामारी का संक्रमण हुआ था

मेरे पास जनवरी 1977 में प्रकाशित ‘आयुर्विज्ञान’ नामक एक पुस्तक है। जिसमे Influenza के बारे में लिखा गया एक प्रकरण है। इसे पढ़कर लगा की, आजकल हम जिस से भयभीत है वह कोरोना, इनफ़्लुएंज़ा जैसे रोग का ही एक रूप है। यह रोग चेपी है और श्वासोश्वास के द्वारा फैलता है। इनफ़्लुएंज़ा के विषाणु  जीवाणुओं से भी अधिक छोटा होने के कारण सूक्ष्मदर्शी यंत्र से भी देखा नहीं जा सकता है।  इस विषाणुओ के A B और C वर्ग है। इस विषाणुओ में उत्परिवर्तन (Mutation) होने से यह विषाणु के A 0, A1 एवं A2 ऐसे तीन प्रकार बने हैं। इसमें से

  • A1 को एशियन
  • A2 को हांगकांग

विषाणु कहते हैं। जब जब इस महामारी का संक्रमण फैलता है तब तब इस विषाणु की जात में परिवर्तन होते रहता है। इस प्रकार के उत्परिवर्तन के कारण एक नया प्रकार जन्म लेता है। पहले सन 1918 में और उसके बाद 1957 में इस महामारी का संक्रमण हुआ था। इसबार फैली इस महामारी को World Health Organization: WHO ने COVID-19 नाम दिया है।influenza

शुरुआती लक्षण

इनफ़्लुएंज़ा (flue, flu) के शुरुआती लक्षणों में सर्दी, बदन दर्द, सर दर्द के साथ बुखार आता है तीन-चार दिनों में इसके लक्षण कम भी हो सकते हैं। इसके कारण कमजोरी और सांस की नली एवं फेफड़े में सूजन आ जाती है। ऐसी स्थिति में इंफ्लुएंजा के विषाणु के साथ-साथ अन्य जीवाणु भी फेफड़े पर हमला कर देते हैं। फेफड़े के एवं हृदय रोग के मरीज और बुजुर्ग लोगों के लिए यह खतरनाक साबित होता है।

रूस में जिंदा विषाणु को ठंडी में सुखाकर सूंघने के वाली Vaccine बनाई गई थी

पहले जब इस प्रकार का संक्रमण फैला था तब रूस में जिंदा विषाणु को ठंडी में सुखाकर सूंघने के वाली Vaccine बनाई गई थी। जिसे हर 3 महीने में कारखानों में काम करने वाले कामगारों को सूंघने के लिए दी जाती थी। इसके कारण उन्हे हल्का सा इंफ्लुएंजा होकर वे ठीक हो जाते थे। शनिवार को जो मजदूरो को यह वैक्सीन सूंघने के लिए दी जाती थी उससे हल्का इंफ्लुएंजा सहकर रविवार को आराम करके वह सोमवार को फिर काम पर लग जाते थे। ऐसा करने के पीछे एक खास मकसद था। ऐसा इस लिए किया जाता था क्योंकि इस महामारी का संक्रमण फैलने से एक साथ बहुत सारे कामगार बीमार होते थे, और छुट्टी पर चले जाते थे। इसलिए उन्हे सूंघ ने वाली रसी Vaccine देने से रविवार को कामगार Influenza से संक्रमित होकर बीमार पड़ता था, और फिर इससे उनके शरीर में एक प्रकार की रोग प्रतिकारक शक्ति पैदा हो जाती थी।

Influenza (flue, flu)  के विषाणु प्राणियों में भी आ सकते हैं

पहले के संशोधन के दौरान यह देखा गया है की Influenza (flue, flu)  के विषाणु प्राणियों में भी आ सकते हैं। सूअर (Pig), घोड़ा (Horse), और पंछियों (Birds) में भी इस प्रकार के विषाणु पहले देखे गए थे। फ्लू के वायरस लगातार बदल रहते हैं। चिंता का विषय यह है की जानवरों के फ्लू के वायरस इस तरह बदल सकते हैं कि, वे लोगों को आसानी से संक्रमित कर सकते है। लोगों में फैल सकते हैं। जिससे महामारी फैल सकती है। इंफ्लुएंजा के हमले से 1918 में असंख्य लोगों की मृत्यु हुई थी। जबकि 1957 में एशियन प्रकार का संक्रमण फैला था। इन्फ्लूएंजा के बारे में डॉक्टर एंड्रयूज और इसाक नाम के 2 वैज्ञानिको ने इस के संशोधन में अपना अमूल्य योगदान दिया था। भारत में मुंबई में स्थित हापकिन इंस्टिट्यूट, कुन्नूर की पाश्चर इंस्टीट्यूट एवं कसौली के सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट में इस महामारी के विषाणु के बारे में रिसर्च किया जाता है।

यह आर्टिकल मैंने जुलाई 2020 में लिखा था । उसके 3 महीने बाद एक गलती के कारण मेरी वेबसाइट Crash हो गई। अब जब दोबारा इस आर्टिकल को मैं एडिट करके पोस्ट कर रहा हूं तब मेरे पास मेरे ही भाई, बहन और परिवार के 5 सदस्य का कोविड-19 से ठीक होने का उदाहरण है।

कोविड-19  का एलोपैथिक व आयुर्वेदिक इलाजVirus

मेरी बहन मुंबई में होम क्वॉरेंटाइन रहकर, खासकर आयुर्वेदिक इलाज से ठीक हुई।  जबकि मेरे भाई का परिवार गुजरात में होम क्वॉरेंटाइन रहकर एलोपैथी व आयुर्वेदिक इलाज से ठीक हुए है।

  • कोरोना पॉजिटिव होने के बाद सभी को
  • हल्का या तेज बुखार,
  • सूंघने की क्षमता चली जाना,
  • सिरदर्द,
  • कमज़ोरी
  • सुखी खांसी

वगैरह लक्षण देखने को मिलते थे।

एलोपैथिक ट्रीटमेंट में एंटीवायरल मेडिसिन Fabi Flu Tablet  और विटामिन की गोलियां दी जाती है। इसके साथ साथ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए  आयुर्वेदिक उपचार में

  • आयुष काढ़ा (क्वाथ) (बाजार मे मेडिकल स्टोर मे सभी बड़ी फार्मसी का मिलता है।) सुबह नाश्ते के बाद
  • अमृतारिष्ट (तीन से चार चम्मच सुबह-शाम पानी के साथ)
  • गिलोय घनवटी (एक एक गोली सुबह शाम)
  • कनकासव  (तीन से चार चम्मच सुबह शाम। खांसी, श्वास और फेफड़ों  के रोग के लिए)
  • त्रिभुवन कीर्ति रस  https://startayurvedic.in/tribhuvan-kirti-ras/

का सेवन और प्रत्येक मरीज को खाने में सादा भोजन मूंग के साथ और फल में आंवला, पपीता, सेव एवं Mosambi देते थे।

आयुर्वेदिक और एलोपेथि के यह सभी उपचार वैद्य और डॉक्टर के मार्गदर्शन मे करना बहुत ही आवश्यक है।

सभी मरीज सुबह-शाम गर्म पानी से स्टीम याने नस्य लेते थे। (एक बर्तन में गर्म पानी करके उसमें तुलसी पुदीने और अदूलसा की कुछ पत्तियां और अजवाइन को मिलाकर इसे भाप के रूप में सांस में लेते थे)।

योग और प्राणायाम करते थे। इस तरह दस-बारह दिन मे सब ठीक हो गए।

भगवान करे कोराना की वैक्सीन सफल हो तब तक कोरोना के साथ जीना पड़ेगा

ब विश्व के सभी ज्ञानी, वैज्ञानिकों को सावधान, सचेत, चिंतित रहना होगा। उनको  अपने खोज, अनुसंधान, अन्वेषण के द्वारा भविष्य में इस तरह की कोई बीमारी-महामारी ना आए, ना फैले इसके लिए सभी संभव प्रयास निरंतर करना पड़ेगा।

फिलहाल तो हमे यह उम्मीद रखना चाहिए की बहुत जल्द कोराना की वैक्सीन सफल हो और इस महामारी से दुनिया मुक्त हो जाए। तब तक दो गज की दूरी बनाए और मुँह पर मास्क जरूर लगाए।

 

 

 

 

Apach (Indigestion) ke Upay : अपच (Indigestion) के उपाय

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Abdominal-pain

पेट दुखना, पेट फूलना, डकार आना, बेचैनी, वायु के कारण वेदना होना, जी मिचलाना और उल्टी होना, सीने में दर्द, सर दर्द, धड़कन तेज होना, कब्ज इत्यादि लक्षण अजीर्ण यानी बदहजमी (Indigestion) के होते है। आयुर्वेद के अनुसार अजीर्ण के कुछ प्रकार है, जैसे आमा- जीर्ण, विदग्धा जीर्ण, विष्टब्धाजीर्ण और रसशेषाजीर्ण लेकिन सर्व प्रकार के अजीर्ण में मंदाग्नि नाशक औषधि लाभदायक है। हम  इस आर्टिकल मे अपच के कारण और Indigestion के उपाय के बारे मे बात करेंगे।

  • अजीर्ण
  • बदहजमी
  • अपच
  • अग्निमांद्य
  • मंदाग्नि

ये सब एक ही प्रकार की  बीमारी के नाम और स्वरूप है। अजीर्ण की बीमारी होने पर अन्न के ऊपर नफरत सी होती है, कभी भूख लगती भी है लेकिन जब खाने के लिए बैठते है तब अभाव होता है। मन में उद्वेग, निराशा उत्पन्न होते है, संक्षिप्त में कहे तो कब्ज के जैसा ही दूसरा रोग अजीर्ण यानी अग्निमांध (Indigestion) अनेक प्रकार के रोगों को जन्म देता है।

अपच (Indigestion) के कारण

आज के जमाने में खासकर शहरों में रहने वाले लोगों को अजीर्ण रोग की समस्या आम बात बन गई हैं। इतना ही नहीं बल्कि आजकल तो छोटे-छोटे गांव और नगरों में भी, होटल व दुकानों में ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में खाने पीने की चीज वस्तुओं में जहर जैसी मिलावट होती है। हल्के प्रकार का तेल एवं दूसरे खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह का बाहर का खाना खाने से लोग यकीनन बीमार पड़ते हैं। Overeating

  • बाहर का खाना
  • भूख ना होने पर भी मात्र स्वाद के लिए खाना
  • उत्तेजक मसाले वाला खाना
  • पाव, ब्रेड, पिज़्ज़ा, बर्गर, फ़ालूदा, आइसक्रीम इत्यादि बार बार खाना
  • कोल्ड ड्रिंक व बहुत सारा पानी पीना
  • समय से पहले या बाद में भोजन करना
  • मल मूत्र को रोकना
  • समय से नींद नहीं करना
  • कम अथवा ज्यादा खाना
  • ठंडा या बासी भोजन करना
  • भोजन पर कुदृष्टि पड़ना
  • एकाग्र होकर भोजन नहीं करना

व्यसन इत्यादि कारणों से मंदाग्नि की बीमारी होती है। खाया हुआ अन्न न पचने के कारण यह व्याधि उत्पन्न होती है। अब सवाल यह है की अपच (Indigestion) के उपाय क्या?

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता जी में कहा है कि,

“अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः। प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्”

अर्थात मैं ही समस्त प्राणियों के देह में स्थित वैश्वानर अग्निरूप होकर प्राण और अपान से युक्त चार प्रकार के अन्न को पचाता हूँ।

जठराग्नि शांत हो जाए तो मनुष्य की मृत्यु होती है

बहुतों को यह मालूम नहीं होता है की हम जो कुछ भी खाते है उस का पाचन कहा होता है? इस प्रश्न का उत्तर है कि, हमारे पेटमें रहने वाले जठराग्नि में खाया हुआ अन्न पचता है। आयुष्य, बल, उत्साह, स्वास्थ्य, प्रभा, ओजस और प्राणशक्ति इत्यादि जठराग्नि पर ही निर्भर है। यह अग्नि अगर शांत हो जाए तो मनुष्य की मृत्यु होती है। और अगर इसे संभालकर रखें तो निरामय (निरोग) रहकर सो साल तक जीते है। अन्न रूप ईंधन से यह अग्नि प्रज्वलित रहेता है।

संयमी स्त्री-पुरुष दीर्घायु याने लंबा आयुष्य पाते है

हम कैसा भी अन्न खाए और जो मर्जी आया वह पेट में डालकर जठराग्नि स्वरूप हवन में हड्डी डालने जैसा, राक्षस जैसा काम करते है। उसके विपरीत जितेंद्रिय (जिसने इंद्रियों को अपने वश में कर लिया हो, संयमी) स्त्री-पुरुष इस अंतराग्नि की एकाग्रता से आराधना करते है। मात्रा और कल का विचार कर के जो उसमें अन्नपानरूप समिध (यज्ञ या हवनकुंड में जलाई जाने वाली लकड़ी) से होम करते है वह दीर्घायु याने लंबा आयुष्य पाते है। हम कितना भी अच्छा खाले, कितने भी विटामिन्स ले किन्तु शरीर में सदा जलने वाली जठराग्नि ही मंद पड जाए तो सब निरर्थक है।

अपच (Indigestion) के आयुर्वेदिक उपायLemon Ginger

  • अजीर्ण में कोई भी औषध लेने से पहले, खुली हवा में व्यायाम अथवा योगासन और एक दिन लंघन याने उपवास करना चाहिए। उपवास में कुछ भी, फल भी नहीं खाना है। सिर्फ गरम पानी ही पीना चाहिए।
  • भोजन से पहले अदरक के थोड़े टुकड़ों को नींबू और सैन्धव नमक मिलाकर खाए
  • हमेशा भोजन गरम अथवा ताजा होना जरूरी है
  • नियत समय पर खाना चाहिए
  • खाने में मधुर, अम्ल, लवण, तिक्त, कटु, कषाय यह छह रस वाला भोजन करे
  • साबुत मूंग को पानी में उबालकर उसका पानी छान कर पिए
  • भोजन करने के बाद थोड़ा टहलना अथवा वज्रासन करना चाहिए
  • भोजन में एक साल पुराना चावल, गेहूं वगैरह एवं हरी सब्जी, सहजन की फली, कोमल मूली, बेंगन, परवल, आवला, संतरा, नींबू, अनार, शहद, मक्खन, दहीं, छाछ / दूध ले
  • फलियां (Legumes) कम खाए
  • रात को जागरण ना करे
  • खुली हवा में टहलने जाए

बदहजमी (अपच) के घरेलू आयुर्वेदिक उपाय

हरड़ सोंठ तथा सैन्धव लवण के (तीनों समान मिलाकर) आधा चमच जितने चूर्ण (पावडर) को पानी अथवा गुड़ के साथ लेना चाहिए। अनानास को छोटे टुकड़ों में काट लें और काली मिर्च और सैन्धव पाउडर डालकर खाए। हिंगाष्टक चूर्ण को पानी/छाछ के साथ ले। भोजन से पहले आधा चमच अदरक के रस में उतना ही नींबू का रस और थोड़ी (जरा सी)दालचीनी मिलाकर पीने से अपच दूर होती है और अग्नि प्रज्वलित होती है। सोंठ, अजवायन और संचल नमक से पेट का वायु ठीक होता है। एक उपचार एसा भी ‘आर्यभीषक्’ मे बताया गया है जो की हमारे बड़े बुजुर्ग पहले अक्सर करते थे वह ये है की, एक नींबू को दो भागों में काटकर उसके दोनों हिस्से पर संचल नमक, सोंठ और थोड़ी हिंग भर के उसे अग्नि पर रख कर अच्छी तरह पक जाने पर हल्का ठंडा होने पर उसे चूसे। इस उपचार से पेट का दर्द ठीक होगा, खट्टे डकार बंध होंगे, खाने की इच्छा होगी, भूख बढ़ेगी और गेस छूटेगा। ओर एक उपचार जिसे सभी को हमेशा करना चाहिए। दस से बीस ग्राम जितने अदरक के छोटे छोटे टुकड़े करके उसके ऊपर थोड़ा सैन्धव लवण डालकर खाना बहुत ही फायदेमंद है। आयुर्वेद में लिखा है की,

“भोजनाग्रे सदा पथ्यं लवणार्द्रकभक्षणम्”

भोजन से पूर्व सर्वदा सेंधा नमक के साथ अदरख खाना पथ्य होता है।

मेडिकल स्टोर्स व आयुर्वेदिक औषधि भंडार से मिलने वाली दवाइयां 

बाजार में मेडिकल स्टोर्स व आयुर्वेदिक औषधि भंडार में मिलने वाली दवाइयों मे

चित्रकादि वटी : आमाशय बिगड़ने  पर अन्न ठीक से हजम नहीं होता है ऐसी स्थिति में दो गोली जल के साथ सुबह शाम इसका सेवन करने से अग्नि  प्रदीप्त हो जाती है। आंव पाचन के लिए यह वटी सर्वोत्तम लाभदायक है। 

शंखवटी : 

  • पंच  लवण
  • चिंचा क्षार 
  • शंख भस्म
  • शुंठी 
  • पिप्पली 
  • मरीच  
  • वचा 
  • शुद्ध हींग
  • शुद्ध  वत्सनाभ  
  • शुद्ध गंधक 
  • शुद्ध पारद 
  • भावना :  नींबू स्व-रस 

इस प्रकार की औषधि मिलाकर बनी शंख वटी पाचन करने वाली सर्वोत्तम औषधि है। यह अजीर्ण, आफरा, शूल, उदरशूल में अधिक  लाभकारी है। विदग्धाजीर्ण की अवस्था में  गले में जलन, खट्टी डकार, पेट में जलन, भोजन के बाद पेट में भारीपन  आदि लक्षणों अवस्था में शंख वटी गुणकारी है। 

मंदाग्नि के ऊपर बेहतरीन आयुर्वेदिक औषध

अपच (Indigestion) के उपाय के तौर पर हम नीचे दी गई कोई भी औषधि का उपयोग कर सकते है। इसके साथ साथ लोहासव (आमनाशक  रक्तवर्धक अग्निवर्धक कृमिनाशक) सुबह-शाम एक से दो चम्मच समभाग पानी के साथ मिलाकर लेने से लाभ होता है।  

हिंग्वाष्टक चूर्ण

गैसांतक वटी

लवणभास्कर चूर्ण

अग्नितुंडी वटी

अजमोदादि चूर्ण

समुद्रलवणादि चूर्ण  

इत्यादि मंदाग्नि के ऊपर बेहतरीन औषध है। अजीर्ण की समस्या पर ऊपर दिए गए कोई भी उपचार से  मरीज जल्द स्वस्थ हो सकता है। आप आयुर्वेद को अपनाए, सदैव स्वस्थ रहें। दीर्घायु हो यही प्रार्थना।

 

होम्योपैथी और आयुर्वेद में क्या अंतर है : What is the difference between Homeopathy and Ayurveda

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Doctorजब कोई व्यक्ति बीमार पड़ता है तब तुरंत उसे डॉक्टर याद आता है। ज्यादातर लोग अपने घर के आसपास एलोपैथी के डॉक्टर के पास जाकर दवाई ले लेते हैं और ठीक हो जाते हैं। पर क्या छोटी मोटी हर एक बीमारी में डॉक्टर के पास दौड़ना सही है? हो सकता है आपकी बीमारी का इलाज आसान हो और घर पर ही हो सकता हो। आजकल के पढ़े-लिखे लोगों को एलोपैथी ट्रीटमेंट की कमियां और एलोपैथिक दवाइयों की साइड इफेक्ट के बारे में पता चलने लगा है। अब देश-विदेश में भी आयुर्वेद और होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति पर लोगों का भरोसा बढ़ने लगा है। तब बहुत से लोगों के मन में एक सवाल होता है कि होम्योपैथी और आयुर्वेद में क्या अंतर है?

एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेद में क्या अंतर है

आयुर्वेदिक और होम्योपैथी इस में ज्यादा असरदार क्या? यह प्रश्न बहुतों के मन में होता है इसलिए इसका उत्तर जानने के लिए हमे आयुर्वेदिक, एलोपैथी और होम्योपैथी के संक्षिप्त इतिहास को जानना पड़ेगा। तब हम जान पाएंगे की होम्योपैथी और आयुर्वेद में क्या अंतर है। 

सर्वप्रथम हम एलोपैथी की बात करें तो ग्रीक और रोमन साम्राज्य के समय से चला आ रहा एलोपैथिक विज्ञान लगभग पंद्रह सौ साल पूर्व से विदेशों में ज्यादा प्रचलित हुआ है। यह चिकित्सा पद्धति हमारे देश में अंग्रेजों के साथ आई है। जबकि होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति का आविष्कार जर्मन डॉक्टर सैम्यूल क्रिश्चियन हानेमान ने लगभग 250 वर्ष पहले किया था। अब बात करें भारतीय चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद की तो, यह विश्व की सब से प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है। आयुर्वेद का इतिहास इस सृष्टि की उत्पत्ति हुई तब से याने हजारों साल पुराना है।

Allopathy, Homeopathy, Ayurveda चिकित्सा पद्धति का अर्थ

यह तीनों चिकित्सा पद्धति का अगर अर्थ समजें तो सर्वप्रथम एलोपैथि Allopathy का अर्थ होता है Allo मतलब अन्य, दूसरा तथा pathy का अर्थ है पद्धति याने ‘अन्य पद्धति’। जबकि होम्योपैथी Homeopathy शब्द दो ग्रीक शब्दों को जोड़कर बनाया गया है। इस का एक शब्द है ‘होमोइस’ जिसका मतलब है समानता और दूसरा शब्द है ‘पेथोस’ जिसका मतलब है बीमारी। होम्योपैथी का अर्थ होता है समानता के नियमानुसार की जाने वाली दवाई। उदाहरण के तौर पर ‘जहर जहर को मारता है’, लोहे को लोहा काटता है वाला नियम। अब आयुर्वेद की बात करे तो आयुः + वेद = आयुर्वेद। इसका सरल अर्थ है जीवन का ज्ञान कराने वाला शास्त्र।

पौराणिक कथा में आयुर्वेद

पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान क्षीर सागर से भगवान विष्णु के अंश भगवान धन्वंतरि अमृत कुंभ लेकर प्रगट हुए थे। उन्ही को आयुर्वेद शास्त्र के देवता माना जाता है।

होम्योपैथी और आयुर्वेद में क्या अंतर है-Maharshi Charak
महर्षि चरक

आयुर्वेद के मानक ग्रंथ और उसके रचयिता

भारत के 3 महान ऋषि, एक सुश्रुत दूसरे वाग्भट और तीसरे चरक जिसे हम भारतीय चिकित्सा विज्ञान के महान वैज्ञानिक भी कह सकते हैं। उन्होंने अनुक्रम

  1. सुश्रुत संहिता’ (छठी शताब्दी ईसा पूर्व / BC, ईसा मसीह के जन्म के पहले),
  2. अष्टांगसंग्रह’ (500 BC ई. पू.)
  3. चरक संहिता’ (2195 वर्ष पूर्व)

नाम के आयुर्वेद के मानक ग्रंथ लिखे। ‘सुश्रुत संहिता’ में सर्जरी का ज्ञान विस्तारपूर्वक दिया गया है। महर्षि ‘सुश्रुत’ को शल्य चिकित्सा के जनक कहा जाता है। उस जमाने में वे मानव शरीर के अंगो की सर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी एवं मोतिया बिंदु के ऑपरेशन भी करते थे।

आयुर्वेद इतिहास

चरक संहिता के अनुसार आयुर्वेद की सर्वप्रथम शिक्षा के बारे में एक कथा प्रचलित है। हजारों साल पहले हिमालय की तलहटी में प्राणी मात्र के ऊपर करुणा रखने वाले और अपने तप तेज से प्रदीप्त, ब्रह्मज्ञान के भंडार ऐसे महर्षिओ ने एकत्रित होकर विचार विमर्श किया कि धर्म अर्थ काम और मोक्ष का मूल उत्तम आरोग्य है और रोग मनुष्य के जीवन को हरनार हैं इसलिए इस समस्या को दूर करने के लिए इन्द्र के पास से कोई उपाय जानना पड़ेगा! इस काम के लिए भारद्वाज ऋषि को इन्द्र के पास भेजा गया। इंद्र ने ब्रह्माजी जीसे जानते थे वह त्रिसूत्र ‘आयुर्वेद’ का ज्ञान भारद्वाज ऋषि को दिया। भारद्वाज जी ने वापस आकर अन्य ऋषि-मुनियों को आयुर्वेद की शिक्षा दी।

पुनर्वसु नाम के एक ऋषि जो कि अत्रि ऋषि के पुत्र थे, जिन्होंने अपने पिता अत्रि ऋषि एवं भारद्वाज ऋषि से आयुर्वेद की शिक्षा प्राप्त की थी बाद में उन्होंने आयुर्वेद का ज्ञान अपने छह शिष्यों

  • अग्निवेश
  • भेड़
  • जतूकर्ण
  • पाराशर
  • हारित
  • क्षारपानी

को दिया इस तरह आयुर्वेद का परंपरागत ज्ञान आज हम तक स्वस्थ जीवन का वरदान बनकर उपलब्ध है।

आयुर्वेद क्या है? 

आयुर्वेद में सैकड़ों प्रकार की जड़ी-बूटियों, वनौषधि और औषधि युक्त

  • कवाथ-काढ़ा
  • चूर्ण
  • वटिका
  • गुटिका
  • उकाला
  • हिम
  • कल्क
  • अवलेह
  • पाक
  • आसव-अरिष्ट
  • घी-तेल
  • रसक्रिया
  • क्षार
  • मलम
  • अंजन
  • अर्क
  • लैप
  • भस्म
  • योग

इत्यादि को औषध के रूप में दिया जाता है। सामान्यतः सभी घरों में उपयोग किए जाने वाले मसाले एवं सब्जियों व फलों से भी बीमारी का आयुर्वेदिक उपचार किया जाते हैं। अब हम होम्योपैथी की बात करेंगे। उसे जानकर हमे होम्योपैथी और आयुर्वेद में क्या अंतर है यह समजने में आसानी होगी। 

एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेद में क्या अंतर है ये जानने के लिए प्रस्तुत होम्योपैथी का इतिहास

Dr. Hahnemannहोम्योपैथी के जन्मदाता सैम्यूल क्रिश्चियन हानेमान का जीवन

होम्योपैथी के जन्मदाता सैम्यूल क्रिश्चियन हानेमान का जन्म जर्मनी के  सेकसोनी प्रांत के मेईजन गांव में दिनांक 10 अप्रेल 1755 को हुआ था। उनके पिता श्रीमान क्रिश्चियन गोटफ्रीड हानेमान चीनी मिट्टी के बर्तनों पर चित्रकारी का काम करते थे। गरीब परिवार में जन्मे सैम्यूल क्रिश्चियन हानेमान को उनके पिता अपनी तरह एक चित्रकार बनाना चाहते थे, क्योंकि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उनके पास स्कूल फीस के पैसे नहीं थे। मगर कुदरत को कुछ और मंजूर था। छात्र हानेमान के शिक्षक ने उनकी स्कूल फीस माफ कर दी। इस तरह आगे चलकर हानेमान एलोपैथि के डॉक्टर बन गए और उन्होंने एम. डी. इन मेडिसिन की डिग्री प्राप्त कर ली।

डॉ. हानेमान यूरोप की बहुत सारी भाषाओं के जानकार थे और उन्होंने स्थानीय भाषाओं में अंग्रेजी के पुस्तकों का अनुवाद करने का भी काम किया था। वे निपुण रसायनशास्त्री एवं विषविज्ञानी थे।

1 दिसंबर 1782 में डॉक्टर हानेमान की पहली शादी हुई उससे उनको 11 बच्चे हुए। उस में 9 लड़कियां और 2 लड़के थे। डॉक्टर बन जाने के  बावजूद भी डॉ. हानेमान का जीवन ज्यादातर गरीबी में ही बीता। हालाकी एक चिकित्सक के तौर पर डॉ. हानेमान की गणना उनके जमाने के सफल डॉक्टरों मैं होने लगी थी।

डॉक्टर हानेमान ने अपना दवाखाना बंद कर दिया

डॉ. हानेमान के जमाने में रोगी को ठीक करने की चिकित्सा पद्धति अमानवीय थी। डॉक्टर हानेमान ऐसा मानते थे कि इस तरह की चिकित्सा के दौरान रोगी की मृत्यु होती है तो उसे डॉक्टर के हाथों हुआ  खून समझा जाना चाहिए। इसलिए डॉक्टर हानेमान ने अपना दवाखाना बंद कर दिया। अब डॉ. हानेमान की आर्थिक स्थिति ज्यादा खराब हो गई। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की :

है भगवान मुझे चिकित्सा की सच्ची पद्धति बताओ

तब भगवान ने डॉ. हानेमान के सच्चे मन की प्रार्थना जैसे सुन ली हो वैसी एक घटना हुई।

होम्योपैथी का जन्म 

उन दिनों डॉ. हानेमान को सिर्फ पुस्तकों के अनुवाद से ही कमाई होती थी और उसमें से उनका गुजारा चलता था। एक बार वह उनके समय के प्रख्यात अंग्रेज चिकित्सक डॉक्टर कयुलेन के ‘मटेरिया मेडिका’ नामक पुस्तक के दूसरे भाग का अनुवाद कर रहे थे तब अनुवाद के दौरान उस पुस्तक में लिखी गई कुनैन नाम की एक दवाई की मलेरिया के रोगी पर होने वाली असर के बारे में जो बात लिखी गई थी उस पर डॉ. हानेमान गहरी सोच में पड़ गए। उन्होंने मलेरिया की उस दवाई का खुद पर प्रयोग करना शुरू कर दिया। कुनैन नाम की वह दवाई खाने से डॉ. हानेमान के शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। उन्होंने इसके विशेष प्रयोग अपने घर वाले और एक चिकित्सक मित्र पर भी आजमाए। अंततः डॉ. हानेमान को एक बात समज में आ गई की जो दवाई रोग उत्पन्न कर सकती है वह उस रोग को मार सकती है। याने जहर को जहर मार सकता है। ईस तरह होम्योपैथी के नियम का जन्म हुआ। चिकित्सा के इस महान और उस समय के इस अज्ञात नियम के मिल जाने पर उन्होंने भगवान का तहे दिल से शुक्रिया अदा किया।

होम्योपैथी  के जनक डॉ. हानेमान ने हार नहीं मानी

डॉ. हानेमान ने अपना बंद दवाखाना फिर से खोल दिया। अब वे मरीजों के लिए कुछ दवाइयां खुद बनाने लगे। उनकी दवाइयों से मरीज ठीक होने लगे।

डॉ. हानेमान को सिद्धि तो हासिल हुई लेकिन उसके विरोधी दिन-ब-दिन बढ़ते गए। उनके ऊपर कोर्ट में मुकदमा ठोक दिया गया। इससे परेशान डॉ. हानेमान और उसका परिवार दाने दाने को मोहताज हो गए। होम्योपैथी की पद्धति से दवाई करने पर प्रतिबंध लग गया। उनको परिवार समेत शहर छोड़ना पड़ा। डॉ. हानेमान इतने गरीब हो गए की उनके घर में सभी को पाव के टुकड़ों का वजन कर के खाने दिए जाता था। इतनी कंगाल परिस्थिति में उनकी एक बेटी बीमार हो कर मर गई तब उसके पास से अपने हिस्से के बचाए हुए पाव के टुकड़े मिले।Samuel_Hahnemann

दुनिया में जितने भी प्रसिद्ध व्यक्ति हुए उनको बहुत ही संघर्ष का सामना करना पड़ा था। ऐसा ही बहुत कुछ डॉ. हानेमान के साथ भी हुआ। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 

सन 1821 में फिर से उनकी होम्योपैथी की पद्धति को चिकित्सा के लिए कोर्ट से मंजूरी मिल गई। सन 1821 से 1835 तक में उनकी होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति की कीर्ति चारों ओर फैल गई।

इस दौरान 1830 में उनकी पत्नी की मृत्यु हुई। उसके 5 साल बाद 80 साल की उम्र में डॉ. हानेमान ने 35 साल की फ्रेंच महिला के साथ दूसरी शादी रचाई। इस बात पर उनकी खूब आलोचना और मजाक हुई। आखिरकार वे अपने देश जर्मनी को छोड़कर फ्रांस में जा बसे।

फ्रांस में उनको बहुत मान सम्मान मिला और होम्योपैथी के समर्थक एवं अनुयाई मिले। 8 साल पेरिस में बिताने के बाद 2 जुलाई 1843 में 88 साल की उम्र में इस महान व्यक्ति का देहावसान हुआ। फ्रांस के माउंटमात्रे नामक पहाड़ पर डॉ. हानेमान की इच्छा अनुसार उनकी कब्र पर रखे गए पत्थर पर लिखा गया

 “मैं व्यर्थ नहीं जिया था”

होम्योपैथीक् दवाइयां किस चीज़ से बनती है?

डॉ. हानेमान की होम्योपैथी की थियरी के अनुसार बीमारी पहले आत्मा को लगती है उसके बाद उसके बाद शरीर के अन्य भागों पर उसका बुरा प्रभाव पड़ता है।

होम्योपैथी विज्ञान में लगभग 2500 जितनी दवाइयों की जानकारी और उपयोग किया जाता है उसमें से करीब-करीब 500 से 600 दवाइयां ऐसी है जिसका उपयोग होम्योपैथी के डॉक्टर हमेशा करते हैं। होम्योपैथिक दवाइयां बनाने के लिए वनस्पति के पत्ते, मूल, फल इत्यादि का उपयोग किया जाता है, एवं प्राणियों के दूध, विष से भी दवाइयां बनाई जाती है। इसका तीसरा प्राप्ति स्थान है जमीन में से निकलने वाली धातु और खनिज। धातुओं के मिश्रण से भी कई दवाइयां बनाई जाती है। ईस प्रकार होम्योपैथिक दवाइयां अधिकतर प्राकृतिक वस्तुओ के द्वारा बनती है।

होम्योपैथिक दवाइयों से इलाज 

होम्योपैथिक दवाइयां बनाने की पद्धति में दवाइयों को सूक्ष्म से अति सूक्ष्म किया जाता है। इस दवाई के माध्यम से शरीर में आत्मा को एवं उसके मूल स्वभाव को जागृत करने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार होम्योपैथिक दवाइयां बनाने की पद्धति को पोटेंटाइजेशन कहा जाता है।

होम्योपैथिक डॉक्टरों का ऐसा मानना है कि शरीर का संपूर्ण रहस्य ईश्वर ने हमारे सामने अभी तक खोला नहीं है और मनुष्य को होने वाले सभी रोगों का पक्का कारण भी हम नहीं जान सकते हैं उसी तरह होम्योपैथिक दवाइयों से लोगों का इलाज कैसे होता है जिसको समझना भी लगभग असंभव है।

सर्जरी होम्योपैथी में संभव नहीं है – होम्योपैथी और आयुर्वेद में क्या अंतर है

होम्योपैथी एक संपूर्ण पद्धति है और जिस में मानव शरीर के प्रायः सभी रोगों की चिकित्सा संभव है, लेकिन शल्य चिकित्सा यानी सर्जरी होम्योपैथी में संभव नहीं है। होम्योपैथिक दवाइयां सस्ती है और उसकी साइड इफेक्ट नहीं होती है।

तात्पर्य यह है की गंभीर प्रकार के एवं असाध्य रोगों को छोड़कर छोटी-मोटी बहुत सारी बीमारियों में एलोपैथी की दवाइयों की बजाएं हमें आयुर्वेदिक अथवा होम्योपैथिक उपचार करना चाहिए। इससे बीमारी जड़ से ठीक होती है और हमारे शरीर में साइड इफेक्ट का खतरा भी नहीं होता है। और हा, जरूरत पड़ने पर एलोपैथिक दवाइयां भी हमें लेनी चाहिए। आशा है इस आर्टिकल को पूरा पढ़कर आपको जरूर पता चला होगा की होम्योपैथी और आयुर्वेद में क्या अंतर है। अगर यह आर्टिकल आपको अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करे। 

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Lotus fabric : कमल की डंठल से कपड़ा

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Lotus Fabric

दिल्ली से जमीनी मार्ग पर 4815 किलोमीटर और हवाई मार्ग से 3420 किलोमीटर दूर आए हुए कंबोडिया के स्थानीय लोग पारंपरिक ढंग से कमल के फूलों की बड़े पैमाने पर खेती करते हैं।

Pond
सिल्क और लिनन से भी सॉफ्ट कमल फैब्रिक्स पहनने से सर दर्द, गले की तकलीफ, गले के रोग एवं फेफड़े के और ह्रदय के रोग जैसी आरोग्य की समस्याओं पर रक्षा मिलती है। 

Lotus fabric : वाटरप्रूफ और बारहमासी फैब्रिक्स

कमल सिल्क फैब्रिक्स की विशेषता यह है कि यह सर्दियों में गर्मी का एहसास और गर्मियों में ठंडक देते हैं। इसके अलावा कमल फैब्रिक्स वाटरप्रूफ होने के कारण बारिश की सीजन में भी हम इसे पहन सकते हैं। इस तरह कमल फैब्रिक्स बारहमासी फैब्रिक्स के रूप में जाना जाता है।
यह साल भर पहन सकते होने के कारण इसे उच्च कक्षा के ब्रेथेबल और वेरेबल फैब्रिक माना जाता है। कमल फैब्रिक की और एक विशेषता यह है कि वह सिल्क और लिनन से भी सॉफ्ट फैब्रिक है। वजन में हल्का और प्राकृतिक रूप से वाटर प्रूफ है। इस फैब्रिक की सबसे विशिष्टता यह है कि कमल फैब्रिक्स पहनने से सर दर्द, गले की तकलीफ, गले के रोग एवं फेफड़े के और ह्रदय के रोग जैसी आरोग्य की समस्याओं पर रक्षा मिलती है। इस तरह कमल का रेशमी कपड़ा बीमारियों और कीटाणुओं से बचाता है। Lotus silk fabric prevents diseases and germs

30 मीटर कपड़े के लिए सवा दो लाख कमल की डंठल

कमल फैब्रिक्स 10 कलर में तैयार किया जाता है यह तमाम colours संपूर्ण प्राकृतिक और गुणवत्ता युक्त होते हैं। इससे मफलर, स्काफ, टाई, हैंडबैग, खेस (दुपट्टा), ट्राउजर, जैकेट, मैक्सी, पैंट, शर्ट, कोट, सूट इत्यादि स्त्री एवं पुरुषों के वस्त्र बनाए जाते हैं। फूल जैसे हल्के इस फैब्रिक पहनने से जीव जंतुओं से भी रक्षा मिलती है।

रुमाल जितना स्काफ बनाने में 4000 कमल की डंठल

कमल फैब्रिक्स को विश्व का सबसे कीमती फैब्रिक्स इसलिए माना जाता है कि, इससे एक छोटा सा रुमाल जितना स्काफ बनाने में अंदाज 4000 जितने कमल की डंडी का उपयोग होता है। जबकि 30 मीटर के एक रो फैब्रिक बनाने में अंदाजा सवा दो लाख से अधिक कमल की डंडी का उपयोग होता है। यह 30 मीटर लंबा कपड़ा बनाने में साठ कुशल कारागीर को 10 दिन का समय लगता है। इस तरह कमल फैब्रिक्स दुनिया का असामान्य और कीमती फैब्रिक्स माना जाता है।

कंबोडिया के अति पिछड़े इलाके में पुरुषों के साथ साथ महिलाओ की भी इस काम में समान हिस्सेदारी है। वे लोग इस काम को भगवान बुद्ध को अर्पण किए जाने वाले कमल के पुष्प के साथ जुड़े होने के कारण आस्था और निष्ठा से करते हैं।

कमल के फूल के पत्तों और टहनियों से अद्भुत कपड़े : दुनिया भर में लक्जरी डिजाइनरों द्वारा प्रशंसा

 Lotus fabric

इको-फ्रेंडली क्राफ्ट के लिए जाने जाने वाली, फैब्रिक बनाने वाली कंपनी सैमाटो ने जब से कमल के फूल और उसके डंठल से नया फैब्रिक तैयार किया है तब से वो ज्यादा मशहूर हो गई है। कमल सिल्क कपड़े को उत्कृष्टता का प्रमाण पत्र और यूनेस्को से मुहर मिली है। साथ ही दुनिया भर में लक्जरी डिजाइनरों द्वारा इसकी बहुत प्रशंसा की जा रही है।

दस वर्षों के अथक शोध के अंत में, यह कंपनी कमल के फूल के पत्तों और टहनियों की तर्ज से कपड़े बनाने में सफल हुए हैं। यही कारण है कि शमाटो ने दुनिया के पारिस्थितिक कपड़े बनाए हैं जिन्हें अद्भुत कहा जा सकता है, जिन्हें कमल सिल्क के कपड़े के रूप में जाना जाता है।

इन कपड़ों के उत्पादन के लिए पर्याप्त कच्चा माल यानी कमल के फूल और टहनियाँ उपलब्ध कराने के लिए कम्बोडिया के बट्टमबंग में कैम्पिंग पोय में बड़े कमल फार्म स्थापित किए गए हैं। यह वह स्थान है जहाँ कमल और टहनियाँ एकत्र की जाती हैं और रस्सी बनाने के लिए उनसे लंबी लकीरें खींची जाती हैं। जिसे हाथ से निकाला जाता है और कताई कमल फाइबर को मिलाया जाता है। जिसके माध्यम से गुणवत्ता वाले पारंपरिक हाथ से बुने हुए कपड़े बनाए जाते हैं। जिसे सिल कर पहना जा सकता है।

कंबोडिया के पिछड़े गांवों में कमजोर महिलाओं को सशक्त बनाने के प्रयास

कंपनी कम्बोडिया के पांच वंचित गांवों में कार्यशालाओं का संचालन करके कुशल कारीगरों को प्रशिक्षित कर रही है। कुशल कारीगरों से इन कमल कपड़ों के परिधानों की एक श्रृंखला तैयार करवा रही है। कंपनी ने इसके लिए कंबोडिया के फर्नोम क्रोम सीएम रेप में फार्म स्थापित किया है। इको-टेक्सटाइल कंपनी सैमाटो ने कंबोडिया के पिछड़े गांवों में कमजोर महिलाओं को सशक्त बनाने के प्रयास में कई तरह की गतिविधियाँ शुरू की हैं। यह कंपनी अपने लक्ष्य को हासिल करने में काफी हद तक सफल रही है और स्थानीय कारीगरों की मदद से ज्यादा से ज्यादा लक्ष हासिल करना चाहती है।

अंगकोर वाट मंदिर के पास लोटस फार्म में बड़े पैमाने पर उत्पादन

2009 में, इस कंपनी ने बट्टाम्बंग में कैम्पिंग पोयना झील में 15-हेक्टेयर साइट पर कमल के फूल लगाए। जो की इस कंपनी का पहला कमल खेत था। फिर 2013 में, अंगकोर वाट मंदिर के पास, इस कंपनी ने सीम रीप के एक और लोटस फार्म फ़र्नोम क्रोम में बड़े पैमाने पर उत्पादन और संयोजन कमल शुरू किया। उसी समय, इस कंपनी ने कमल के फूल के कपड़े के साथ-साथ पर्यटकों और खरीदारों के लिए लोटस फार्म खोलने के लिए अपने उत्कृष्ट उत्पादों को साझा करने का फैसला किया। शुरुआत मे इस कंपनी ने 50 से अधिक लोगों के साथ कंबोडिया से कमल की खेती करना प्रारंभ किया जो आज वहां के किसानों, स्पिनरों और बुनकरों को लाभान्वित कर रही है। हालाँकि फिरभी उनकी जरूरतों का केवल 10% ही पूरा होता है।

Lotus fabric के लिए कमल खेतों की संख्या मे बढ़ोतरी

Lotus Febric

कमल सिल्क के कपड़ों के ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अब कमल खेतों की संख्या बढ़ाई जा रही है। कुशल कारीगर जो 500 कमल के कपड़े बना सकते हैं, उन्हें इसके लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। इस सुविधा का निर्माण करके, यह कंपनी इस उद्योग की अग्रणी बनने जा रही है। जो एक नए उच्च संभावित क्षेत्र में विविध नवाचार के साथ आगे बढ़ रहा है। स्थानीय स्तर पर, यह प्रभाव है कि कंबोडिया एक स्थायी सामाजिक स्थिति की ओर बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में वे अपने परिवार और अपने समुदाय के आर्थिक और सामाजिक विकास में योगदान कर सकेंगे।

 Lotus fabric  के कुशल कारीगरों, महिलाओं की जिंदगी कमल की तरह खिल गई

इस कमल कपड़े की ख़ासियत यह है कि यह 100 प्रतिशत हाथ प्रसंस्करण द्वारा बनाया गया है। जिसके लिए पौधे से निकाले गए फाइबर से एक अनोखा सूत बनाया जाता है। कमल सिल्क फेब्रिक से अब कई कंपनिओ ने एक उचित व्यापार और नैतिक उद्योग का निर्माण किया है। इससे  इस काम के कलाकारों को प्रशिक्षण और अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली है। जैसे कमल कीचड़ में खिलता है। इस तरह  तनाव में रहने वाली यहा की महिलाओं के लिए, दोहरी जिंदगी अतीत की बात बन गई है और कमल की तरह खिल गई है।

कंबोडिया के अलावा कमल सिल्क फैब्रिक का उत्पादन चाइना, वियतनाम, म्यानमार जैसे देशों में भी हो रहा है।  

 Lotus fabric  कपड़ों के लिए ऑर्डर के एक साल बाद डिलीवरी 

इस तरह के उत्पाद पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ किसी भी तरह के हानिकारक रसायनों से मुक्त होते हैं और पूरी तरह से प्राकृतिक उत्पादों से बने होते हैं। उनके लिए वैश्विक मांग लगातार बढ़ रही है। इन कमल वस्त्रों के उत्पादन में किसी भी तेल, बिजली या गैस या जहरीले रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता है। जिसके कारण इसके उत्पादन से किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता है। यह कपड़े की इसी मुख्य कारण से अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में प्रसिद्ध डिजाइनरों के बीच काफी मांग है। इस कपड़े को पाने के लिए, मतलब कमल  सिल्क के कपड़ों के लिए ऑर्डर देने के बाद  कम से कम एक साल इंतजार करना होगा … !!!!! तब डिलीवरी मिलती है। जब की यह कपड़े सिंगापुर और हांगकांग में फोर टी और टंग्स स्टोर्स पर उपलब्ध है।

lotus

विश्व के सबसे खास कपड़ा 

कपड़े आपके मूड और आत्मविश्वास को बदल सकते हैं। इस में भी विश्व के सबसे खास कपड़े जो की कमल के फेब्रिक से बना हो और सिल्क और लिनन से भी सॉफ्ट हो। जीसे पहनने से सर दर्द, गले की तकलीफ, गले के रोग एवं फेफड़े के और ह्रदय के रोग जैसी आरोग्य की समस्याओं पर रक्षा मिलती हो। जो सर्दियों में गर्मी का एहसास और गर्मियों में ठंडक देता हो। वजन में हल्का और प्राकृतिक रूप से वाटर प्रूफ है। 

देश के मणिपुर राज्य में Lotus fabric का उत्पादन

हमारे लिए खुशी की बात यह है की देश के प्राकृतिक संपदा से पूर्ण मणिपुर राज्य में भी कमल सिल्क का उत्पादन शुरू हो गया है। स्थानीय महिलाओ को कमल फेब्रिक बनाने की कला सिखाकर विजया शांति नामक महिला ने मणिपुर के तलावों के कमल से कपड़े बुनने का कारोबार शुरू किया है। तो क्या आप इसे पहनना चाहेंगे? या फिर हमारे प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भेट करना चाहेंगे?

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How long will we consume poisonous food? जहरीला खान पान हम कब तक करेंगे?

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Organic

युवा पीढ़ी ने अपने माता-पिता एवं बुजुर्गों को अक्सर यह कहते हुए सुना होगा की ‘हमारे जमाने जैसा फल, सब्जियां और अन्न का स्वाद आज नहीं रहा’। अब सवाल यह है Young  generation को यह कैसे पता चले की पहले के फल, सब्जियां और अन्न का स्वाद कैसा था? तो आईए मेरे कुछ अनुभवों की बातों से हम इस विषय को समझने की कोशिश करते है। और हा, यह लेख पढ़कर आपको एक सवाल जरूर होगा की जहरीला खान पान हम कब तक करेंगे? How long will we consume poisonous food?vegetables

गंभीर प्रकार के रोग व बीमारी के मुख्य कारण जहरीला खान पान

आजकल उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषि में कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों Fertilizer का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। देश मे चारों ओर सिर्फ उत्पादन बढ़ाने की ही बात चल रही है। बुरा भी नहीं लेकिन गुणवत्ता कैसे सुधारे यह बात बहुत ही कम लोग सोचते है। क्या हम यह नहीं जानते की कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों Fertilizer एवं ऑक्सीटोसिन गंभीर प्रकार के रोग व बीमारी के मुख्य कारण है?

दो साल पहले मुजे एक एसा अनुभव हुआ जिससे हम यह समझ सकते है कि भारतीय किसान कैसे भयानक चक्र में फंसा हुआ है। उन दिनों उत्तर गुजरात में बाढ़ की स्थिति थी और हम पाँच मित्र राहत सामग्री के साथ धानेरा क्षेत्र में पहुँचे। वहां से एक स्थानीय कार्यकर्ता को साथ लेकर हम बाढ़ पीड़ित गांवों की ओर निकल पड़े। उन दिनों श्रावण मास चल रहा था, इसलिए हमारे कुछ दोस्तों को व्रत था। इसलिए उनके खाने के बंदोबस्त मे हमने फल और फराली खाना जैसे आलू की वेफर्स कपैकेट और आलू का फराली चिवडा साथ मे रखा था। इस दौरान एक घटना हुई जिसने मुजे एक सच्चाई से रूबरू करवाया।

Potato Chipsहुआ यूं कि हमारे साथ आए हुए स्थानीय कार्यकर्ता ने भी हमारी तरह सावन का व्रत रखा हुआ था फिर भी भूख लगने पर वो हमारे साथ आलू की वेफर्स और आलू का फराली चिवडा नहीं खा रहा था। जब भी हम उसे वेफर्स देते थे तब वो खाने से मना कर देता था। ऐसा दो तीन बार हुआ इसलिए मैंने उसे पूछा कि वेफर्स क्यों नहीं लेता? तब उस कार्यकर्ता ने कहा कि ‘इन सभी फराली चीजों मे आलू होता है और में आलू नहीं खाता’।

आलू की फसल में अधिक उत्पादन के लिए अधिक रासायनिक उर्वरक 

उसका जवाब सुनकर मुझे लगा की शायद वो जैन होगा, चूंकि चुस्त जैनी आलू, प्याज, लहसुन वगैरह नहीं खाते,  इसलिए मैंने उसे पूछा की क्या तुम जैन हो? उस ने कहा नहीं। तो फिर यह फराली चीजे क्यू नहीं खाते? मैंने सवाल किया। तब उसने कुछ बेहद चौंकाने वाली बात कही जीसे सुनकर में हैरान रह गया। उस बंदे ने कहा :  ‘मैं अपने घर के उगाए आलू के अलावा बहार का आलू नहीं खाता’। बड़ी अजीब सी बात लगी इस लिए मैंने उसे पूछा क्यों? इसकी व्याख्या करते हुए उसने कहा कि ‘हमारे क्षेत्र में आलू की बहुत अधिक फसल है। आलू की फसल में अधिक उत्पादन के लिए हम बहुत सारे रासायनिक उर्वरक Fertilizer मिलाते हैं। लेकिन हम अपने घर में खाने के लिए पर्याप्त आलू बिना खाद के सिर्फ पानी देकर उगाते है और उसे घर के कोने में रख देते हैं। My God! अब मुझे पता चला कि आलू में कितना जहरीलापन होता है। मैं तो उस बंदे की बाते सुनकर हैरान रह गया। यह बंदा क्या कह रहा है? फिर उसने गोभी, फूलगोभी और भिंडी के बारे में भी ऐसा कुछ बताया।

रासायनिक स्प्रे से एक रात में अंगूर का कद बदल जाता है

जिस तरह मैं आलू के बारे में सुनकर अचंभित हुआ उसी तरह मेरा एक दूसरा अनुभव भी में बताता हूं : एक बार जब मैं नासिक गया था तब रास्ते मे मैंने अंगूर के बहुत सारे बगीचे देखें। एक जगह रुक कर बगीचे के बाहर अंगूर बेच रहे एक किसान से अंगूर खरीद कर मैंने पूछा; क्या अंगूर पर आप रसायनों का छिड़काव करते हैं ..? किसान ने मेरी तरफ देख कर हँस कर कहा, ‘अंगूर बिना दवा के बढ़ता है क्या?। दवाई नहीं मारेंगे तो दाना छोटा होगा और पैदावार कम होगी। रासायनिक स्प्रे से एक रात में अंगूर का कद बदल जाता है’।

हमने दिखने में बड़े कद के अंगूर को टेस्ट किया तब शराब के रंग के अंगूरों का स्वाद फीका लगा।

उत्पादन में वृद्धि के लिए फल और सब्जियों में ऑक्सीटोसिन का उपयोग किया जाता है। इस तरह से जहरीले रसायनों के उपयोग से फल का वजन तो बढ़ता है लेकिन स्वाद और सत्व कम हो जाता है। इतना ही नहीं बल्कि इसे खाने से खतरनाक रोग भी होता है। 

अगर हम इसके स्वाद और सत्व की बात करे तो बिना केमिकल की Organic एक अंगूर या अन्य फल-सब्जी के बराबर आज की पाँच या उस से अधिक मात्रा होती है। जब की हम ज्यादा Quantity खा नहीं सकते इसलिए हमे पर्याप्त सत्व और स्वाद भी नहीं मिलते। पर हा, जहर जरूर पेट मे जाता है। 

 पहले प्राकृतिक खेती थी  मगर अब जमीन को कीटनाशक व रासायनिक उर्वरकों लत लगी नतीजा जहरीला खान पान

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कुछ दिनों पहले मुझे अपने गृहनगर वलभीपुर जाना हुआ। वहां मुझे अपने बचपन का दोस्त चुन्नीलाल मिला। चुन्नीलाल ने मुझे घेलो नदी के किनारे अपने खलिहान में उगी ताजी सब्जियां ले जाने का आग्रह किया। मैंने चुन्नीलाल से पूछा कि खेत मे क्या कर रहा था? उसने कहा बैंगन में दवाई छिड़क रहा था। बैंगन को भी दवाई? यह सुनकर मैं चौंक गया। मैंने कहा, एला चुन्नीलाल, क्या तुम हमेशा देशी सब्जियाँ लगाते हो? फिर यह दवा का छिड़काव कब शुरू किया? ‘ चुन्नीलाल हँसने लगा और अपने देहाती लहजे में बोला। ई के बिना नहीं चलता’। मैंने कहा, पहले के समय में दवाई कहाँ थी, तब भी बैंगन हो रहे थे…! चुन्नीलाल फिर से हँसने लगा और बोला; भाजी पाले में तब ऐसी बीमारी नहीं थी अब है।

अन्न, फल, सब्जियों मे तरह तरह के रोग एवं मनुष्य में भी कई प्रकार के रोग और उस पर दवाइओ का अरबों डॉलर का कारोबार षडयंत्र नहीं तो क्या है?

वर्तमान में, अन्न, फल एवं सब्जियों मे तरह तरह के रोग आते है जो पहले नहीं थे और उस पर कीटनाशक दवाई का बेहद उपयोग हो रहा है। इसी तरह मनुष्यों मे भी तरह तरह की बीमारियां दिखती है। इन बीमारियों के

कारण मनुष्यों को एलोपथी की दवाइयों की जरूरत पड़ती है। असल मे क्या आप को यह नहीं लगता की ज्यादा पैदावार लेने के चक्कर मे हमने रासायनिक उर्वरकों Fertilizer एवं कीटनाशकों को आयात किया उस से फ़सल की पैदावार तो अच्छी रही किन्तु मनुष्यों मे भिन्न भिन्न प्रकार के रोग भी बढ़ाने लगे और फिर उसके इलाज के लिए हमने एलोपथी सहारा लिया जिसकी साइड इफेक्ट भी होने लगी, आगे चल के उसकी भी दवाई… इस तरह हम विषचक्र मे फसते चले।

हाइब्रिड बीज स्वतंत्रता के बाद कम बुद्धिमान, अकल्पनाशील, भ्रष्ट शासकों की देन 

कभी सोचता हूँ के बचपन मे हमने जो सब्जियां, अमरूद, बेर, अनार पपीता वगैरह की मिठास कहां खो गई? मुझे लगता है कि हाइब्रिड बीज स्वतंत्रता के बाद हमारे भ्रष्ट शासकों की कमजोरी के कारण एक विदेशी साजिश के हिस्से के रूप में आए। अधिक उत्पादन प्राप्त करने के चक्कर मे देशी बीजों को नष्ट कर दिया गया। विदेशी चीजों और तकनीक के हम आदी हो गए।  आयातित खाद ने भूमि को नशे की लत लगा दी फिर भी हम अभी भी गहरी नींद में हैं।

बचपन में हमने कभी केले का रंग इतना पीला नहीं देखा 

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बचपन में हमने केले का रंग पीला नहीं देखा था, जैसा कि आज है। आज के पीले रंग का केला जो आंख को प्रसन्न करता है लेकिन क्या आप जानते है उसे केमिकल के द्रावण मे डुबोकर पकाया है। यह केला स्वाद में बिलकुल फीका लगता है। पर नई पीढ़ी के लोगों को इसका पता नहीं चलेगा क्योंकि उन्होंने असली स्वाद चखा ही नहीं। सबसे सस्ता और स्वास्थ्यवर्धक फल के भी यह हाल है।आम, पपीता जैसे फलों  को पकाने के लिए Calcium Carbide जैसे खतरनाक केमिकल का उपयोग किया जाता है। 

अनजाने में हम जहरीला खान पान और फलों (केले) का सेवन करते हैं

यह सच है कि दिन में एक केला खाने से आप स्वस्थ रह सकते हैं, लेकिन ऐसे पीले केले खाने से नहीं। आजकल, जो लोग जल्दी पैसा बनाना चाहते हैं, उनकी खतरनाक तकनीकों के कारण, देश के लाखों नागरिक अनजाने में विषाक्त रसायनों वाले फलों (केले) का सेवन करते हैं। बेशक, फल पकने के अलावा, स्वाभाविक रूप से उगाया जा सकता है, लेकिन हम स्वेच्छा से रासायनिक रूप से पकने वाले फल खरीदते हैं, इसलिए इन जहर को बेचने वाले लालची लोगों को प्रोत्साहन मिलता है। यह हमारे स्वास्थ्य के साथ छेड़छाड़ करने की एक विदेशी साजिश है। जिसे हमारे लालची लोग देश में फैला रहे हैं।

अधिक वजन होने से अधिक लाभ कमाने के शॉर्टकट के रूप में, कमीनों ने अच्छे मज़ेदार रसदार और मीठे टमाटर को भारी, मोटी चमड़ी और मोटा बना दिया। आज की पीढ़ी को यह भी पता नहीं है कि उनके पास रसदार, पतले-पतले, खट्टे मीठे टमाटर भी थे।

अमेरिकन कॉर्न हंसते हंसते खाने वाले युवा देशी कॉर्न, भुने हुए देशी मका के स्वाद और सुगंध की मजा कहां जानते हैं।

हर अनाज की फसल में प्रचुर मात्रा में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का छिड़काव किसानों की मजबूरी है। सवाल यह है कि जब सरकार उत्पादन में वृद्धि को ही विकास मानती है तो गुणवत्ता पर जोर देना कब शुरू होगा। यह काम हमे करना पड़ेगा ऑर्गेनिक चीजों की पहचान करना और उसे ही खरीदने का आग्रह रख कर।

कीटनाशक और रासायनिक उर्वरक धरती को बंजर बना रहे है और जहरीला खान पान

घरेलू और विदेशी कंपनियां एवं रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के विक्रेताओं ने रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और बीजों को अपने लाभ के लिए किसानों को धोखा देकर बेचने का षडयंत्र रचा हैं।

पंजाब में उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी में कैंसर जैसी बीमारियां पैदा हुई हैं। वह जमीन अब खेती योग्य नहीं है। यह हमारे देश की उपजाऊ मिट्टी को नशे की लत और फिर बेकार बनाने की साजिश है। अंततः कीटनाशक और रासायनिक उर्वरक धरती को बंजर बना रहे है। Pesticides

हम खाने को लेकर पूरी तरह से लापरवाह हैं। हम लोग केवल स्वाद के लिए ही खाते हैं, यह सोचकर, की ‘क्या हम अकेले थोड़े खाते हैं? जो कुछ होगा वह हम सब के साथ होगा’। हमारी कमजोरी यह है कि हम सब कुछ स्वीकार कर लेते हैं। यही कारण है कि स्वास्थ्य को खतरे में डालने वाली गतिविधियाँ पनपती हैं। लेकिन अगर लोग जागते हैं और एक जन आंदोलन शुरू करते हैं की आज से रासायनिक रूप से पके फलों, सब्जियों और अनाज के उपयोग को कम करेंगे, साथ-साथ प्राकृतिक रूप से पकने वाले उत्पादों के उपयोग को बढ़ाएंगे तो कुछ लाभ हो सकता है।

इसके लिए जैविक खेती को बढ़ावा देना और उसका प्रचार-प्रसार करना बहुत जरूरी है, जो प्राकृतिक खाद पर आधारित है।

इस संबंध में सरकार द्वारा बहुत कुछ किया जा सकता है। जैसे सख्त कानूनों का निरंतर प्रवर्तन। गुणवत्तापूर्ण कृषि उत्पादन के लिए सरकार द्वारा प्रभावी अभियान; फल पकने में उपयोग किए जाने वाले जहरीले रसायनों पर सख्त प्रतिबंध / सख्त प्रवर्तन। अगर हम जागरूक हो जाएंगे तो भावी पीढ़ी को इसका अवश्य लाभ होगा। इस लिए अपने आप को एक सवाल करो की आखिर जहरीला खान पान हम कब तक करेंगे?

 

 

 

 

 

 

Ayurvedic vs Allopathy Side Effects : आयुर्वेदिक बनाम एलोपैथी साइड इफेक्ट्स

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प्रायः हम सभी अपने जीवनकाल में कभी ना कभी बीमार जरूर पड़ते है। कभी हमारी गलती से तो कभी प्रकृति के कारण। और कभी मौसम के बदलाव से भी हमारे शरीर में रोग पैदा होता है। लेकिन हम रोग का इलाज कैसे करते है ये बड़ी महत्व की बात है। ऐसा इसलिए कि हम कुछ रोग ठीक करने के लिए दवाई तो लेते हैं परंतु कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि  वह दवाई एक रोग को तो ठीक कर दे लेकिन उससे दूसरा रोग पैदा हो जाता है, जिसका हमें बाद में पता चलता है। इस बात को बखूबी समझाने के लिए गुजराती में एक कहावत है, “बकरूं काढ़ता ऊंट पेठुं”। अर्थात बकरी को निकाला तो उस खाली जगह में अब एक ऊंट आकर बैठ गया। उदाहरण के तौर पर कहे तो ‘कुछ दिनों के लिए सर्दी जुकाम की दवाई ली और आजीवन एसिडिटी हो गई।’ इसलिए आज हम दो चिकित्सा पद्धति की Ayurvedic vs Allopathy Side Effects विषय पर बात करेंगे। 

Ayurveda

एलोपैथिक दवाइयों की साइड इफेक्ट अक्सर देखने को मिलती है। इसलिए दुनिया में अब हमारी पारम्परिक चिकित्सा शैली आयुर्वेद को “वैकल्पिक चिकित्सा” (alternative medicine) के  रूप में अपनाया जा रहा है।

आयुर्वेदिक का आविष्कार किसने किया? Who invented ayurvedic?

आपको यह जानकर बड़ा आश्चर्य होगा की मनुष्य जाति की उत्पत्ति से पहले जब रोग और रोगी कुछ भी नहीं था तब रोगों के निदान और चिकित्सा समेत समस्त आयुर्वेद के ज्ञान का प्रादुर्भाव (आगमन) हो चुका था. ब्रह्मा जी ने अपने त्रिकाल ज्ञान (भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों काल में क्या स्थिति होगी उसका ज्ञान) से ऐसा किया था।

विक्रम से पूर्व 15000 साल पहले ब्रह्मा जी स्वयं प्रकट हुए थे और ब्रह्मा जी लगभग 6000 सालों से भी अधिक सालों तक जीवित थे।

कालांतर में मनुष्य की आयु और मेधा (Intellect) में कमी आएगी इस बात को जानने वाले ब्रह्मदेव ने आयुर्वेद को 8 अंकों में विभाजित किया था। सुश्रुत संहिता के अनुसार इस आठ तंत्रों को अनुक्रम

  1. शल्य,
  2. शालाक्य, 
  3. कायचिकित्सा, 
  4. भूत विद्या,
  5. कौमारभृत्य,
  6. अगद,
  7. रसायन
  8. वाजीकरण

कहते हैं।

आयुर्वेदिक चिकित्सा कब शुरू हुई? when did ayurvedic medicine began?

Brahmaji

‘भावप्रकाश’ के अनुसार ब्रह्मदेव ने सर्वप्रथम आयुर्वेद का ज्ञान दक्ष प्रजापति जी को दिया। दक्ष प्रजापति से अश्विनीकुमारों ने आयुर्वेद की पढ़ाई की। अश्विनीकुमार दो जुड़वा भाई थे दोनों के रंग रूप आवाज एक थी। वह विश्वकर्मा की पुत्री सरण्यू और सूर्य के पुत्र थे। शल्य-चिकित्सक थे। ऋग्वेद में अश्विनीकुमारों का वर्णन  देवताओं के चिकित्सक के रूप में मिलता है। अब अश्विनी कुमारों से इंद्र ने आयुर्वेद की पढ़ाई की। इंद्र से अत्रि ऋषि, भारद्वाज ऋषि और बहुत सारे ऋषि-मुनियों ने आयुर्वेद की पढ़ाई की। हमारे परम उपकारी पुनर्वसु ऋषि, सुश्रुत ऋषि, चरक ऋषि इत्यादि  महर्षियों ने ‘मात्रेय संहिता’ ‘सुश्रुत संहिता’ और ‘चरक संहिता’ लिखकर आयुर्वेद का ज्ञान हम तक पहुंचाया।

आयुर्वेद और एलोपैथी में अंतर

सन् 1200-1300 के आसपास शार्ङ्गधर नामक आयुर्वेदाचार्य थे जिन्होने ‘शार्ङ्गधर संहिता’ नाम के आयुर्वेदिक ग्रंथ की रचना की।  इस ग्रंथ में उन्होंने ‘सुश्रुत संहिता’ एवं ‘चरक संहिता’ और अन्य रसायन शास्त्र के ग्रंथों का सार प्रस्तुत किया है।

शार्ङ्गधर संहिता के पूर्व खंड में 25 प्रकार के ज्वर (Fever) का उल्लेख किया है जबकि एलोपैथी में बुखार के लिए मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, येलो फीवर, टाइफाइड इस प्रकार के ही कुछ नाम सुने है।  इस में और दो-पाँच नाम अधिक जोड़ सकते हैं। यही तो Ayurvedic vs Allopathy की खासियत है। 

भारतीय और पश्चिमी सभ्यता में रिश्ते नातों के लिए शब्द

इस बात को अगर हम ठीक से समझना चाहे तो उदाहरण ले सकते हैं कि हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति में रिश्ते नाते की खूबसूरत शब्दावली है। संबोधन का एक शब्द मात्र बोलने से सामने वाले को उनके रिश्ते नाते के बारे में समझ में आ जाता है। जबकि अंग्रेजी में चाचा, मामा, फूफा, ताऊ सब UNCLE है, चाची, मामी, बुआ सब AUNTY, क्यूंकी इंग्लिश भाषा में यह सब रिश्तो के लिए शब्द ही नहीं है।

हिंदी और भारतीय भाषाओं में साला-जीजा, देवर, जेठ, साढू ऐसे भिन्न रिश्ते नातों के लिए भिन्न शब्द है जबकि अंग्रेजी भाषा में इन सभी के लिए ब्रदर इन लॉ शब्द का ही प्रयोग किया जाता है। दादा-नाना के लिए अंग्रेजी में सिर्फ ग्रैंडफादर शब्द है। पोती नाती के लिए ग्रैंड डॉटर  ननंद साली भाभी देवरानी जेठानी के लिए सिस्टर इन लॉ, चचेरा  फूफेरा ममेरा मौसेरा भाई बहनों के लिए सिर्फ Cousin शब्द का उपयोग किया जाता है, जीजा भांजा के लिए सिर्फ नेफ्यू कहा जाता है।

Ayurvedic vs Allopathy

कहने का तात्पर्य है कि इसी बात को हम आयुर्वेदिक बनाम एलोपैथी के बारे में भी लागू कर सकते हैं। आयुर्वेद में एक ही रोग के भिन्न भिन्न प्रकार एवं नाम दिए गए हैं। रोग के प्रकार को समझ कर निदान और उपचार किया जाता है। इसका फायदा यह होता है कि जो भी औषधि रोगी को दी जाती है उसकी कोई साइड इफेक्ट नहीं होती।

आयुर्वेद में एक ही रोग के भिन्न भिन्न प्रकार नाम एवं उपचार

‘शार्ङ्गधर संहिता’ में सात प्रकार के अतिसार (दस्त कि बीमारी) बताए गए हैं। वातातिसार, पित्तातिसार, कफ़ातिसार, त्रिदोषातिसार, शोकातिसार, आमातिसार, और भयातिसार।

21 प्रकार के कृमि, पाँच प्रकार की खाँसी (कास), 6 प्रकार के उन्माद, 20 प्रकार के मेह इसमें 20 वे नंबर पर जो है वह मधुमेह जिसे हम डायबिटीज कहते हैं। 18 प्रकार के कुष्ठ रोग याने कोढ, और कई प्रकार के अन्य सारे रोग के अलावा 80 प्रकार के वात रोग 40 प्रकार के पित्त रोग और 20 प्रकार के कफ के रोग एवं  नाक, कान, दांत आँख के अनेक प्रकार का उपचार आयुर्वेद द्वारा किया जाता है।

संक्षिप्त में कहा जाए तो स्त्रियों और बच्चों के रोगों समेत मानव शरीर के तमाम प्रकार के रोग एवं उसके इलाज का वर्णन आयुर्वेद के ग्रंथों में भरा पड़ा है।

आयुर्वेद के पास ऋतुओं का, रत्नों का, वनस्पतियों का, जड़ी बूटियों का, मानव एवं प्राणियों के मल मूत्र का मांस, हड्डी, रक्त, खनिज धातु, पदार्थ इत्यादि के गुणधर्म और उपयोग का सुक्ष्माती सूक्ष्म ज्ञान है।

अब बात करें Ayurvedic vs Allopathy साइड इफेक्ट के बारे में। एलोपैथी के निर्दोष औषध माने जाने वाले पेरासिटामोल के बारे में 18 साल पहले मैंने एक प्रतिष्ठित अखबार में पढ़ा था की आधुनिक शहरी और ग्रामीण जीवन में जीसका भरपूर उपयोग किया जाता है  वह पेरासिटामोल की खतरनाक साइड इफेक्ट भी है। अमरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के साउथवेस्ट मेडिकल विभाग के डॉक्टर विलियम ली के अनुसार यूएस की हॉस्पिटलो में किए गए अभ्यास से यह पता चला है कि पेरासिटामोल का सतत सेवन करने वाले 100  लोगों मैं से 30 व्यक्ति को साइड इफेक्ट के रूप में इसके घातक परिणाम  देखने को मिले हैं। जिसमें लीवर के और किडनी फेलियर के कई किस्से सामने आए हैं। शराब का सेवन करने वालों को पेरासिटामोल बिना चिकित्सक की सलाह नहीं लेनी चाहिए।

भारत में सामान्य बुखार, बदन दर्द, सर दर्द और सर्दी जुखाम के ऊपर एवं शारीरिक मानसिक थकान एवं आलस्य दूर करने के लिए पेरासिटामोल का भरपूर उपयोग किया जाता है। मेडिकल एवं जनरल स्टोर में ये बिना प्रिसक्रिप्शन विविध ब्रांड नेम से आसानी से उपलब्ध है।

18 साल पहले पेरासिटामोल का 1000 टन से ज्यादा उत्पादन देश में 20 से अधिक फार्मास्यूटिकल कंपनियां करती थी आज यह आंकड़ा और अधिक होगा। भारतवासी प्रति माह 11000 टन पेरासिटामोल पाउडर उस वक्त खा रहे थे।

ब्रूफेन प्लस पेरासिटामोल हमारे यहां अत्यंत लोकप्रिय है मगर उसकी खतरनाक साइड इफेक्ट भी है

विदेशों में खासकर पश्चिमी राष्ट्रों में पिछले कुछ सालों से पेरासिटामोल आधारित किसी भी प्रोडक्ट पर उस दवाई की साइड इफेक्ट की संपूर्ण जानकारी, डोज का प्रमाण और घातकता का प्रमाण प्रिंट किया जाता है। जबकि भारत में हम पेरासिटामोल का 250 से अधिक 500 और 1000 पावर तक के हाई डोज लेने से हिचकिचाते नहीं है। पेरासिटामोल का ओवरडोज गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।

ब्रूफेन प्लस पेरासिटामोल जो कि हमारे यहां अत्यंत लोकप्रिय है उसे पेईन किलर, सर्दी जुकाम की दवाई, कफ सिरप, जीर्ण ज्वर, संधिवात, दांतो के दर्द इत्यादि दवाइयों में भी इस्तेमाल किया जाता है। हमारे यहां दर्द को तुरंत ठीक करने के लिए, टेंपरेचर डाउन करने के लिए इसे रामबाण औषध माना जाता है, लेकिन डॉक्टर ली  के मुताबिक हफ्ते में पेरा (250) की चार गोली लेने से किडनी को नुकसान होता है। यह तो हमने केवल पेरासिटामोल की ही बात की है। पढ़े-लिखे लोग बाकी सारी दवाइयों की साइड इफेक्ट का गूगल से पता लगा सकते हैं।

केवल इतना करने से हम एलोपैथिक दवाइयों की साइड इफेक्ट से बच सकते  है

इससे विपरीत हम आयुर्वेद की बात करें तो पेरासिटामोल से ठीक होने वाले ऊपर वर्णन किए गए सभी रोगों के ऊपर आयुर्वेद में अलग-अलग प्रकार की निर्दोष दवाइयों की कोई कमी नहीं है। केवल हमें इसका ज्ञान लेना है, धैर्य रखकर इलाज करना है और आयुर्वेद में संपूर्ण विश्वास रखना है इससे हम एलोपैथिक की साइड इफेक्ट वाली दवाइयों से बच सकते हैं। हम एलोपैथी के बिलकुल खिलाफ है, विरोध कर रहे हैं ऐसा नहीं है मगर जहां तक साइड इफेक्ट का सवाल है हमें जिस रोग का उपचार आयुर्वेदिक दवाइयों से आसानी से हो सकता है उसके लिए एलोपैथिक के उपयोग के उपयोग से बचना चाहिए। Ayurvedic vs Allopathy को जान लेने के बाद हमे इतना तो अवश्य करना चाहिए।  

हमारे परिवार के स्वास्थ्य की रक्षा हेतु करने लायक एक महत्व का काम हमें आज ही  करना चाहिए

Ayurvedic vs Allopathy के बारे में इतना जान लेने के बाद अब  हमे   क्या  करना चाहिए यह प्रश्न हमारे मन में जरूर उठेगा।  इसका उत्तर यह है की हमारे घर मे जहां  हम खाना खाने बैठते है उस जगह के आसपास कही या फिर डाइनिंग टेबल के ऊपर अथवा पानी पीने की जगह के आसपास कहीं पर हमें आयुर्वेदिक दवाइयों के लिए एक जगह बनानी पड़ेगी। आयुर्वेद का सामान्य ज्ञान भी हमें और हमारी आने वाली पीढ़ियों को भयंकर बीमारियों से बचा सकता है।

आयुर्वेद के अनुसार दिनचर्या, रितुचर्या, वनौषधियों और तमाम प्रकार की बाजार में मिलने वाली औषधियों के बारे में हम इस वेबसाइट के माध्यम से आगे जानकारी प्राप्त करते रहेंगे जिस से आप अपने आयुर्वेदिक दवाइयों के लिए बनाई हुई खास जगह में रखकर बीमारी में लाभ प्राप्त कर सके।

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