पिछले कुछ महीनों से दुनिया भर में COVID-19 वायरस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है। शुरू शुरू मे तो लोग बेहद भयभीत हुए मगर अब सबने कोरोना के साथ जीना सिख लिया है। आजकल तो दुनिया कई देश कोरोना की वेकसीन भी बना चुके है। लेकिन यह कोरोना आखिर है क्या? ये जानने के लिए मैंने आयुर्वेद के पुस्तकों में खोजबीन की।
1918 में और उसके बाद 1957 में इस महामारी का संक्रमण हुआ था
मेरे पास जनवरी 1977 में प्रकाशित ‘आयुर्विज्ञान’ नामक एक पुस्तक है। जिसमे Influenza के बारे में लिखा गया एक प्रकरण है। इसे पढ़कर लगा की, आजकल हम जिस से भयभीत है वह कोरोना, इनफ़्लुएंज़ा जैसे रोग का ही एक रूप है। यह रोग चेपी है और श्वासोश्वास के द्वारा फैलता है। इनफ़्लुएंज़ा के विषाणु जीवाणुओं से भी अधिक छोटा होने के कारण सूक्ष्मदर्शी यंत्र से भी देखा नहीं जा सकता है। इस विषाणुओ के A B और C वर्ग है। इस विषाणुओ में उत्परिवर्तन (Mutation) होने से यह विषाणु के A 0, A1 एवं A2 ऐसे तीन प्रकार बने हैं। इसमें से
- A1 को एशियन
- A2 को हांगकांग
विषाणु कहते हैं। जब जब इस महामारी का संक्रमण फैलता है तब तब इस विषाणु की जात में परिवर्तन होते रहता है। इस प्रकार के उत्परिवर्तन के कारण एक नया प्रकार जन्म लेता है। पहले सन 1918 में और उसके बाद 1957 में इस महामारी का संक्रमण हुआ था। इसबार फैली इस महामारी को World Health Organization: WHO ने COVID-19 नाम दिया है।
शुरुआती लक्षण
इनफ़्लुएंज़ा (flue, flu) के शुरुआती लक्षणों में सर्दी, बदन दर्द, सर दर्द के साथ बुखार आता है तीन-चार दिनों में इसके लक्षण कम भी हो सकते हैं। इसके कारण कमजोरी और सांस की नली एवं फेफड़े में सूजन आ जाती है। ऐसी स्थिति में इंफ्लुएंजा के विषाणु के साथ-साथ अन्य जीवाणु भी फेफड़े पर हमला कर देते हैं। फेफड़े के एवं हृदय रोग के मरीज और बुजुर्ग लोगों के लिए यह खतरनाक साबित होता है।
रूस में जिंदा विषाणु को ठंडी में सुखाकर सूंघने के वाली Vaccine बनाई गई थी
पहले जब इस प्रकार का संक्रमण फैला था तब रूस में जिंदा विषाणु को ठंडी में सुखाकर सूंघने के वाली Vaccine बनाई गई थी। जिसे हर 3 महीने में कारखानों में काम करने वाले कामगारों को सूंघने के लिए दी जाती थी। इसके कारण उन्हे हल्का सा इंफ्लुएंजा होकर वे ठीक हो जाते थे। शनिवार को जो मजदूरो को यह वैक्सीन सूंघने के लिए दी जाती थी उससे हल्का इंफ्लुएंजा सहकर रविवार को आराम करके वह सोमवार को फिर काम पर लग जाते थे। ऐसा करने के पीछे एक खास मकसद था। ऐसा इस लिए किया जाता था क्योंकि इस महामारी का संक्रमण फैलने से एक साथ बहुत सारे कामगार बीमार होते थे, और छुट्टी पर चले जाते थे। इसलिए उन्हे सूंघ ने वाली रसी Vaccine देने से रविवार को कामगार Influenza से संक्रमित होकर बीमार पड़ता था, और फिर इससे उनके शरीर में एक प्रकार की रोग प्रतिकारक शक्ति पैदा हो जाती थी।
Influenza (flue, flu) के विषाणु प्राणियों में भी आ सकते हैं
पहले के संशोधन के दौरान यह देखा गया है की Influenza (flue, flu) के विषाणु प्राणियों में भी आ सकते हैं। सूअर (Pig), घोड़ा (Horse), और पंछियों (Birds) में भी इस प्रकार के विषाणु पहले देखे गए थे। फ्लू के वायरस लगातार बदल रहते हैं। चिंता का विषय यह है की जानवरों के फ्लू के वायरस इस तरह बदल सकते हैं कि, वे लोगों को आसानी से संक्रमित कर सकते है। लोगों में फैल सकते हैं। जिससे महामारी फैल सकती है। इंफ्लुएंजा के हमले से 1918 में असंख्य लोगों की मृत्यु हुई थी। जबकि 1957 में एशियन प्रकार का संक्रमण फैला था। इन्फ्लूएंजा के बारे में डॉक्टर एंड्रयूज और इसाक नाम के 2 वैज्ञानिको ने इस के संशोधन में अपना अमूल्य योगदान दिया था। भारत में मुंबई में स्थित हापकिन इंस्टिट्यूट, कुन्नूर की पाश्चर इंस्टीट्यूट एवं कसौली के सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट में इस महामारी के विषाणु के बारे में रिसर्च किया जाता है।
यह आर्टिकल मैंने जुलाई 2020 में लिखा था । उसके 3 महीने बाद एक गलती के कारण मेरी वेबसाइट Crash हो गई। अब जब दोबारा इस आर्टिकल को मैं एडिट करके पोस्ट कर रहा हूं तब मेरे पास मेरे ही भाई, बहन और परिवार के 5 सदस्य का कोविड-19 से ठीक होने का उदाहरण है।
कोविड-19 का एलोपैथिक व आयुर्वेदिक इलाज
मेरी बहन मुंबई में होम क्वॉरेंटाइन रहकर, खासकर आयुर्वेदिक इलाज से ठीक हुई। जबकि मेरे भाई का परिवार गुजरात में होम क्वॉरेंटाइन रहकर एलोपैथी व आयुर्वेदिक इलाज से ठीक हुए है।
- कोरोना पॉजिटिव होने के बाद सभी को
- हल्का या तेज बुखार,
- सूंघने की क्षमता चली जाना,
- सिरदर्द,
- कमज़ोरी
- सुखी खांसी
वगैरह लक्षण देखने को मिलते थे।
एलोपैथिक ट्रीटमेंट में एंटीवायरल मेडिसिन Fabi Flu Tablet और विटामिन की गोलियां दी जाती है। इसके साथ साथ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक उपचार में
- आयुष काढ़ा (क्वाथ) (बाजार मे मेडिकल स्टोर मे सभी बड़ी फार्मसी का मिलता है।) सुबह नाश्ते के बाद
- अमृतारिष्ट (तीन से चार चम्मच सुबह-शाम पानी के साथ)
- गिलोय घनवटी (एक एक गोली सुबह शाम)
- कनकासव (तीन से चार चम्मच सुबह शाम। खांसी, श्वास और फेफड़ों के रोग के लिए)
- त्रिभुवन कीर्ति रस https://startayurvedic.in/tribhuvan-kirti-ras/
का सेवन और प्रत्येक मरीज को खाने में सादा भोजन मूंग के साथ और फल में आंवला, पपीता, सेव एवं Mosambi देते थे।
आयुर्वेदिक और एलोपेथि के यह सभी उपचार वैद्य और डॉक्टर के मार्गदर्शन मे करना बहुत ही आवश्यक है।
सभी मरीज सुबह-शाम गर्म पानी से स्टीम याने नस्य लेते थे। (एक बर्तन में गर्म पानी करके उसमें तुलसी पुदीने और अदूलसा की कुछ पत्तियां और अजवाइन को मिलाकर इसे भाप के रूप में सांस में लेते थे)।
योग और प्राणायाम करते थे। इस तरह दस-बारह दिन मे सब ठीक हो गए।
भगवान करे कोराना की वैक्सीन सफल हो तब तक कोरोना के साथ जीना पड़ेगा
ब विश्व के सभी ज्ञानी, वैज्ञानिकों को सावधान, सचेत, चिंतित रहना होगा। उनको अपने खोज, अनुसंधान, अन्वेषण के द्वारा भविष्य में इस तरह की कोई बीमारी-महामारी ना आए, ना फैले इसके लिए सभी संभव प्रयास निरंतर करना पड़ेगा।
फिलहाल तो हमे यह उम्मीद रखना चाहिए की बहुत जल्द कोराना की वैक्सीन सफल हो और इस महामारी से दुनिया मुक्त हो जाए। तब तक दो गज की दूरी बनाए और मुँह पर मास्क जरूर लगाए।